डीएनए हिंदी:  हंस साहित्योत्सव 2023 के दूसरे दिन के आखिरी सत्र में विजयदान देथा 'बिज्जी' की कहानी 'रिजक की मर्यादा' पर आधारित नाटक  'बड़ा भांड तो बड़ा भांड' का मंचन हुआ. मुक्ताकाशी मंच पर हो रही इस प्रस्तुति ने ऐसा समां बांधा कि दर्शक घंटे भर दम साधे नाटक देखते रहे. दृश्य इतने कसे हुए थे कि अगर किसी को बीच नाटक में 'नेचर कॉल' का अहसास भी हुआ हो तो वे उसे दबाकर बैठे रहे होंगे. बस, बीच-बीच में तालियों की गड़गड़ाहट सुनाई दे रही थी. 
दरअसल, यह नाटक बिज्जी की कहानी पर आधारित है, जिसे इम्प्रोवाइज किया है एनएसडी के कलाकार अजय कुमार ने. खुले मंच पर अजय कुमार का एकल अभिनय वाकई लाजवाब रहा. प्रकाश व्यवस्था बहुत सीमित होते हुए भी प्रभावी थी. संगीत पक्ष बहुत प्रबल था. इन दोनों के संयोग के बीच शंकर भांड बने अजय कुमार का सहज अभिनय फब रहा था, तिसपर उनका सुरीला गला पूरे नाटक में जान डाल रहा था.

रिजक की मर्यादा
बिज्जी की मूल कहानी 'रिजक की मर्यादा' एक कलाकार (भांड) की त्रासद कहानी है. इस कहानी में शंकर भांड बहरुपिया है. वह किसी भी चरित्र में ढल जाता है. साहित्यलेखन में जिसे परकाया प्रवेश कहते हैं, उस परकाया प्रवेश में शंकर भांड का कोई मुकाबला नहीं. वह जिस किसी का रूप धरता है, उसमें सहज ही डूब जाता है, उस रूप को जीने लगता है. इस कहानी में वह साधु का वेश धरकर किसी इलाके में जाता है. इस स्वांग में वह साधु को इतना विश्वसनीय बना देता है कि शंकर भांड को कोई पहचान ही नहीं पाता है. सब यही समझते हैं कि कहीं का कोई सिद्ध साधु उनके इलाके में आया है. उसकी ख्याति दूर-दूर तक फैल जाती है. उसी इलाके का एक सेठ सपरिवार उसका भक्त हो जाता है. अगले कुछ महीनों में यह भक्ति इतनी बड़ी हो जाती है कि सेठ अपनी सारी संपत्ति साधु को दान कर देना चाहता है. लेकिन यहां भांड अपने असली रूप में आ जाता है और बताता है कि मैं कोई साधु थोड़े हूं. मैं तो शंकर भांड हूं. सेठ अपना सिर पीट लेता है. फिर पूछता है कि जब तुझे इतनी दौलत मिल गई थी तो तूने फिर साधु वेश छोड़ा क्यों. शंकर भांड कहता है कि यह 'रिजक की मर्यादा' है.

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'चुड़ैल' का स्वांग
इस लोककथा में विजयदान देथा ने रिजक की यह मर्यादा आगे भी बरकरार रखी है. उनकी कहानी यह बताती है कि राजा को अपनी मर्यादा का ख्याल हो न हो, रिजक अपनी जान देकर भी अपनी कला की मर्यादा रखता है. इस लोककथा के अगले हिस्से में राजा ने शंकर भांड को 'चुड़ैल' का स्वांग धरने को कहा. शंकर भांड ने राजा को समझाना चाहा कि उसे 'चुड़ैल' का स्वांग करने का आदेश न दें क्योंकि चुड़ैल किसी भी मनुष्य का सीना फाड़कर रक्तपान करने के बाद ही शांत होती है. और अगर उसने चुड़ैल का स्वांग किया तो उसका स्वांग तभी पूरा होगा जब वह किसी का रक्तपान कर लेगा. स्वांग में डूब जाने के बाद उसे होश नहीं रहेगा कि सामने मंत्री आया या संतरी या कि राजा, जो भी उसके सामने पड़ेगा वह उसकी छाती फाड़कर रक्तपान कर लेगा. 

बहानेबाजी का संदेह
राजा और मंत्रियों ने समझा कि शंकर भांड यह स्वांग कर पाने में असमर्थ है इसीलिए इस तरह की बहानेबाजी कर रहा है. मंत्री ने राजा को उकसाया और राजा ने अपना आदेश बरकरार रखा. भारी मन से शंकर भांड ने अगले दिन 'चुड़ैल' का स्वांग धरने का वादा किया.

'चुड़ैल' आई तो सब भागे
अगले दिन शंकर भांड 'चुड़ैल' का रूप धरकर हाजिर हुआ. चुड़ैल का यह स्वांग इतना विश्वसनीय था कि राजा से लेकर प्रजा तक उसे देखकर भागे. लेकिन राजा का साला जो नशे में धुत्त रहता था, वह लड़खड़ा कर गिर पड़ा. 'चुड़ैल' ने राजा के साले की छाती चीर डाली और अंजुरी भरकर रक्तपान किया. इस स्वांग से बाहर निकलने के बाद शंकर भांड ने लोगों को आवाज लगाई और अपने स्वांग के लिए बख्शीश की मांग की.

चुड़ैल के स्वांग में अजय कुमार.

जकड़ लिया गया शंकर भांड
जब लोगों ने देखा कि यह तो चुड़ैल नहीं, शंकर भांड है. तब सबने उसे राजा के साले का हत्यारा बताते हुए रस्सियों से जकड़ लिया. इधर रानी ने जब अपने भाई के मारे जाने की खबर सुनी, तो वह रोती-बिलखती दौड़ी-दौड़ी मौके पर आई और उसने शंकर भांड के लिए मौत की मांग की. शंकर भांड ने खुद को बेगुनाह बताते हुए राजा को याद दिलाया कि उसने तो यह स्वांग न करने की गुजारिश की थी, पर राजा और उनके मंत्रियों ने ही उसे बाध्य किया. तो इसमें भला उसका क्या दोष?

बेबस राजा का चोर दरवाजा
शंकर भांड की बात सुनकर राजा धर्मसंकट में फंस गया. एक तरफ रानी की इच्छा दूसरी तरफ भांड का तर्क. क्या करे अब राजा? राजा को द्वंद्व से उबारने का काम किया उसके मंत्री ने. उसने राजा को सलाह दी कि शंकर भांड को कल 'सती' का स्वांग करने का आदेश दे दें, इससे उसे सजा भी मिल जाएगी और इस सजा का दोष आप पर भी नहीं आएगा.

सती का स्वांग करने का निर्देश
मंत्रियों, संतरियों की सलाह पर राजा की कुटिल बुद्धि जागी. उसने शंकर भांड को सती का स्वांग करने का आदेश दे दिया. यह जानते हुए भी कि इस स्वांग के बाद उसकी जान नहीं बचेगी, शंकर भांड ने राजा का आदेश सिर-आंखों पर लिया. उसने राजा से सिर्फ एक ही प्रार्थना की कि उसकी राख उसके घरवालों तक पहुंचा दी जाए. उसके बच्चों को बताया जाए कि वे भी 'रिजक की मर्यादा' का पालन करें - यही शंकर भांड की अंतिम इच्छा थी. यह वादा लेने के बाद शंकर भांड ने राजा के आदेश का पालन करते हुए सती का स्वांग किया और 'रिजक की मर्यादा' रखी. 

संगीत पक्ष बड़ी खूबी
इस नाटक का संगीत पक्ष इसकी सबसे बड़ी खूबी रही. वैसे भी अजय कुमार उन विरले कलाकारों में शुमार हैं जो मंच पर गायन शैली के नाटकों के लिए जाने जाते हैं. इस नाटक के सारे गीत अजय कुमार ने लिखे हैं. ये गीत ही नाटक की आत्मा हैं, जो विजयदान देथा की कहानी के साथ पूरा न्याय करते दिखते हैं. बता दूं कि फिलवक्त अजय कुमार राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में वाइस एंड स्पीच और थियेटर म्यूजिक के एसोसिएट प्रोफेसर हैं.

शंकर भांड की भूमिका में अजय कुमार.

राज करे राजा...
जब राजा ऊहापोह में पड़ा है, एक तरफ रानी की जिद है तो दूसरी तरफ शंकर भांड का तर्क. ऐसे समय में मंच पर गीत के स्वर फूटते हैं - राज करे राजा, हुकुम करे रानी, ना बचिहैं फिर देश के पानी... इस पूरे नाटक में इस तरह के गीत भरे पड़े हैं जो व्यवस्था की बदनीयति और कलाकार की ईमानदारी उभारते हैं. नाटक में इन गीतों के बोल, लय, ताल और सुर समां बांधते हैं.

बॉडी लैंगवेज और प्रापर्टी
इस नाटक में मंच पर एक ही कलाकार की उपस्थिति थी. यह एक पात्र ही सारी भूमिकाएं निभा रहा था. न अलग से कोई मेकअप था, न बहुत ज्यादा प्रॉपर्टी. प्रापर्टी के नाम पर अलग-अलग रंग के तीन-चार दुपट्टे थे. इन्हीं दुपट्टों और अपनी बॉडी लैंग्वेज के बल पर अजय ने सारे पात्रों को साध लिया. अपनी भाव भंगिमाओं से वे कभी राजा बन जाते थे, कभी शंकर भांड, कभी सेठ, तो कभी सूत्रधार. अजय कभी प्रजा बन जाते थे तो कभी मंत्री-संतरी. हां, इन सभी भूमिकाओं में उनके संवाद का लहजा बदलता रहता था, हर पात्र के लिए दुपट्टे का इस्तेमाल अलग तरीके से करते नजर आए. जाहिर है कि किसी एक मंच पर इतनी कम प्रापर्टी और बिना मेकअप एकसाथ इतनी भूमिकाओं में उतरना दुष्कर काम है. लेकिन अजय कुमार ने इसे पूरी सहजता से अंजाम दिया. 

संगीत और प्रकाश व्यवस्था
लोककथा पर आधारित यह नाटक तब तक लोकरंग नहीं पा सकता था जब इसके गीतों में लोकधुनें नहीं सुनाई पड़तीं. इस नाटक में गीत लिखने के साथ-साथ संगीत पक्ष भी अजय कुमार का ही रहा. हारमोनियम पर राजेश पाठक थे, तो सारंगी वादन अनिल मिश्र कर रहे थे. ढोलक और अन्य वाद्य यंत्रों पर शैलेंद्र सिंह चौहान संगत करते नजर आए. कोरस गायन का मोर्चा अनिल मिश्र और राजेश पाठक ने संभाल रखा था, जबकि प्रकाश व्यवस्था सारिका भारती की थी.

नाटक का असर
शंकर भांड के सती का स्वांग पूरा होते ही मंच पर कबीर के पद सुनाई पड़ते हैं, धुन कुमार गंधर्व वाली ही ली गई है. शंकर भांड की मौत का शोक कबीर के इस पद और कुमार गंधर्व की शैली के बिना उभर नहीं पाता. संगीत और नाट्य निर्देशन के साथ-साथ अभिनय की जिम्मेवारी निभा रहे अजय कुमार ने वाकई कबीर के पद और कुमार गंधर्व के राग का इस्तेमाल कर इस नाटक को एक अलग ऊंचाई दी है, जहां दर्शक शोक में होकर भी तालियां बजाते नजर आते हैं.  

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play Bada Bhand To Bada Bhand based on story of Vijaydan Detha was staged at Hans Sahityotsav 2023
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विजयदान देथा की कहानी पर आधारित नाटक 'बड़ा भांड तो बड़ा भांड' का मंचन
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हंस साहित्योत्सव में नाटक 'बड़ा भांड तो बड़ा भांड' का मंचन हुआ.
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हंस साहित्योत्सव में नाटक 'बड़ा भांड तो बड़ा भांड' का मंचन हुआ.

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विजयदान देथा की कहानी पर आधारित नाटक 'बड़ा भांड तो बड़ा भांड' का मंचन

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