• शशि मोहन रवांल्टा

'घासी: लाल कैंपस का भगवाधारी' एक ऐसा उपन्यास है, जिसे हाथ में उठाने के बाद आप बिना खत्म किये नहीं छोड़ सकते. लेखक ने यूथ और कैंपस बेस्ड इस नॉवेल को सधी हुई भाषा में कसा है. तारतम्यता को इस तरह से बरकरार रखा है कि ऐसा लगता है जैसे यह उपन्यास न हो कर ओटीटी प्लेटफॉर्म पर कोई वेब सीरीज चल रही हो. इस नॉवेल की शुरुआत 'दिल की बात' से होती है, जो वाकई में आपके दिल में उतर जाती है. धीरे-धीरे हास्य और गुदगुदाने वाले अंदाज में घासी उभरकर सामने आता है और उसके किस्से ठहाके लगाने पर मजबूर कर देते हैं.

व्यंग्य के अंदाज़ में रखे गए हैं राजनैतिक संवाद 
पुस्तक के जिस भी पन्ने में घासी आता है आप बिना मुस्कुराये नहीं रह सकते. टिल्लू की प्रेम कहानी में कई बार दिल धुकधुकाता था तो कई बार लगता था कि टिल्लू के साथ गलत हुआ. नव्या के प्रति सहानुभूति भी होती थी और यह सस्पेंस भी बरकरार रहता था कि आगे क्या हुआ होगा? उपन्यास में मौजूद प्रेम कहानी कभी भावुक करती थी तो कभी अचानक से गुस्सा दिला देती थी. हर किस्से के शुरू होने के बाद मन में यह बैचेनी बनी ही रहती थी कि अब क्या होगा? नॉवेल में जिस तरह से क्लास में होने वाली राजनैतिक डिबेट का जिक्र किया गया है वह आपके सामने कैंपस की अपनी यादों को ताजा कर देगा. लेखक ने व्यंग्य की शैली के जरिए छात्रों के बीच होने वाले राजनैतिक संवाद को दर्शाया है.  कभी किसी मुद्दे पर छात्र आक्रोशित होते हैं तो किसी मुद्दे पर चुटकी लेते हैं. ऐसा ही आम आदमी पार्टी के गठन को लेकर छात्रों के बीच क्लास में होने वाले संवाद अपने आप में ऐतिहासिक है जिसमें घासी कहता है कि हर चेले को केजरीवाल की तरह ही होना चाहिए.

कोरोना काल की परिस्थितियां मार्मिकता के साथ उपन्यास में उभरी हैं. जिन्हें पढ़ते ही आप लॉकडाउन के उस दौर में जा पहुंचते हैं. इस उपन्यास का हर एक किरदार चाहे वह घासी हो, दद्दा हो, सुमित्रा हो या फिर मासूम मिश्रा व इनसाइक्लोपीडिया आपको सीधे कैंपस की दुनिया में ले जाएगा और आपको लगेगा कि कैंपस सिर्फ चार दीवारें नहीं होती हैं. उसके भीतर और बाहर कई ऐसी घटनाएं घटती हैं जो हमेशा के लिए आपके मानस पटल पर अंकित हो जाती हैं. ऐसा हो ही नहीं सकता कि आप इस नॉवेल को पढ़ रहे हों और आपकी स्मृतियों में अपने दोस्त और कैंपस ताजा न हो जाये.

कैंपस, प्रेम और पॉलिटिक्स के इर्द-गिर्द बुना गया एक बढ़िया उपन्यास 

कह सकते हैं कि यह उपन्यास अल्हड़ और युवा उम्र के छिछोरेपन और जीवन संघर्ष का एक अद्भुत नॉवेल है जो पात्रों की सामाजिक पृष्ठभूमि,समय काल,ज्ञान-अज्ञान को प्रतिबिंबित करता है. यह उन युवाओं का उपन्यास है जो सुदूर गांवों- कस्बों से जीवन को एक धार देने के लिए चले आते हैं और बहुत सारे काल्पनिक सपनों के साथ रूमानियत के संसार में विचरते हुए जब यथार्थ के धरातल में आकर अपनी क्षमताओं को परखते हैं. कई बार तब तक बहुत देर हो चुकी होती है, जिसे लेखक ईमानदारी के साथ बताने में सक्षम हुए हैं. घासी एक प्रतिनिधि पात्र हैं जो अपने व्यक्तित्व,कार्य- कलाप से पाठकों के चेहरे पर जितनी मुस्कान चस्पा करता है उससे कहीं ज्यादा करुणा उपजाता है. दद्दा,घासी, पंडित, टोंटी, मासूम मिश्रा, टिल्लू पहाड़ी समाज के ऐसे पात्र हैं जो अपनी हीन बोधता से निजात पाने और जड़ो से जुड़े रहने की बेहतर कोशिश करते हैं. ये पात्र अपने संवादों और कृत्यों से पाठकों के चेहरे पर कभी हंसी,विद्रूपता और कभी गहन करुणा के भाव प्रतिलक्षित कराते हैं. कुछ प्रसंग समसामयिक होने से प्रभावी हैं, जैसे अन्ना आंदोलन और पात्रों का चिन्तन, फिर गुरुवर को धता बता कर दिल्ली की राजनीति में नये दल का उदय, घासी का नायाब चिन्तन , बहस( "गुरु के ऊपर भारी पड़ना ही 21वीं सदी राजनीतिक बदलाव है") इस पर लिखा पूरा प्रंसग प्रभावशाली है.

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किताब पाठकों को स्वाभाविक रूप से जोड़ लेती है 
इस उपन्यास की लगभग सभी स्त्री पात्र  (नव्या,सुमित्रा,गार्गी,मोना,मेघा) बेहद व्यवहारिक और चालाक महसूस होती हैं. ऐसे में स्वाभाविक रुप से पाठक के मन में प्रश्न उठता है कि क्या स्त्रियां अपना स्वाभाविक गुण खो रही हैं, या लेखक उनके चरित्र के प्रति न्याय करने में पूर्वाग्रही रहे? इसका उत्तर तो लेखक स्वंय ही देगें. अंत आते कोरोना काल की भयावहता, पात्रों का भय, लेखक का भय पाठकों को स्वाभाविक रूप से जोड़ लेता है. अपना, अपनों के जीवन, जीविका के भय को पाठक भी गहनता के साथ महसूस करता है. आखिर में घासी की हंसी के साथ पाठक  गहरी सांस लेता है और सुकून महसूस करता है. इस उपन्यास को एमेजॉन और फ्लिपकार्ट से खरीदा जा सकता है. 


समीक्षक: शशि मोहन रवांल्टा
उपन्यास- 'घासी: लाल कैंपस का भगवाधारी'
लेखक- ललित फुलारा
प्रकाशक- यश पब्लिकेशंस
मूल्य- 199 रुपये
पृष्ठ संख्या- 127

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The new book Ghasi by Lalit Fulara is an impeccable on youth life struggle and more
Short Title
अल्हड़ और युवा उम्र के छिछोरेपन और जीवन संघर्ष पर एक शानदार उपन्यास
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Hindi
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Book Review Ghasi
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