डीएनए हिंदी: ग्लेशियर पिघलने लगे हैं. नदियों और समुद्रों की बर्फीली चट्टानें जल्दी टूटने लगी हैं. धरती की सतहों में फांकें पड़ने लगी हैं. जानवरों और पक्षियों की कई प्रजातियां लगभग गायब होने के कगार पर हैं. इन सबकी वजह जलवायु परिवर्तन या क्लाइमेट चेंज है. हाल में पता चला कि क्लाइमेट चेंज की वजह से फूलों के रंग भी बदल रहे हैं. 2020 में क्लेमसन यूनिवर्सिटी द्वारा की गई एक स्टडी से पता चलता है कि अल्ट्रा वायलेट किरणों ने काफ़ी हद तक फूलों के पराग को नुकसान पहुंचाया है, साथ ही साथ रंगों को भी.
क्या बदलाव आया है ?
स्टडी के अनुसार यह बदलाव नंगीं आंखों से नहीं देखा जा सकता है किन्तु इससे उन मधुमक्खी सरीखे जीवों को बेहद नुकसान होता है जो मूलतः फूलों के चटख रंगों की ओर आकर्षित होते हैं. परागण पर असर पड़ना न केवल मधुमक्खियों के अस्तित्व पर ख़तरा पैदा कर सकता है बल्कि कई तरह के फ़लों के उत्पादन पर भी असर डाल सकता है.
कैसे असर डाल रहा है क्लाइमेट चेंज?
क्लाइमेट चेंज की सबसे बड़ी वजह धरती के ऊपर वातावरण के सुरक्षात्मक ओज़ोन परतों का फटना है. ओज़ोन परतों के फटने की वजह से या उनमें छेद होने की वजह से तापमान में वृद्धि हुई है. तापमान का काफ़ी असर फूलों के रंग और पराग पर पड़ता है.
अल्ट्रा वायलेट किरणों को अवशोषित करने की वजह से फूलों में होने वाला पिगमेंटेशन बीसवीं सदी के बाद काफ़ी बढ़ा है. पिछले कुछ सालों से यह हर साल दो प्रतिशत की रफ़्तार से बढ़ा है. यह सब ओज़ोन परतों के क्षरण से जुड़ा हुआ है.
फूलों पर ओज़ोन परतों के क्षरण और अल्ट्रा वायलेट किरणों के इस प्रभाव को त्वचा पर पड़ने वाले प्रभाव से भी मापा जा सकता है. यह जिस तरह से हमारी त्वचा पर असर डालता है वैसा ही फूलों के मसले में भी है. हां, फूलों को इन किरणों की ज़रूरत खिलने के लिए होती है पर अधिक मात्रा उनपर नकारात्मक प्रभाव डालती है.
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