डीएनए हिंदी : नारीवादी लेखक-आलोचक सुजाता की किताब 'विकल विद्रोहिणी : पंडिता रमाबाई' के संदर्भ में 'भारतीय नवजागरण का स्त्री-पक्ष' विषय पर गोष्ठी आयोजित हुई. यह गोष्ठी इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (एनेक्सी) में राजकमल प्रकाशन समूह की ओर से की गई थी. इस मौके पर प्रसिद्ध इतिहासकार सुधीर चंद्र और वरिष्ठ साहित्यकार अनामिका बतौर वक्ता मौजूद रहे. बातचीत शुरू करने से पहले रंगकर्मी दिलीप गुप्ता ने किताब से एक अंश का पाठ किया.
सुजाता ने अपने वक्तव्य में कहा, "पंडिता रमाबाई की जीवनी लिखने का फैसला मैंने इसलिए किया कि मैं उस वक्त को जीना चाहती थी, जो उन्होंने जिया. उनका जीवन अति नाटकीय, तूफानों और उथल-पुथल से भरा था. 19वीं सदी, जो कि पुरुष प्रधान सदी थी, वह उसमें अपने पांव जमा पाने में सफल रहीं. जिस तरह का वह समाज था, उस समय उनके चरित्र पर कई लांछन लगे होंगे. उनके इसी निर्भीक व्यक्तित्व ने मुझे प्रभावित किया."
हिंदू धर्म में औरत को औरत बनाए जाने की ट्रेनिंग
सुजाता ने कहा, "भारत में सबसे पहले पंडिता रमाबाई ने ही नारीवाद की अवधारणा को उद्घाटित किया. उन्होंने अपनी किताब 'द हाई कास्ट हिन्दू वुमन' (The High-Cast Hindu Woman) में लिखा कि किस तरह हिंदू धर्म में एक औरत को औरत बनाए जाने की ट्रेनिंग दी जाती है. रमाबाई ने देश-विदेश में अकेले यात्राएं करते हुए अपने भाषणों के जरिए धन एकत्रित किया और भारत लौटने पर हिंदू विधवा लड़कियों के लिए स्कूल खोला. यह कोई आसान काम नहीं था. ऐसा कर पाना आज भी किसी के लिए बहुत मुश्किल है." सुजाता ने कहा कि जब भी समाज सुधारकों की फेहरिस्त बनती है तो उसमें पंडिता रमाबाई का नाम शामिल नहीं किया जाता है. क्या केवल इसलिए कि वह एक स्त्री थी? आज के समय में कई राजनीतिक दल और संगठन उनका नाम लेकर फायदा लेना चाहते हैं, लेकिन अगर वो एक बार रमाबाई के बारे में विस्तार से पढ़ेंगे तो उनके नाम से दूरी बना लेंगे.
स्त्री की मुक्ति ही मानवता की मुक्ति: अनामिका
इस मौके पर अनामिका ने कहा कि पंडिता रमाबाई हमारे समाज को समझाने निकली थीं. इसके लिए उन्होंने अंग्रेजी, संस्कृत और बंगला भाषा सीखी ताकि वे लोगों से संवाद कर सकें. उनका सबसे बड़ा योगदान यही है कि वे संवाद के लिए प्रस्तुत होती हैं. उन्होंने कहा, "हर बड़े स्त्रीवादी आंदोलन के आंचल के तले हमेशा कोई न कोई बड़ा मुद्दा रहा है. स्त्रियों ने कभी अकेले अपनी मुक्ति के प्रयास नहीं किए. जिस तरह एक स्त्री को शिक्षित करना पूरे परिवार को शिक्षित करना है, उसी तरह स्त्री की मुक्ति ही मानवता की मुक्ति है. बृहत्तर मानवता की सेवा के रमाबाई के प्रयासों में भी हमें यही देखने को मिलता है." इसके बाद उन्होंने कहा कि पंडिता रमाबाई पर सुजाता की किताब बहुत ही व्यवस्थित किताब है. इसमें रमाबाई के बारे में सब कुछ है. इसमें उनकी पब्लिक डिबेट, कई लोगों से उनके संवाद भी शामिल हैं. यह बहुत ही सहज और सरल ढंग से लिखी किताब है.
इसे भी पढ़ें : स्त्री के अंतर्मन को समझने की नई दृष्टि देता है साझा कविता संग्रह 'प्रतिरोध का स्त्री-स्वर'
नवजागरण की चेतना फिर से जगानी चाहिए: सुधीर चंद्र
इस मौके पर सुधीर चंद्र ने किताब से सुजाता की पंक्तियां कोट करते हुए कहा, "उन्नीसवीं सदी भारत में पुनर्जागरण की सदी मानी जाती है. खासतौर पर महाराष्ट्र और बंगाल में इस दौर में समाज सुधारों के जो आंदोलन चले, उन्होंने भारतीय मानस और समाज को गहरे प्रभावित किया." उन्होंने कहा, "मैं लेखक से पूर्ण सहमत हूं कि न केवल महाराष्ट्र बल्कि पूरे देश के नवजागरण को हमने अभी तक समझा ही नहीं है. देश में नवजागरण की चेतना फिर से जगानी चाहिए. यह हम तभी जान सकेंगे जब हमारे समाज में जो महान स्त्री-पुरुष थे, जिन्होंने समाज में नवजागरण की ज्योति जलाई, उन पर गंभीरता से ऐसा कुछ लिखा जाए जो कभी नहीं लिखा गया. इसका बीड़ा खास कर युवा वर्ग को उठाना होगा." उन्होंने कहा कि सुजाता ने पाठकों को एक अद्भुत किताब दी है और आज हम इसका उत्सव मना रहे हैं. लेकिन उस समय केवल एक नहीं वरन और भी कई रमाबाई हुईं थी जिनके योगदान की आज खोज करने की जरूरत है. हमें इस पर विचार करना चाहिए कि हमारे पूर्वज ऐसे महान लोग थे और आज हम क्या हो गए हैं?
कुछ किताबें चुनौती की तरह होती हैं : शोभा अक्षर
कार्यक्रम का संचालन युवा कवि शोभा अक्षर ने किया. उन्होंने श्रोताओं को गोष्ठी के विषय से परिचित करवाते हुए कहा कि कुछ किताबें चुनौती की तरह होती हैं, जो आपके जेहन में लगे जाले को छुड़ाती हैं. इस अर्थ में सुजाता की लिखी पंडिता रमाबाई की जीवनी स्त्रीद्वेष से पीड़ित पितृसत्तात्मक समाज पर एक कड़ा प्रहार है.
जरूरी सूचनाओं से लैस किताब
गौरतलब है कि सुजाता ने पंडिता रमाबाई की जीवनी 'विकल विद्रोहिणी : पंडिता रमाबाई' लिखी है. पंडिता रमाबाई भारत में स्त्रीवादी आंदोलन की अवधारणा की शुरुआत करने वाली एक प्रमुख चितंक रही हैं. सुजाता की किताब हमें बताती है कि किस तरह प्राचीन शास्त्रों की अद्वितीय अध्येता पंडिता रमाबाई ने उपेक्षाओं और अपमानों से लगभग अप्रभावित रहते हुए औरतों के हक में न केवल बौद्धिक हस्तक्षेप किया, बल्कि समाज सेवा का वह क्षेत्र चुना जो किसी अकेली स्त्री के लिए उस समय लगभग असंभव माना जाता था. उन्होंने विधवा महिलाओं के लिए आश्रम बनवाए, उनके पुनर्विवाह और स्वावलंबन की पहल की. यूरोप व अमेरिका जाकर भारतीय महिलाओं के लिए समर्थन जुटाने का उनका भगीरथ प्रयास अक्सर धर्म परिवर्तन के उनके निर्णय की आलोचना की आड़ में छिपा दिया गया. यह किताब उस दौर की उन अनेक महिलाओं के बारे में भी जरूरी सूचनाएं उपलब्ध कराती है, जिन्हें आधुनिक इतिहास लेखन करते हुए अक्सर छोड़ दिया जाता है.
देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगल, फ़ेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर.
- Log in to post comments
पंडिता रमाबाई के परंपराभंजक तेवर पर चर्चा, बताया- भारत की पहली विकल विद्रोहिणी