डीएनए हिंदी: शादी खत्म करने के लिए पति-पत्नी में से किसी एक पार्टनर की गलती साबित करना जरूरी नहीं. जस्टिस संजय किशन ने कहा कि भारत में तलाक से जुड़े कानून 'फॉल्ट थ्योरी' यानी की गलती की थ्योरी पर आधारित है. जबकि असलियत यह है कि दो अच्छे लोग भी कभी-कभी एक दूसरे के लिए गलत पार्टनर साबित हो सकते हैं.
सवाल यह है कि आखिर तलाक के लिए किसी एक को गलत साबित करना क्यों जरूरी है? संविधान पीठ ने कहा कि कई मामलो में तलाक लेते वक्त लोग जो गलतियां बताते हैं वे societal norms and expectations के आधार पर होती हैं. कोई कहता है 'वह सुबह नहीं उठती और मेरे माता पिता को चाय नहीं देती'.
सुप्रीम कोर्ट में उन कपल्स के लिए तलाक का प्रावधान नहीं है जो पति-पत्नी के तौर पर साथ नहीं रहना चाहते. साल 2016 में भी तलाक के कानून को लेकर एक संविधान पीठ बनाई गई थी. इसमें यह चर्चा हुई कि सुप्रीम को आर्टिकल 142 के तहत तलाक मंजूर करने की अपनी ताकत का इस्तेमाल करना चाहिए या मामला फैमिली कोर्ट में भेजा जाना चाहिए जहां लोगों को 6 से 18 महीने का समय दिया जाता है ताकि आपसी सहमति से तलाक हो.
Law Commission ने 1978 और दोबारा 2010 में सुझाव दिए थे कि हिंदू मैरिज एक्ट और स्पेशल मैरिज एक्ट में Irretrievable breakdown of marriage (ऐसे कपल जो पति-पत्नी के तौर पर साथ नहीं रहना चाहते उनका तलाक) को जोड़ा जाए. 28 सितंबर को सीनियर एडवोकेट जय सिंह ने भी सुप्रीम कोर्ट की बात का समर्थन किया कि ऐसे कपल्स का तलाक मंजूर कर दिया जाना चाहिए.
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Divorce चाहिए तो पार्टनर को गलत साबित करना जरूरी नहीं : सुप्रीम कोर्ट