Where is karna kavach kundal now- महाभारत में कर्ण को एक महान योद्धा और दानवीर माना जाता है. जिसने भी महाभारत कथा पढ़ी या सुनी है, उन्हें यह जरूर पता होगा कि कर्ण के पास एक दिव्य कवच और कुंडल था. कहा जाता है कि इंद्र देव ने छल से कर्ण से कवच और कुंडल दान में ले लिया था. एक कथा के अनुसार आज भी वह कवच कुंडल धरती पर मौजूद है, आइए जानें आज के समय में वह जगह कहां है...
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कथाओं के अनुसार, कर्ण को यह कवच कुंडल जन्म से ही अपने पिता सूर्यदेव से प्राप्त हुए था. कवच- कुंडल के साथ कर्ण को युद्ध में हरा पाना नामुकिन था. ऐसे में भगवान कृष्ण ने इंद्र के साथ एक योजना बनाई. इंद्र एक विप्र के वेश में कर्ण के पास पहुंच गए और उनसे उनका कवच-कुंडल दान में मांग लिए. कर्ण दानवीर थे ही, उन्हों बिना कुछ सोचे अपना कवच-कुंडल इंद्र को दान में दे दिया..
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लेकिन, कवच-कुंडल को इन्द्र स्वर्ग नहीं ले जा पाए, रास्ते में ही उनका रथ नीचे उतरकर भूमि में धंस गया. तभी आकाशवाणी हुई कि देवराज इन्द्र, तुमने बड़ा पाप किया है और अर्जुन की जान बचाने के लिए तुमने छलपूर्वक कर्ण की जान खतरे में डाल दी है. इसलिए अब यह रथ यहीं धंसा रहेगा और यहां से तुम नहीं निकल पाओगे. ऐसे में इंद्र कर्ण के पास गए और वे कर्ण को कवच कुंडल देने लगे.
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हालांकि कर्ण दान में दी हुई चीज वापस नहीं लेने की बात कही. इंद्रदेव उस कवच कुंडल को स्वर्ग नहीं ले जा पाए थे, क्योंकि उन्होंने इसे झूठ से प्राप्त किया था. ऐसे में उन्होंने इस कवच कुंडल को किसी समुद्र के किनारे छुपा कर रख दिया. इंद्र देव को कवच छुपाते हुए चंद्रदेव ने देख लिया और बाद में चंद्रदेव कवच कुंडल को निकालकर अपने साथ ले जाने लगे.
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चंद्रदेव को समुद्र देव ने रोक दिया और कहा कि यह मेरी सुरक्षा में है. ऐसा कहा जाता है कि तब से वह कवच कुंडल समुद्र देव और सूर्यदेव की सुरक्षा में है. अगर कर्ण के पास उसका कवच और कुंडल होता तो तब तक उसे कोई नहीं मार सकता था. ऐसा मान्यता है कि आज भी कवच और कुंडल धरती पर मौजूद है.
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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कर्ण के कवच और कुंडल को ओडिशा के पुरी के पास स्थित कोणार्क के समुद्र के पास कहीं छिपाया गया है, कहा जाता है कि कोई भी यहां तक पहुंच नहीं सकता है.
Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है, जो लोक कथाओं और मान्यताओं पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टी नहीं करता है)