डीएनए हिंदी: हिंदी से अंग्रेजी और अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद (Hindi-English Translation) में गड़बड़ी की वजह से झारखंड सरकार बड़ी मुश्किलों का सामना कर रही है. महत्वपूर्ण कानूनों के लिए बिल तैयार करते हुए ड्राफ्ट के हिंदी-अंग्रेजी अनुवाद में बार-बार गड़बड़ी हो रही है. इस वजह से कई महत्वपूर्ण विधेयक विधानसभा में पारित होने के बावजूद अधर में लटक जा रहे हैं. राज्यपाल रमेश बैस (Ramesh Bais) पिछले एक साल में झारखंड सरकार (Jharkhand Government) की ओर से विधानसभा में पारित कराए गए पांच विधेयकों को इन्हीं गड़बड़ियों की वजह से सरकार को लौटा चुके हैं. उन्होंने इसी हफ्ते जिस बिल को बगैर मंजूरी सरकार को लौटाया है, वह जीएसटी लागू होने के पहले टैक्सेशन से जुड़े विवादों के समाधान से संबंधित है.
राज्यपाल की ओर से लौटाए गए इस पांचवें विधेयक का नाम है- 'झारखंड कराधान अधिनियमों की बकाया राशि का समाधान बिल, 2022'. यह विधेयक झारखंड विधानसभा के मॉनसून सत्र में पारित हुआ था. राज्यपाल ने इसकी हिंदी और अंग्रेजी ड्राफ्टिंग में अंतर और गलतियों को चिह्नित करते हुए सरकार से कहा है कि इन्हें ठीक करने के बाद वापस विधानसभा से पारित कराकर स्वीकृति के लिए भेजें.
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हिंदी और अंग्रेजी के ड्राफ्ट में मिला अंतर
राज्यपाल रमेश बैंस ने पाया है कि इस विधेयक के सेक्शन तीन की अंग्रेजी ड्राफ्टिंग में प्वाइंट्स को ए और बी लिखा गया है, जबकि इसकी हिंदी ड्राफ्टिंग में 'ए' की जगह एक और 'बी' की जगह दो लिखा गया है. हिंदी ड्राफ्टिंग में 'ए' को 'क' और 'बी' को 'ख' लिखना चाहिए था. इसी तरह एक जगह हिंदी में छूट का प्रतिशत 60 लिखा गया है, जबकि अंग्रेजी में 50 परसेंट लिखा गया है.
राज्यपाल रमेश बैस ने इसके पहले बीते मई महीने में झारखंड राज्य कृषि उपज और पशुधन विपणन (संवर्धन और सुविधा) विधेयक-2022 सरकार को लौटाया था. इसमें उन्होंने भाषाई गड़बड़ियों के 10 बिंदुओं पर आपत्ति जताते हुए इनमें सुधार करने और विधेयक को फिर से विधानसभा से पारित कराकर भेजने को कहा था. इस विधेयक में राज्य सरकार ने मंडियों में बिक्री के लिए लाए जाने वाले कृषि उत्पादों पर 2 प्रतिशत का अतिरिक्त कर लगाने का प्रावधान किया है. अप्रैल महीने में राजभवन ने भारतीय मुद्रांक शुल्क अधिनियम में संशोधन विधेयक 2021 को सरकार को लौटा दिया था. राजभवन ने सरकार को लिखे पत्र में बताया था कि विधेयक के हिंदी और अंग्रेजी ड्राफ्ट में समानता नहीं है. इससे विधेयक के प्रावधानों को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा हो रही है.
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कई कानूनों में आ रही है दिक्कत
झारखंड सरकार ने पिछले साल विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान 21 दिसंबर 2021 को 'भीड़ हिंसा रोकथाम और मॉब लिंचिंग विधेयक- 2021' पारित किया गया था. सरकार की ओर से कहा गया कि यह कानून बनने के बाद भीड़ की हिंसा की घटनाओं पर अंकुश लगेगी. विधेयक के कानून बनते ही मॉब लिंचिंग के आरोपियों को उम्रकैद तक की सजा हो सकती है. यह विधेयक जब राज्यपाल के पास उनकी मंजूरी के लिए भेजा गया तो राज्यपाल ने हिंदी और अंग्रेजी प्रारूप में कई गड़बडियों के साथ-साथ भीड़ की परिभाषा पर आपत्ति जताते हुए राज्य सरकार को लौटा दिया. यह विधेयक अब तक दोबारा पारित नहीं कराया जा सका है.
सवाल उठ रहा है कि विधेयकों का ड्राफ्ट तैयार करने वाले राज्य सरकार के संबंधित विभागों में सबसे ऊंचे ओहदों पर बैठे अफसर भाषाई गड़बड़ियों को कैसे नजरअंदाज कर रहे हैं? हैरत की बात यह है कि राजभवन की ओर से एक-एक करके पांच विधेयकों की भाषाई गड़बड़ियां चिह्नित करके लौटाए जाने के बावजूद इस मसले पर अब तक राज्य सरकार का कोई स्टैंड सामने नहीं आया है. हालांकि, विभागों के उच्चाधिकारियों का कहना है कि जो गड़बड़ियां चिह्नित की गई हैं, उनका अध्ययन करके उन्हें दूर कर लिया जाएगा.
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दरअसल, सच यह है कि राज्य सरकार के विभिन्न विभागों में सक्षम अनुवादकों की भारी कमी है. राज्य सरकार के सचिवालय में अनुवादक सहित विभिन्न स्तर पर बड़ी संख्या में पद रिक्त हैं. राज्य सरकार में सेक्शन ऑफिसर के 657 पद स्वीकृत हैं लेकिन इनमें से 600 पद खाली पड़े हैं. सहायक प्रशाखा पदाधिकारी के 1313 पद स्वीकृत हैं. इसमें 708 सहायक प्रशाखा पदाधिकारी ही कार्यरत हैं. इसी तरह से अवर सचिव के 58, उपसचिव के 10 पद और संयुक्त सचिव के 10 पद रिक्त हैं. जाहिर है इन रिक्तियों की वजह से सरकार का काम विभिन्न स्तरों पर प्रभावित हो रहा है.
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झारखंड सरकार से हिंदी-अंग्रेजी अनुवाद में हो रही गड़बड़ी, राज्यपाल ने साल भर में लौटा दिए पांच बिल