लेखन की सारी विधाएं एक तरफ और व्यंग्य दूसरी तरफ. शायद आप यकीन न करें, मगर जो लोग लेखन या पठन पाठन से जुड़े हैं, इस बात को समझते हैं कि इस दुनिया में सबसे जटिल है व्यंग्य लिखना भी और समझना भी. व्यंग्य पर बात करते हुए हमें इसे भी समझना होगा कि चुहलबाजी भले ही एकबार को आसान लगे लेकिन किसी मुद्दे, किसी व्यक्ति, किसी वस्तु या फिर खुद पर व्यंग्य करना नाकों चने चबाने जैसा है.
व्यंग्य में न कोई 'व्यक्ति विशेष' पवित्र और धार्मिक रहता है, न ही कोई विचार. कहीं कुछ 'धार्मिक और पवित्र' रहता है तो वो है बस हंसी और किसी मुद्दे (जिसपर व्यंग्य किया गया है ) को सोचकर चेहरे पर आने वाली मुस्कान.
बतौर पाठक व्यंग्य कहीं न कहीं हमें इस बात का भी आभास कराता है कि चाहे परिस्थितियां कितनी भी जटिल क्यों न हों. हमें अपनी हंसी को मारना नहीं है. उसे अपनी आत्मा में, अपने आप में जिंदा रखना है.
जिक्र व्यंग्य का हुआ है तो आइये रुख करें उन 5 किताबों का जो न केवल अपनी शैली से हमें गुदगुदाती हैं बल्कि व्यंग्य विधा की ये किताबें हमारे दिमाग के लिए खाद जैसी हैं जो उसी उर्वरा शक्ति को बढ़ाती हैं.
किताब - दुम की दरकार
प्रकाशक - ज्ञान गंगा प्रकाशन (व्यंग्य संग्रह)
लेखक - शिव शर्मा
मूल्य - 400
दुम की दरकार के लेखक शिव शर्मा का मानना है कि समाज कोई भी हो, कैसा भी हो दुम बहुत जरूरी है. लेखक के अनुसार जिन जीवों के पास दुम होती है वो अमूमन शिखर तक पर जाते हैं. वहीं जो दुम विहीन होते हैं वो सड़कों तक सीमित रहते हुए वहीं रेंगते हैं.
किताब में लेखक दुम को सहारा बनाते हुए अपने परिवेश के समसामयिक विषयों एवं समाज की विसंगतियों, विदूपताओं पर करारी चोट करते हुए नजर आते हैं.
किताब - माफिया जिंदाबाद
प्रकाशक - सत्साहित्य प्रकाशन (व्यंग्य संग्रह )
लेखक - हरीश नवल
मूल्य - 400
मुहावरा शैली में लिखी गई ये किताब यानी माफिया जिंदाबाद न केवल पाठक में जिज्ञासा का संचार करती है बल्कि उन छोटी छोटी बातों / घटनाओं के बारे में बताती है जिन्हें प्रयास हम नजरअंदाज कर देते हैं. इस किताब की यूएसपी इसकी भाषा को बताया जा सकता है जो साफ़ सुथरी और मनोरंजक है. किताब पढ़ते हुए ये विचार आपके भी जेहन में आएगा कि इसमें वो तमाम चीजें हैं जिन्हें हम मौके बेमौके नजरअदांज कर देते थे.
किताब - डेमोक्रेसी का चौथा खंबा
प्रकाशक - ग्रंथ अकादमी (व्यंग्य संग्रह )
लेखक - संजीव जयसवाल संजय
मूल्य - 400
ग्रंथ अकादमी से छपी संजीव जयसवाल संजय की किताब डेमोक्रेसी का चौथा खंबा; का शीर्षक ही हमें इस किताब की मारक क्षमता के बारे में बताता है. किताब खुद इस फ़िक्र में है कि पता नहीं किस भले आदमी ने बता दिया कि डेमोक्रेसी के तीन खंबे होते हैं. लेखक का मानना है कि अपने देश में डेमोक्रेसी का एक चौथा खंबा धर्मपालिका भी है और इसी पर देश टिका हुआ है. किताब समाज में व्याप्त विसंगतियों पर महीन कटाक्ष करती है.
किताब - सत्तापुर के नकटे
प्रकाशक - प्रभात प्रकाशन (व्यंग्य संग्रह )
लेखक - गोपाल चतुर्वेदी
मूल्य - 250
कम ही किताबें होती हैं जिन्हें पढ़ते हुए किसी पाठक को एक साथ दो भावों की अनुभूति होती है. सत्तापुर के नकटे भी एक ऐसी ही किताब है. तीखे व्यंग्यों का ये रोचक संकलन मानवीय संवेदना और मर्म को छूता है. बतौर पाठक हम सवाल करते हैं और मिलता है कि एक समाज के रूप में अगर हमें किसी ने सबसे ज्यादा ठगा है तो वो सिर्फ और सिर्फ राजनीति है. नेता हमें जिस तरह बेवक़ूफ़ बनाते हैं उसकी बानगी है ये किताब.
किताब - नेता बनाम आलू
प्रकाशक - विद्या विहार (व्यंग्य संग्रह )
लेखक - आलोक पुराणिक
मूल्य - 175
आलोक पुराणिक द्वारा लिखित नेता बनाम आलू इसलिए भी एक जरूरी व्यंग्य संग्रह है क्योंकि इसमें बाजार के पूरे कांसेप्ट को बखूबी समझा जा सकता है. किताब बताती है कि हम बाजार से कुछ इस तरह जकड़े हुए हैं कि अगर अब हम चाह भी लें तो शायद इससे मुक्त न हो पाएं.
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ये 5 सिर्फ व्यंग्य संग्रह नहीं हैं, इनके मजेदार किस्सों में छिपा है जिंदगी का फलसफा