डीएनए हिंदी: मौत की सजा देने से पहले अपराधी को सुनवाई का एक मौका मिले या नहीं, इस मुद्दे पर अब सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ फैसला करेगी. चीफ जस्टिस यूयू ललित (Justice UU Lalit) की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने सोमवार को एक मामले में सुनवाई करते हुए यह सिफारिश की. 

बेंच ने मौत की सजा से जुड़े इस मामले की सुनवाई के लिए 5 जजों की संविधान पीठ गठित करने का आदेश दिया. संविधान पीठ की तरफ से मौत की सजा के मामले में तय किया नियम ही आगे पूरे देश में सभी अदालतों के सामने मिसाल बनेगा, जिसके आधार पर वे अदालतें अपने फैसले ले पाएंगी.

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अलग-अलग तरह के निर्णय हैं अदालतों के

CJI यूयू ललित के साथ ही जस्टिस एस. रविंद्र भट (Justice S Ravindra Bhat) और जस्टिस सुधांशु धूलिया (Justice Sudhanshu Dhulia) की मौजूदगी वाली बेंच ने माना कि मौत की सजा से पहले सुनवाई को लेकर विभिन्न अदालतों ने अलग-अलग फैसले दिए हैं. बेंच ने बच्चन सिंह मामले (Bachhan Singh Case) का जिक्र किया, जिसमें कोर्ट ने भारत के 48वें विधि आयोग की सिफारिशों के आधार पर मौत की सजा देने से पहले आरोपियों की अलग सुनवाई का आदेश दिया था. 

बेंच ने कहा, ऐसे सभी मामले, जिनमें मौत की सजा एक विकल्प है, सजा कम करने वाली परिस्थितियों को रिकॉर्ड में रखना जरूरी है. हालांकि, मौत की सजा घटाने वाले हालात आरोप साबित होने के बाद दोबारा शामिल किए जा सकते हैं. 

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आरोपियों को सुनवाई का अवसर मिलने पर स्पष्टता जरूरी

बेंच ने कहा, ऐसे मामलों में अभियुक्त को सुनवाई का वास्तविक और सार्थक अवसर देने पर स्पष्टता होना आवश्यक है. बेंच ने स्वत: संज्ञान लेते हुए इस मामले की सुनवाई शुरू की थी, जिसमें मौत की सजा को लागू करते समय संभावित परिस्थितियों पर विचार करने के संबंध में दिशानिर्देशों को फिर से तैयार करने का आदेश सुनाया. इस मामले की सुनवाई मौत की सजा देने में एकरूपता की कमी को ध्यान में रखते हुए शुरू की गई थी. 

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पहले बेंच ने कहा था- नहीं बदला जा सकता मौत की सजा का फैसला

चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मामले में 17 अगस्त को अपना फैसला रिजर्व किया था. उस समय बेंच ने कहा था कि मौत की सजा देने का फैसला न बदला जा सकता है और न ही दोषी के मरने के बाद उसे रिकॉर्ड से हटाया जा सकता है. ऐसे में आरोपी को अपनी सजा कम कराने के लिए एक सुनवाई का मौका देना जरूरी है, ताकि कोर्ट को बताया जा सके कि मृत्युदंड की जरूरत नहीं है.

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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के केस पर लिया था फैसला

मौत की सजा कम करने और दोषी का पक्ष सुनकर फैसला लेने का यह मामला इरफान नाम के शख्स की याचिका के बाद सामने आया. इसमें निचली अदालत ने उसे मौत की सजा सुनाई थी और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इसे जारी रखा था.

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Supreme Court की संविधान पीठ तय करेगी मौत की सजा में सुनवाई के नियम
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