डीएनए हिंदी : आदिवासी साहित्य सिर्फ हिंसा झेल रहे प्रतिरोधी जीवन का बयान नहीं है, बल्कि यह पुरखों के जीवनदर्शन से प्रेरित सामूहिक स्मृतियों और सृजनात्मकता की अभिव्यक्ति है. आदिवासी लोग केवल दुख और संघर्ष को जीवन का पर्याय नहीं मानते. वे शांतिप्रिय, सहजीवी दुनिया के पक्षधर हैं और अपने साहित्य में इसी को रचनात्मक काल्पनिक कौशल के साथ प्रस्तुत करते हैं. ये बातें नागालैंड से आईं आओ-नागा साहित्यकार और प्रकाशक लानुसांगला त्जुदिर ने कहीं. वे रांची के प्रेस क्लब में आयोजित दूसरे जयपाल-जुलियुस-हन्ना साहित्य सम्मान समारोह में बतौर मुख्य अतिथि बोल रही थीं.
इस अवसर पर केरल से आए आदिवासी कवि और कलाकार सुकुमारन चालीगाथा ने बीज वक्तव्य दिया. साथ ही बहुभाषाई गीत सम्मेलन भी हुआ जिसमें 24 झारखंडी कवियों और गीतकारों ने मातृभाषाओं में गीत गाए. इसका आयोजन झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा और टाटा स्टील फाउंडेशन के सहयोग से प्यारा केरकेट्टा फाउंडेशन ने किया था.
'आदिवासी कथाकहन में बड़ी ताकत'
आओ-नागा लेखिका और हेरिटेज पब्लिकेशन हाउस की सीईओ डॉ. लानुसांगला त्जुदिर ने समारोह का उद्घाटन करते हुए कहा कि साहित्य और संस्कृति ही हम आदिवासियों को जोड़ सकता है. पद्मश्री नागा साहित्यकार डॉ. तेमसुला आओ को याद करते हुए उन्होंने कहा कि आदिवासी कथाकहन (स्टोरीटेलिंग) में बड़ी ताकत है. नई पीढ़ी उनसे बहुत कुछ सीख सकती है. यह पुरस्कार इस दिशा में आने वाले समय में एक बड़ी पहलकदमी बनेगा.
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वायनाड से आए रावला कवि और केरल साहित्य अकादमी के सदस्य सुकुमारन चालीगाथा ने अपने बीज वक्तव्य में कहा कि उनका नाम बेथिमारन है. पर स्कूल में सुकुमारन कर दिया गया. आदिवासियों के साथ पूरे भारत में ऐसा ही हो रहा है. हमारी पहचान बदली जा रही है. केरल में सिर्फ मलयालम नहीं है. 2018 में हमने 41 आदिवासी कवियों का काव्य-संकलन निकालकर इस भ्रम को तोड़ने का प्रयास किया. जयपाल-जुलियुस-हन्ना पुरस्कार जिस तरह से नवोदित आदिवासी लेखकों को सामने ला रहा है, पूरे भारत में ऐसे प्रयास की जरूरत है.
सम्मान समारोह
समारोह में महराष्ट्र के संतोष पावरा को ‘हेम्टू’ (पावरा-हिंदी कविता संग्रह), पश्चिम बंगाल की पूजा प्रभा एक्का को ‘सोमरा का दिसुम’ (अनूदित कथा संग्रह) और अरुणाचल प्रदेश की तुनुङ ताबिङ को ‘गोम्पी गोमुक’ (आदी-मिन्योङ-हिंदी कविता संग्रह) के लिए साल 2023 का सम्मान अतिथियों द्वारा प्रदान किया गया. सम्मान के अंतर्गत शाल, प्रतीक चिह्न, प्रमाण-पत्र, नगद और प्रकाशित पुस्तकों की 50-50 प्रतियां भेंट की गईं. इस सत्र में सुकुमारन के मलयालम वक्तव्य का हिंदी अनुवाद एक्टिविस्ट अजीता जॉर्ज और लानुसांग्ला के अंग्रेजी भाषण का अनुवाद युवा फिल्मकार दीपक बाड़ा ने किया.
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सम्मान समारोह के दूसरे सत्र में बहुभाषाई गीतों के गायन का कार्यक्रम हुआ. इसके अंतर्गत स्वर्णलता आइंद, सनगी समद, अगुस्तुस मुण्डू (मुण्डा); तारकेलेंग कुल्लू, जुएल केरकेट्टा (खड़िया); सीता उरांव, सुखदेव उरांव (कुड़ुख); पानो हांसदा, संतोष मुर्मू, गणेश मुर्मू, शिवनारायण हेम्बरोम (संताली); हलधर अहीर, अपराजिता मेहता (पंचपरगनिया); कार्मेला एक्का (सादरी); असिंता असुर, भीखा असुर, रेशमी असुर (असुर); अणिमा तेलरा, सरोज तेलरा, थेदोर बिरजिया, जॉन बिरजिया (बिरजिया); प्रदीप कुमार दीपक (खोरठा); साधना समद चाकी, डॉ. रामदास बारदा और जगन्नाथ हांसदा (हो) कुल 25 झारखंडी गीतकारों ने अपनी मातृभाषाओं में गीतों की प्रस्तुति दी. इस सत्र की अध्यक्षता प्रख्यात मुंडारी कवि रेमिस कंडुलना और साहित्य अकादमी विजेता संताली कवयित्री जोबा मुर्मू ने की. संचालन हो लेखिका शांति सावैयां ने किया. धन्यवाद ज्ञापन घाटशिला से आए श्याम मुर्मू ने दिया.
पुरखा स्मरण और नगाड़ा वादन
समारोह का उद्घाटन पुरखा स्मरण और नगाड़ा वादन के साथ हुआ. अतिथियों और पुरस्कृत रचनाकारों का स्वागत प्यारा केरकेट्टा फाउंडेशन की अध्यक्ष ग्लोरिया सोरेङ और टाटा स्टील फाउंडेशन के जिरेन जेवियर तोपनो ने किया. आयोजन का परिचय देते हुए फाउंडेशन की सचिव वंदना टेटे ने कहा कि आदिवासी वाचिकता, लेखन और साहित्य जोहार की तरह आज सर्वव्यापी हो गया है. जयपाल-जुलियुस-हन्ना साहित्य पुरस्कार का मकसद भी यही है, नई पीढ़ी के लेखकों और उनके साहित्य को प्रोत्साहित करना और आदिवासी लेखकों को अखिल भारतीय स्तर पर एकजुट करना.
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