- रामकिशोर उपाध्याय

डीएनए हिंदी: सदियों से हर भाषा में कविता लिखी जा रही है और समझी जा रही है, लेकिन कभी–कभी कविता में कुछ  खास होता है जो कवि विशेष को विशिष्ट बना देता है. आज के अनिश्चितता भरे  समय में अनन्य प्रकाशन,दिल्ली से युवा कवि निखिल आनंद गिरि के प्रथम कविता संग्रह का आगमन निश्चित ही  हिंदी साहित्य जगत में एक सुखद घटना है. सबसे पहले कविता संग्रह के शीर्षक "इस कविता में प्रेमिका भी आनी थी' की बात करते हैं. शीर्षक बड़ा ही आकर्षक है, उतना ही बढ़िया कवर पृष्ठ है और नज़र पड़ते ही पाठक बिना पढ़े पुस्तक के कंटेंट को  जानने को उत्सुक हो उठता है.

"इस कविता में प्रेमिका भी आनी थी' संग्रह में 68  कविताएं हैं. इस संग्रह को उन्होंने बिना किसी आत्म कथ्य या भूमिका के लिखा है. कवि पत्रकारिता के व्यवसाय से जुड़ा रहा है और वर्तमान सरकारी सेवा में आने से पूर्व वह देश के अनेक प्रतिष्ठित दैनिकों ,चैनल्स और रेडियो में  अपनी विभिन्न सेवाएं दे चुका है. कवि  देश ,समाज ,राजनीति और धर्म  सम्बन्धी विषयों पर गहरी पकड़ रहता है. अतः कविता में उनका प्रभाव परिलक्षित होना स्वाभाविक है. कविताओं के माध्यम से उन्होंने अपने समकालीन सामाजिक,धार्मिक और  राजनीतिक सरोकारों का गहनता से  स्पर्श ही नहीं  किया है बल्कि उन्हें खूब खंगाला भी है.

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कवि बिहार के ग्रामीण अंचल से आकर रोजी रोटी के लिए दिल्ली में स्थाई रूप से टिक जाता है. मगर वह अपना ग्रामीण खांटीपन और खरी -खरी बात कहने का अंदाज नहीं छोड़ पाता है और न ही शहरी कूटनीति सीख पाता है, लेकिन वह गांव और शहर में हो रहे  नित्य प्रतिदिन बदलावों  पर भी पैनी नज़र रखता है जब वह पहली कविता इच्छाओं का कोरस में अपनी पीड़ा को दिल खोलकर लिख देता है …..

इच्छाओं में दिल्ली आना कभी नहीं रहा
गांव में जीवन गुजारना एक इच्छा थी
मगर गांव अब गांव नहीं रहे
और जीवन भी जीवन कहां रहा

कवि वर्तमान से मुठभेड़ करते हुए बड़ी साफगोई से  परिस्थितियों और विसंगतियों पर लेखनी से कड़ा प्रहार करते हुए "इतना नीरस होगा समय " में कहता है कि …

चांद पर मिलेंगे जमीन के मुआवजे
और कहीं नहीं होगा आकाश
इतिहास ऊब चुका होगा बेईमान किस्सों से
तब बड़े चाव से लिखी जाएंगी बेवकूफियां
कि कैसे हम चौंके थे ,बिना प्रलय के
जब पहली बार हमने चखा था चुम्बन का स्वाद
या फिर भूख लगने पर बांट लिए थे शरीर  

"लौटना”  कविता में  कवि प्रतीक्षा को परिभाषित करने का प्रयास करता  है-
देखना हम लौटेंगे एक दिन
उन पवित्र दोपहरों में
तीन दिन से लापता हुयी
अचानक लौट आई बकरी की तरह

जैसे लौटती है आदिवासी औरत
तेंदू की पत्तियों बेचकर
दिन भर की थकान लेकर
अपने परिवार के पास
और लोकगीत मुस्कराते हैं

यदि  शीर्षक कविता का  उल्लेख न किया जाए तो कवि के साथ अन्याय होगा. 'इस कविता में प्रेमिका भी आनी थी' पृष्ठ 79-80 पर है. यह कविता वास्तव में कवि की प्रेम न पाने की पीड़ा की सशक्त अभिव्यक्ति है. कवि इस कविता में रोमांटिक नहीं होता बल्कि यथार्थ के दर्पण में स्वयं को देखता है और एक पुत्र होने की व्यथा का काव्यात्मक चित्रण करता हुआ कहता है-

आगे की कविता कही नहीं जा सकती
वो शहर की बेचैनी में भुला दी गई
और उसका रंग भी काला है
इस कविता में प्रेमिका भी आनी थी 
माता पिता बूढ़े होने लगे
तो प्रेमिकाओं को जाना होता है

कविता संग्रह 'इस कविता में प्रेमिका भी आनी थी' की भाषा सरल और सहज है. कविताओं में उबाऊपन नहीं हैं. कविताओं के विषय नूतन और संदर्भ सारगर्भित हैं. कवि ने कविताओं के अंत में पंच का बेहतरीन प्रयोग किया है जो हर कविता को एक विशिष्ट अर्थ प्रदान करता है. शिल्प , कथ्य और प्रस्तुतीकरण की दृष्टि से मुझे उनकी कविताओं में जर्मन कवि रिल्के की झलक दिखाई देती है ,इस बात को  मैं अतिशयोक्ति की सीमा तक जाकर भी कहना चाहता हूं. इस संग्रह में संकलित कविताओं के विषय में बहुत कुछ लिखा जा सकता है. निखिल अभी युवा हैं और इस संग्रह को पढ़कर मेरा दृढ़ विश्वास है कि उनमें कविता की जन्मजात प्रतिभा है जो उनके उज्ज्वल भविष्य के प्रति मुझे आश्वस्त करती है.

संग्रह का नाम : "इस कविता में प्रेमिका भी आनी थी'
कवि : निखिल आनंद गिरि
प्रकाशक : अनन्य प्रकाशन ,दिल्ली
पेपरबैक संस्करण : मूल्य मात्र 150 रुपये

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book review poetry collection by nikhil anand giri is kavita mein premika bhi aani thi
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Book Review: अपने समय की सच्ची कविताओं से बना एक जरूरी कविता संग्रह-इस कविता में
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Book Review: अपने समय की सच्ची कविताओं से बना एक जरूरी कविता संग्रह-इस कविता में प्रेमिका भी आनी थी