डीएनए हिंदी. जिन रचनाकारों के लेखन से आदिवासी विमर्श को नई गति मिली है, जिनके वक्तव्यों को आदिवासी दर्शन के तौर पर जाना गया, उन चंद लेखकों में हैं वंदना टेटे. झारखंड में पली-बढ़ीं वंदना की पहचान लेखक, कवि और एक्टिविस्ट के रूप में निर्विवाद है. वंदना की कविताओं, लेखों में आदिवासी जीवन और उनका समाज खूब उभर कर आता है. देश भर के साहित्यिक व अकादमिक संगोष्ठियों में दिए गए उनके वक्तव्य आदिवासी जीवन दर्शन के रूप में पहचाने गए.
उन्होंने आदिवासी साहित्य को ‘प्रतिरोध का साहित्य’ की बजाय ‘रचाव और बचाव’ का साहित्य कहा है. आज डीएनए हिंदी के पाठकों के लिए उनकी कुछ कविताएं सुलभ हुई हैं. इन कविताओं में भी आपको जल, जमीन, जंगल और आदिवासी जीवन के स्वर सुनाई पड़ेंगे.
1. क्योंकि सच सूरज है
चांद और सितारे
जिस दिन थक जाएंगे
जिस दिन सूरज
अपनी गर्मी से बेबस हो जाएगा
बारिश जब अपनी ही बूंदों से
बुरी तरह भीग जाएगी
नदी के रुकने के इन्तजार करते हुए
हम भी कहीं ठहर जाएंगे
और थोड़ा सुस्ता लेंगे
पुरखा पत्थर पर सिर टिकाते हुए
टांगों को आसमान तक पसार कर
पिछली सदियों से
समाजशास्त्री और मानवविज्ञानी
हमारे शुभचिंतक दार्शनिक
राजनीतिज्ञ और सामाजिक प्रबंधक
कहते आ रहे हैं -
अगले कुछ दशकों में
पूरी तरह से खत्म हो जाएंगे आदिवासी
ग्लोबल इकोनॉमी का बुलडोजर
सपाट कर देगा धरती को
और हत्यारे शिकारियों का दल
चुन-चुनकर मार देगा
जंगल के हर जीव-जंतु को
हम सोचते हैं
समुद्र मंथन के बाद भी
जीवित है मैना
ऐरावत हाथी की पीढ़ियां
अभी भी झूमते-झामते आते रहते हैं
और
ढूंढ़ते हैं अपना हिस्सा
और जब नहीं मिलता उन्हें हंड़िया-महुआ
छोड़ जाते हैं अपना गुस्सा
अभी भी दिखाई देती हैं
डूंडलू जैसी परी तितलियां
और कतारबद्ध चींटियां
टाइल्स के 'बैरीकेड' की परवाह किए बिना
आ धमकती हैं आलीशान बंगलों में
सोचती हूं
जिस दिन पौधे उगने से मना कर देंगे
पहाड़ में नहीं धड़केंगे दिल - झरने
कौव्वे कांव-कांव नहीं पुकारेंगे
तोते अभिनय करना भूल जाएंगे
हमारे सबसे पुराने दोस्त - कुत्ते
हमसे हमेशा के लिए कुट्टी कर लेंगे
पहाड़ सदा-सदा के लिए
पाताल की गोद में सो जाएंगे
हम भी जी भरकर विश्राम करेंगे
फिलहाल जो भी कर रहे हैं भविष्यवाणियां
हमारे और इस ग्रह के खात्मे की
वे सब न हमको समझते हैं
और ना ही जानते हैं सृष्टि का अबूझ मनोविज्ञान
फिर भी हम
जो उनकी झूठी भविष्यवाणियों में
उनके विकास के नक्शे में
कई सदी पहले ही
'एक्सटिंकट' और विलोपित हो चुके हैं
चांद तारों की तरह टिमटिमा रहे हैं
क्योंकि सच सूरज है
क्योंकि महज कृत्रिम सत्ता के जोर पर
कोई रंगहीन मनुष्य नहीं हो जाता
अंतहीन अपार रंगबिरंगी सृष्टि का मालिक
और इस ग्रह के जीव-जंतुओं का भविष्यवक्ता।
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2. संवाद जारी है
बड़ी रफ्तार है तुम्हारी
तुम्हें दौड़ते देख सहमते हैं
मेरे गांव और
दौड़ पड़ते हैं
जंगल की ओर
और मान लिए जाते हैं खास
मान तो लिए जाते हो तुम भी
'खास'
तुम्हारे होंठो पर फैल जाती है
एक खास गहरी मुस्कान
तुम्हारी रफ्तार और बढ़ जाती है।
मुस्कान मेरे गांव के ओठों पर भी है
पर बहुत फर्क है मुस्कान में दोनों के।
पर अब मेरी बकरियां
बड़े-बड़े बोल्डर वाली सड़कें हों
या दूर कहीं हॉर्न बजने पर
कभी घबराकर बेतहाशा
दिशाहीन हो जाने वाली
मेरी बकरियां
तुम्हारी रफ्तार बढ़ाने वाली सड़कों पर
चलती घबराती नहीं
आराम से ठाट से चलती
तुम्हारे स्पीड ब्रेकर का काम करती हैं।
अलबत्ता नदियां पुल के नीचे से
बहती हुई बेचैन हैं
खेत - पहाड़ की आंखों में
अपनी बारी के इंतजार से परे की
एक भाषा है
पर युवा होते छाता पेड़
खुश हैं तुम्हारी रफ्तार से
उड़ते धूल के थपेड़े खाते
खड़े होने की कोशिश में हैं
आदेशपाल की तरह
इन सब के बीच पसरी है
एक भाषा जो संवाद कर रही है
हरेक की अपनी-अपनी रफ्तार है
अपने तरीके हैं संवाद के
गांव, नदी, बकरी, पुल, खेत, पहाड़
जानते हैं तेज रफ्तार का अंत
युवा छाता पेड़ नहीं जानते
पर संवाद जारी है
समझ जाएंगे।
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3. बेखौफ
बेखौफ है नदी
पहाड़ के सीने में
बेखौफ है पहाड़
जंगल की गोद में
बेखौफ है जंगल
आसमान के साये में
बेखौफ है आसमान
सृष्टि के अनंत में
बेखौफ है सृष्टि
पुरखा भाषाओं में
बेखौफ हैं पुरखा भाषाएं
सजीव-निर्जीव अभिव्यक्तियों में
बेखौफ हैं अभिव्यक्तियां
नदियों के प्रवाह में
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आदिवासी जीवन की पैरोकार कविताएं, पढ़ें कवि-एक्टिविस्ट वंदना टेटे की तीन रचनाएं