समुद्रतट पर जब वानर सेना ने नल और नील की मदद से रामसेतु बना लिया था, तब लंका पर चढ़ाई करने से पहले प्रभु श्रीराम ने भगवान शिव की पूजा की थी. लेकिन क्या आपको पता है कि इस पूजा में पुजारी का दायित्व किसने निभाया था? यकीन मानिए कि जवाब सुनकर शायद आपको भरोसा न हो. जी हां, वह लंकापति रावण ही था, जिसने राम की शिवस्तुति में पुजारी का दायित्व निभाया था.
जामवंत का सुझाव
इस बारे में पंडित अर्जुन शास्त्री बताते हैं कि बरवै रामायण और आनंद रामायण में ऐसी कथाएं मिलती हैं. चूंकि रावण शिवभक्त था और राम भी शिवभक्त हैं. पंडित अर्जुन शास्त्री के अनुसार, जब समुद्र पर पुल बन गया तब प्रभु श्रीराम ने कहा कि करिहौ इहां शंभु स्थापना, मोरे हृदय परम कल्पना. खुशी होगी मुझे कि मैं यहां शिवजी को स्थापित करूं. पंडित जी के अनुसार, हमारे सनातन पद्धति में, हमारे वैदिक धर्म में ऐसा कहा गया है कि जिसकी हम आराधना करना चाहते हैं उसका कोई भक्त हो, उसका कोई जानकार हो, उससे पूजा करवाई जाए तो ज्यादा फल मिलता है. इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर प्रभु ने अपने सभागार में विचार किया. तब प्रभु के मंत्री जामवंत ने सुझाव देते हुए कहा कि इस समय तीनों लोकों में रावण से ज्यादा विद्वान कोई नहीं. रावण जैसा शिवभक्त भी कोई नहीं. उनसे पूजा करवाई जाए तो बेहतर फल मिलेंगे.
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तब प्रभु श्रीराम ने जामवंत को ही रावण के पास भेजा कि आप जाकर बात करें और इस काम को सिद्ध करें. तब जामवंत ने रावण के पास पहुंचकर बातचीत की और निवेदन किया, तो उस समय ब्राह्मण होने के नाते, आचार्य होने के नाते रावण ने पुरोहित कर्म स्वीकार किया.
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Untold story of Ramayana : श्रीराम की शिवपूजा में आचार्य बना था रावण