गुजरे हफ्ते दमिश्क के महलों, जेलों और मस्जिदों में सबसे ज़्यादा जो भावना उभर कर आई, वह थी उम्मीद. एक बेहतर देश की उम्मीद और यह कि दुनिया उन्हें इसे बनाने में मदद करेगी. उन्होंने पहले भी उम्मीद की है, लेकिन वो व्यर्थ निकली. 2011 में, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी ने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ मिलकर असद को 'अलग रहने' का आदेश दिया था. इन तमाम मुल्कों की तरफ से कहा यही गया था कि सीरिया के लोगों को अपना भविष्य खुद तय करना है.
सीरियाई लोगों का मानना है कि उन्होंने अब ऐसा कर लिया है. बशर अल असद की तानाशाही भरी सत्ता को गिराने का नेतृत्व भले ही इस्लामिस्ट समूह एचटीएस ने किया हो, लेकिन मौजूदा वक़्त में सीरिया के किसी भी व्यक्ति से बात की जाए तो उनका मानना यही है कि ये सत्ता परिवर्तन उस गुस्से का नतीजा है जो बरसों से सीरिया की आवाम के दिलों में था.
अब जबकि बशर की सत्ता को विद्रोहियों द्वारा उखाड़ फेंका गया है. तो माना यही जा रहा है कि यह पूरे देश द्वारा वर्षों के बलिदान, शहादत और संघर्ष का चरमोत्कर्ष था. कहा ये भी जा रहा है कि पश्चिम ने एक बार सीरियाई लोगों को धोखा दिया है. उसे ऐसा दोबारा नहीं करना चाहिए.
वर्तमान में लोग 11 साल पहले घटी एक घटना को याद कर रहे हैं. जिसे आज भी उनके द्वारा 'सर्वनाश' की संज्ञा दी जाती है. बताया जा रहा कि करीब ग्यारह साल पहले घौटा में सीरिया के लोगों द्वारा अपनी ही सरकार द्वारा किए गए रासायनिक हथियारों के हमले के सैकड़ों पीड़ितों को दफनाने में मदद की थी.
उस समय ओबामा ने सीरियाई लोगों को नई उम्मीद दी थी, उन्होंने असद द्वारा रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल को 'रेड लाइन' घोषित किया था. लेकिन ब्रिटिश संसद ने घौटा गैसिंग को दंडित करने के लिए सैन्य कार्रवाई को अस्वीकार कर दिया, जिससे राष्ट्रपति को भी ऐसा करने की अनुमति मिल गई.
वहां और 300 अन्य रासायनिक हमलों में हुई भयावहता के लिए कोई सज़ा नहीं दी गई. सीरियाई लोगों की उम्मीदें निराधार साबित हुईं. लेकिन वे फिर से उम्मीद कर रहे हैं. इससे भी बढ़कर, कई लोग इस बात पर दृढ़ हैं कि सीरिया को अब वह मदद मिलेगी जिसकी उसे ज़रूरत है क्योंकि उसने असद से खुद को मुक्त कर लिया है, जैसा कि पश्चिम ने एक दशक से भी ज़्यादा पहले निर्देश दिया था.
गौरतलब है कि बीता शुक्रवार सीरिया के लिहाज से खासा अहम साबित हुआ. नमाज़ के बाद प्राचीन उमय्यद मस्जिद में खुशी की गगनभेदी गर्जना स्वतः इस बात की तस्दीख कर रही थी कि असद से मिली मुक्ति के बाद सीरिया की आवाम खासी खुश है. '
अपनी इस आज़ादी से खुद लोग यही मान रहे हैं कि अब वे फिर से स्वच्छ हवा में सांस ले रहे हैं. जिस तरह असद को विद्रोहियों द्वारा सबक सिखाया गया कहा ये भी गया कि असद को उसके बुरे कर्मों का फल मिला है. असद को जिस तरह से सीरिया से खदेड़ा गया उसपर प्रतिक्रियाओं का दौर शुरू हो गया है.
जॉर्डन में मिले अमेरिका, तुर्की, यूरोपीय और अरब देशों के शीर्ष राजनयिकों ने असद के पतन का स्वागत किया, लेकिन साथ ही उनके द्वारा चेतावनी भी दी गई है. इन तमाम लोगों ने सीरिया में एक समावेशी सरकार की मांग की, अल्पसंख्यकों के अधिकारों का सम्मान और सीरिया को आतंकवादी समूहों का अड्डा बनने से आगाह किया है.
ध्यान रहे यह सावधानी एचटीएस और उसके नेता अहमद अल शारा के बारे में संदेह को दर्शाती है. अमेरिका अभी भी उसे आतंकवादी मानता है, उसका समूह मूल रूप से अल कायदा का ही एक अंग था. लेकिन दिलचस्प यह कि पश्चिम ने उन नेताओं के साथ समझौता कर लिया है जिन्हें पहले आतंकवादी करार दिया गया था.
वहीं रूस ने असद का समर्थन करते हुए तमाम ऐसी बातें की हैं जिनमें खासा विरोधाभास है. कहा जा रहा है कि आने वाले वक़्त में अवश्य ही सीरिया में कुछ वैसी ही अराजकता फैलेगी, जैसा कि हम गद्दाफी के बाद लीबिया में देख चुके हैं. रूस की तरफ से ये भी कहा गया है कि पश्चिम का यह दायित्व है कि वह निश्चित रूप से इसे गलत साबित करे.
अंत में बस इतना ही कि सीरिया रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण देश है, जो मध्य पूर्व के केंद्र में स्थित है और जिसकी सीमा पांच देशों से लगती है. और शायद यही वो कारण है कि तुर्की, कतर और जर्मनी सभी ने प्रभाव डालने के लिए अपने दूत वहां भेजे हैं. अन्य अपने समय का इंतजार कर रहे हैं.
ख़बर की और जानकारी के लिए डाउनलोड करें DNA App, अपनी राय और अपने इलाके की खबर देने के लिए जुड़ें हमारे गूगल, फेसबुक, x, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और वॉट्सऐप कम्युनिटी से.
- Log in to post comments
कभी West के हाथों धोखा खा चुका है Syria, अब कैसे बदलेंगे मुल्क के हालात?