डीएनए हिंदी: देश में राजनीतिक दलों की तरफ से जनता को मुफ्त सुविधाएं (Freebies) देने के चलन से सुप्रीम कोर्ट ही परेशान नहीं है. अब देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने भी इस पर सवाल खड़े कर दिए हैं. SBI ने अपने अर्थशास्त्रियों की एक रिपोर्ट पेश की है, जिसमें चिंता जताई गई है कि गरीब राज्य भी मुफ्त सुविधाएं देकर जनता को ललचाने की राह पर चल रहे हैं. राजनीतिक दलों का यह ट्रेंड आगामी समय में इकोनॉमी को लिए घातक साबित हो सकता है. रिपोर्ट में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से गठित समिति को सुझाव दिया गया है कि 'फ्री-बाइज' को राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) या टैक्स कलेक्शन के एक फीसदी हिस्से तक सीमित कर देना चाहिए.
बता दें कि राज्यों की तरफ से जनता को मुफ्त बिजली, राशन जैसी सुविधाएं देने को लेकर अर्थशास्त्री कई बार चिंता जता चुके हैं. यह चलन पहले दक्षिण भारतीय राज्यों तक ही सीमित था, लेकिन हालिया सालों में उत्तर व मध्य भारतीय राज्यों में भी बड़े पैमाने पर ऐसी लुभावने सुविधाएं लागू की गई हैं. इसका पूरा बोझ राज्यों के खजाने पर पड़ रहा है.
छत्तीसगढ़, राजस्थान और झारखंड का उदाहरण है रिपोर्ट में
SBI के चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर (CEA) सौम्य कांति घोष ने इस रिपोर्ट को लिखा है, जिसमें छत्तीसगढ़, झारखंड और राजस्थान का उदाहणर देकर 'मुफ्तखोरी' का नुकसान समझाया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक, ये तीनों राज्य 'गरीब' की कैटेगरी में आते हैं. तीनों राज्यों में सरकार के ऊपर सालाना 3 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा पेंशन का बोझ है. यह बोझ टैक्स कलेक्शन के तौर पर हो रही राज्यों की आय से बहुत ज्यादा है. झारखंड में यह टैक्स कलेक्शन के अनुपात में 217 फीसदी, राजस्थान में 190 फीसदी और छत्तीसगढ़ में 207 फीसदी है.
पुरानी पेंशन व्यवस्था लागू हुई तो...
रिपोर्ट में कहा गया है कि कई राज्यों ने पुरानी पेंशन व्यवस्था (Old Pension Scheme) दोबारा लागू करने की बात कही है. इन राज्यों में ऐसा होने पर हिमाचल प्रदेश में टैक्स कलेक्शन और पेंशन खर्च का अनुपात 450% हो जाएगा, जबकि गुजरात में 138% पर पहुंच जाएगा. ये दोनों ही राज्य इस साल विधानसभा चुनाव का चेहरा देखने वाले हैं, इसलिए राजनीतिक दलों में यहां मुफ्त सुविधाओं की घोषणाएं करने की होड़ लगी हुई है. हाल ही में मुफ्त सुविधाओं की राह पर तेजी से आगे बढ़े पंजाब में टैक्स कलेक्शन और पेंशन खर्च का अनुपात पुरानी पेंशन व्यवस्था लागू होने पर 242% होने का अनुमान है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि पुरानी पेंशन व्यवस्था में कर्मचारी कोई योगदान नहीं करते हैं, बल्कि सारा बोझ सरकार पर ही होता है.
आंकड़ों से समझें पुरानी पेंशन व्यवस्था का असर
जिन राज्यों में ओल्ड पेंशन स्कीम लागू है या उसे दोबारा लागू करने की घोषणा हो चुकी है. ऐसे राज्यों के ऊपर फाइनेंशियल ईयर 2019-20 में संयुक्त रूप से 3,45,505 करोड़ रुपये की देनदारी थी. यदि इस देनदारी को GSDP में हिस्सेदारी के तौर पर देखा जाए तो निम्न असर होगा-
- छत्तीसगढ़: 2019-20 में महज 6,638 करोड़ रुपये पेंशन खर्च (GSDP का 1.9 फीसदी हिस्सा) था. अब पुरानी पेंशन से राज्य पर 60,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा.
- झारखंड: पेंशन खर्च 6,005 करोड़ रुपये (GSDP का 1.7 फीसदी) था और अब इसमें अनुमानित बढ़ोतरी 54,000 करोड़ रुपये की हो सकती है.
- राजस्थान: वित्त वर्ष 2019-20 में 20,761 करोड़ रुपये पेंशन खर्च था, जो अब बढ़कर GSDP का 6% (करीब 1.87 लाख करोड़ रुपये) होने का अनुमान है.
- पंजाब: पेंशन खर्च 10,294 करोड़ रुपये था. अब ये अनुमानित 92,000 करोड़ रुपये बढ़ोतरी के साथ GSDP के 3% तक पहुंच सकता है.
- हिमाचल प्रदेश: पेंशन खर्च का बोझ 5,490 करोड़ रुपये से बढ़कर 49,000 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है, जो GSDP का 1.6 फीसदी होगा.
- गुजरात: 2019-20 में महज 17,663 करोड़ रुपये का पेंशन खर्च बढ़कर 1.59 लाख करोड़ रुपये हो सकता है, जो राज्य की GSDP का 5.1 फीसदी होगा.
GDP का 10-11 फीसदी तक मुफ्त सुविधाओं पर खर्च कर रहे राज्य
मुफ्त सुविधाओं पर खर्च के मामले में राज्य अपनी 'चादर से ज्यादा पैर' फैला रहे हैं यानी जितनी आय है, उसके हिसाब से खर्च ज्यादा हो रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक, कल्याणकारी योजनाओं पर राज्य GDP के 6 फीसदी हिस्से से ज्यादा खर्च कर रहे हैं. कई राज्यों में यह हिस्सेदारी 10 से 11 फीसदी तक पहुंच गई है. तेलंगाना में 11.7 फीसदी, सिक्किम में 10.8 फीसदी, आंध्र प्रदेश में 9.8 फीसदी, राजस्थान में 7.1 फीसदी और उत्तर प्रदेश में यह हिस्सेदारी 6.3 फीसदी तक पहुंच चुकी है.
इस गारंटी में बिजली क्षेत्र की हिस्सेदारी करीब 40% है. अन्य लाभ वाली योजनओं में सिंचाई, बुनियादी ढांचा विकास, खाद्य और जलापूर्ति शामिल हैं. राज्यों का अपने बजट से अलग कर्ज साल 2022 में 4.5 फीसदी तक पहुंच चुका है. ये वो कर्ज है, जो पब्लिक इंडस्ट्रीज राज्य सरकार की गारंटी से लेती हैं.
चुनावी राज्यों में वादे पहुंच रहे अलग ही पायदान पर
रिपोर्ट के मुताबिक, जिन राज्यों में चुनाव होने हैं, उनमें राजनीतिक दलों की तरफ से किए जा रहे मुफ्त सुविधाओं पर खर्च की एक नई पायदान तय कर सकते हैं. इन वादों पर खर्च राजस्व प्राप्ति और राज्य के कर राजस्व में हिस्सेदारी के हिसाब से हिमाचल प्रदेश में 1-3 प्रतिशत व 2-10 प्रतिशत तथा गुजरात में 5-8 प्रतिशत व 8-13 प्रतिशत हो सकता है.
सुप्रीम कोर्ट की समिति तय करे एक सीमा
रिपोर्ट में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से कल्याणकारी योजनाओं की समीक्षा के लिए बनाई गई समिति का जिक्र किया गया है. यह समिति इन योजनाओं की सीमा तय कर सकती है. रिपोर्ट में समिति को कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च की सीमा सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) या राज्य के अपने टैक्स कलेक्शन के अधिकतम एक फीसदी तक या राज्य के कुल राजस्व खर्च के एक फीसदी तक सीमित कर दिए जाने का सुझाव दिया है.
INPUT- भाषा
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