डीएनए हिंदी: पति-पत्नी में तकरार, अलगाव और फिर वह पड़ाव जब दोनों एक-दूसरे से अलग होना चाहें यानी तलाक. इस सबके बीच अक्सर गुजारे भत्ते की चर्चा जरूर होती है. दुनिया भर में लगभग हर देश में गुजारा भत्ता को लेकर कानून बनाया गया है. भारत में शादी को एक पवित्र बंधन माना जाता है. ऐसे में भले ही पति-पत्नी के बीच मानसिक या शारीरिक लगाव न हो, लेकिन पति अपनी पत्नी के भरण-पोषण की जिम्मेदारी लेने के लिए बाध्य हो जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि कानूनी रूप से गुजारे भत्ते का अधिकार आखिर है क्या, किसे ये अधिकार मिलता है, इसके तहत कितना गुजारा भत्ता दिया जाता है और इससे जुड़ी शर्तें क्या हैं? सुप्रीम कोर्ट में वकील अनमोल शर्मा के जरिए जानते हैं इस तरह के सभी सवालों के जवाब-
क्या है गुजारा भत्ते का अधिकार
तलाक के बाद प्रत्येक पति या पत्नी को गुजारा भत्ता लेने का अधिकार है. हालांकि यह एक पूर्ण अधिकार नहीं है, अदालत का फैसला पति-पत्नी की परिस्थिति और वित्तीय स्थिति दोनों पर निर्भर करता है. कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर यानी CRPC की धारा 125 के तहत भरण-पोषण से जुड़े गुजारा भत्ता अधिकार की व्यवस्था की गई है. हिंदू विवाह कानून, 1955 के तहत पति या पत्नी गुजारा भत्ते का दावा कर सकते हैं.
गुजारा भत्ता के प्रकार
1. Separation गुजारा भत्ता
यह गुजारा भत्ता उस स्थिति में मिलता है जब तलाक नहीं हुआ हो और पति-पत्नी अलग रह रहे हों. ऐसी स्थिति में यदि कोई खुद का भरण-पोषण करने में समर्थ ना हो तो सेपरेशन गुजारा भत्ता देना आवश्यक होता है. अगर दंपति में सुलह हो जाती है तो गुजारा भत्ता देना बंद हो जाता है. अगर तलाक हो जाता है तो सेपरेशन गुजारा भत्ता परमानेंट गुजारा भत्ता बन जाता है.
2. Permanent गुजारा भत्ता
Permanent गुजारा भत्ता की कोई निर्धारित समाप्ति तिथि नहीं होती है. यह कुछ परिस्थितियों से निर्धारित होता है कि गुजारा भत्ता किस प्रकार मिलेगा.
- यह तब तक दिया जाता है जब तक पति या पत्नी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं हो जाते.
- जब तक अपना और अपने बच्चों का पालन-पोषण करने का कोई तरीका नहीं निकाल लेते.
- जब तक पति या पत्नी दोबारा शादी नहीं करते.
- जब प्राप्तकर्ता के पास शादी से पहले कोई काम करने का इतिहास नहीं हो, शादी के बाद कभी काम नहीं किया हो.
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3. Rehabilitative गुजारा भत्ता
Rehabilitative गुजारा भत्ता की कोई भी निर्धारित समाप्ति तिथि नहीं होती है. यह प्रत्येक मामले की परिस्थितियों पर निर्धारित होता है. यह तब तक दिया जाता है जब तक पति या पत्नी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं हो जाते या स्वयं और अपने बच्चों का पालन-पोषण करने का कोई तरीका नहीं देख लेते. बच्चों के स्कूल जाने तक जीवनसाथी को गुजारा भत्ते का भुगतान करना अनिवार्य होता है.यह देखने के लिए नियमित रूप से मूल्याकंन किया जाता है. परिस्थितियों के हिसाब से इसमें परिवर्तन भी किया जाता है.
4. Reimbursement गुजारा भत्ता
जब एक पक्ष ने कॉलेज, स्कूल या किसी भी तरह के रोजगार परख कोर्स के माध्यम से पति या पत्नी को पढ़ाने पर या किसी अन्य तरह से पैसा खर्च किया हो. अदालत खर्च की गई राशि या आधी राशि तक गुजारा भत्ता देने का फैसला सुना सकता है.
5) Lump-Sum Alimony
यह गुजारा भत्ता एक बार दिया जाता है. इसके तहत शादी में जमा हुई संपत्ति या अन्य संपत्ति के स्थान पर गुजारा भत्ता की पूरी रकम एक बार में मिल जाती है.
गुजारा भत्ता यानी Alimony से जुड़े फैसले सुनाते समय कोर्ट किन बातों का रखती है ध्यान
-पति और पत्नी की संपत्ति
-विवाह की अवधि
-पति और पत्नी की उम्र
-स्वास्थ्य, सामाजिक स्थिति और जीवनशैली
-बच्चों की शिक्षा और पालन-पोषण से जुड़े खर्चे
-पति की आय
-पति की आय की गणना करते समय आयकर
-ईएमआई
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शादी-झगड़ा-तलाक, इसके बाद किसे और कितना मिलता है गुजारा भत्ता? जानें हर सवाल का जवाब