लोकसभा चुनाव से पहले चुनावी बॉन्ड (Electoral Bonds) को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को बॉन्ड स्कीम को अवैध करार देते हुए इस पर रोक लगा दी है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने कहा कि गुमनाम चुनावी बॉन्ड सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(ए) उल्लंघन है. इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले फंडिंग के बारे में जनता को जानने का अधिकार है.

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एसबीआई बैंक को तीन हफ्तों में रिपोर्ट देने के लिए कहा है. SBI को 12 अप्रैल 2019 से लेकर अब तक जिसने भी चुनावी बॉन्ड खरीदे इसके बारे में जानकारी चुनाव आयोग को देनी होगी. चुनाव आयोग यह जानकारी अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक करेगा. सर्वोच्च अदालत का यह फैसला लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है. क्योंकि 2018 में मोदी सरकार ने ही इसे अधिसूचित किया था.

क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड और कब हुआ लागू?
इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत 2018 में हुई थी. केंद्र सरकार ने 2 जनवरी, 2018 को इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को राजनीतिक दलों को मिलने वाले नकद चंदे के विकल्प के तौर पर लेकर आई थी. इसे लागू करने की पीछे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाना था. इससे साफ-सुथरा धन राजनीतिक पार्टियों के खाते में पहुंच रहा था. जिस पर ना तो टैक्स लग सकता और कोई सवाल उठा सकता था. कोई भी व्यक्ति, कॉरपोरेट कंपनी और अन्य संस्थाएं बॉन्ड खरीदकर राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में दे देता था और राजनीतिक दल इन बॉन्ड को बैंक में भुनाकर रकम हासिल करते थे. सरकार ने SBI की 29 ब्रांच सिर्फ इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने और उसे भुनाने के लिए अधिकृत की थीं.

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कौन से दल ले सकते थे ये चंदा?
इलेक्टोरल बॉन्ड के उसी पार्टी को चंदा लेने का अधिकार था, जो जनप्रतिनिधित्व कानून-1951 (Representation of the People Act, 1951) की धारा 29A के तहत रजिस्टर्ड है. इसके अलावा इसे लोकसभा या विधानसभा चुनाव में कम से कम 1 प्रतिश वोट मिला हो.

कैसे खरीदे जाते हैं Bonds?
इलेक्टोरल बॉन्ड कोई भी व्यक्ति एसबीआई की निर्धारित शाखाओं से जाकर खरीद सकता है. यह बॉन्ड 10 रुपये, 1000 रुपये, 10,000 रुपये और 1 करोड़ रुपये के गुणकों में जारी किए जाते हैं. बॉन्ड खरीदने की तिथि से 15 दिन के अंदर इसे जिस पार्टी को देना चाहते हैं उसे जमा करना होता है. अगर ऐसा नहीं किया गया तो 15 दिन के बाद यह निरस्त हो जाता है. सबसे खास बात ये है कि बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान गुप्त रखी जाती है और न ही उसपर इस पैसे के लिए कोई टैक्स लगाया जाता है. 

किस आधार पर दी गई थी चुनौती? 
केंद्र सरकार की चुनावी बॉन्ड योजना को कई दलों और व्यक्तियों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. इन सभी ने इस योजना को लागू करने के लिए फाइनेंस एक्ट 2017 (Finance Act 2017) और फाइनेंस एक्ट 2016 (Finance Act 2016) में किए गए कई संशोधन को गलत बताया. याचिकाकर्ताओं का दावा है कि कि इससे राजनीतिक दलों बिना जांच और टैक्स भरे फंडिंग मिल रही है.

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Supreme Court banned Electoral Bonds when did started political donations to political parties sbi know detail
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क्या है Electoral Bond, कब हुई शुरुआत और कैसे राजनीतिक पार्टियों पर बरस रहे थे
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क्या है Electoral Bonds, कब हुई शुरुआत और कैसे राजनीतिक पार्टियों पर बरस रहे थे नोट?
 

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