Sharda Sinha Death: लाल बिंदी, सिन्दूर से भरी मांग, आंखों पर चश्मा और पान की लाली के साथ शारदा सिन्हा की सुरमयी आवाज में लोकगीत जब गूंजते हैं, तो वह अहसास शब्दों से नहीं, बल्कि दिल से महसूस किया जाता है. भारत की प्रसिद्ध लोक गायिका और बिहार कोकिला शारदा सिन्हा अब हमारे बीच नहीं रहीं. 5 नवम्बर की रात 9:20 बजे दिल्ली के एम्स अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली. उनका संगीत आज भी लोगों के दिलों में बसता है, लेकिन उनके संगीत का शुरुआती सफर बहुत कठिनाइयों से भरा था. शारदा सिन्हा को बचपन से ही गाने का शौक था, लेकिन शादी के बाद उनके संगीत के रास्ते में उनकी सास ही रुकावट बन गई थीं. हालात कुछ ऐसे बन गए थे कि उनकी सास ने इसके लिए खाना-पीना भी छोड़ दिया था.
शारदा सिन्हा ने अपने संगीत के सफर में कई संघर्ष किए. हालांकि, परिवार के समर्थन और अपनी मेहनत से उन्होंने संगीत की दुनिया में एक खास मुकाम हासिल किया. उनकी आवाज में वह जादू था जो छठ जैसे पवित्र पर्व को और भी खास बना देता था. उनकी गायकी के बिना यह पर्व अधूरा माना जाता है. बीतते सालों के साथ उनके लोक गीतों ने भोजपुरी, मैथिली और कुछ सुपरहिट बॉलीवुड फिल्मों में भी खूब पसंद किया गया है.
जब सास ने कर दी भूख हड़ताल
शारदा सिन्हा ने अपनी गायकी की शुरुआत एक छोटे से गांव से की, जहां उनकी सास को गाने का ख्याल नापसंद था. एक रिपोर्ट के मुताबिक, उनकी सास ने इस पर ऐतराज जताया था और गाने से रोकने के लिए भूख हड़ताल तक कर दी थी. लेकिन, शारदा सिन्हा को अपने पति ब्रज किशोर सिन्हा का पूरा समर्थन मिला. ब्रज किशोर ने अपनी मां को समझाया और शारदा सिन्हा को गाने की स्वतंत्रता दी. इसके बाद शारदा सिन्हा ने अपनी गायकी को जारी रखा और संगीत की दुनिया में अपनी पहचान बनाई.
सिर्फ घर में भजन गाने की अनुमति
मीडिया रिपोर्ट्स बताते हैं कि शादी के बाद शारदा सिन्हा की सास ने उन्हें सिर्फ घर में भजन गाने की अनुमति दी थी, जिससे शारदा सिन्हा को काफी दुख हुआ था. लेकिन उन्होंने संघर्ष किया और धीरे-धीरे परिवार के सभी लोगों का समर्थन हासिल किया. एक इंटरव्यू में शारदा सिन्हा बताती हैं, मेरी सास ने पहले तो बहुत विरोध किया, लेकिन जब लोग बाहर से मेरी गायकी की तारीफ करने लगे, तो उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया. उन्होंने आगे कहा था कि उनके ससुराल के लोग उनकी गायकी से काफी प्रभवित थे.
कदम कदम पर पति का साथ
शारदा सिन्हा ने हमेशा अपने पति को अपनी सफलता का श्रेय दिया. उनका मानना था कि ब्रज किशोर सिन्हा के समर्थन के बिना वह यह मुकाम नहीं हासिल कर सकती थीं. उनके संघर्ष और मेहनत ने उन्हें भारत की सबसे प्रतिष्ठित लोक गायिकाओं में से एक बना दिया. संगीत में उनके योगदान को देखते हुए सरकार ने 1991 में उन्हें पद्म श्री और 2018 में पद्म भूषण जैसे राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किया. हालांकि, शारदा सिंह के जीवन में एक बड़ा आघात तब आया जब उनके पति, ब्रज किशोर सिन्हा का कुछ महीने पहले ही ब्रेन हैमरेज के कारण निधन हो गया था . जिसके बाद वह इस सदमे से पूरी तरह उबर नहीं पाई थीं, और उनका यह दुख उनके जीवन का एक अहम हिस्सा बन गया.
भारतीय लोक संगीत ने खो दिया अमूल्य धरोहर
शारदा सिन्हा का जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्ची लगन और परिवार के सहयोग से किसी भी मुश्किल को पार किया जा सकता है. उनकी गायकी, विशेष रूप से छठ गीतों के लिए, बिहार ही नहीं, बल्कि पूरे देश में एक खास स्थान रखती है. उनका योगदान भारतीय लोक संगीत को अमूल्य धरोहर के रूप में जीवित रखेगा.
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Sharda Sinha Death: सास ने भूख हड़ताल पर बैठकर किया गाने का विरोध, पति ने ऐसे दिया साथ कि बन गईं 'बिहार कोकिला'