Trump Effect on Geopolitics: अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद हर तरफ उथल-पुथल का माहौल है. ट्रंप के कई फैसलों ने जियो-पॉलीटिक्स को भी गर्मा दिया है. अब इसका असर अमेरिका के लंबे समय के सहयोगी जापान पर भी दिखाई देने लगा है. जापान ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पहली बार अपने रक्षा बजट में बढ़ोतरी का ऐलान कर दिया है. इसे ट्रंप की तरफ से कई देशों को दी जा रही आर्थिक और सैन्य मदद पर रोक लगाने से जोड़कर देखा जा रहा है. तीन तरफ से दुश्मन देशों से घिरे जापान अभी तक सुरक्षा के मामले में अमेरिका पर निर्भर था, लेकिन माना जा रहा है कि जापान अब इस मामले में आत्मनिर्भर होना चाहता है. हालांकि इसे लेकर अमेरिका का रुख बेहद तीखा रहा है. इसके बावजूद जापान के पीछे हटने के आसार नहीं दिखाई दे रहे हैं.
द्वितीय विश्व युद्ध से अमेरिका संभाल रहा जापान की सुरक्षा
1930-40 के दशक में हुए द्वितीय विश्वयुद्ध ने पूरी दुनिया का नक्शा बदल दिया था. इस युद्ध में जर्मनी और इटली के साथ जापान ही तीसरा धुरी देश था, जिसकी सेना को उस समय दुनिया में सबसे मजबूत सशस्त्र बलों में गिना जाता था. द्वितीय विश्वयुद्ध में नागासाकी और हिरोशिमा पर अमेरिका के परमाणु बम गिराने के बाद हालात ही बदल गए थे. इस हमले ने न केवल विश्वयुद्ध को खत्म कर दिया बल्कि इसमें हुए नरसंहार ने जापान में युद्ध के खिलाफ भयंकर रोष पैदा कर दिया था. इसके चलते जापान ने आत्मसमर्पण करने के साथ ही अपनी सेना को नाममात्र के स्तर तक सीमित कर लिया था. अमेरिका ने जापान के साथ रक्षा संधि की थी, जिसके बाद जापान पर होने वाले किसी भी हमले के दौरान सुरक्षा की जिम्मेदारी अमेरिकी सेना ने संभाल ली थी. इसके बाद से आज तक जापान रक्षा बजट की हिस्सेदारी को भी बिजनेस ग्रोथ में यूज करता रहा है, जिसका फायदा उसे दुनिया की तीसरे नंबर की सबसे बड़ी इकोनॉमी बनने में मिला है.
अब क्या हुआ है बदलाव
साल 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने पर दुनिया भर में अचानक हालात बदले थे. उस दौर में जापान में भी अपनी सेना को अपने बूते पर मजबूत बनाने की चर्चा शुरू हुई थी. इसके चलते ही जापान ने साल 2027 तक अपनी GDP के 2% के बराबर रकम अपना डिफेंस सिस्टम तैयार करने पर खर्च करने का ऐलान किया था. यह 5 साल में करीब 287.09 अरब डॉलर की रकम बैठती है, जो बड़ा रक्षा खर्च माना गया था.
तीन मजबूत दुश्मनों से घिरा हुआ है जापान
जापान की समस्या ये है कि वह तीन मजबूत दुश्मनों से घिरा हुआ है, जिनका रवैया आक्रामक और विस्तारवादी रहा है. जापान की चीन और उत्तर कोरिया के साथ सदियों पुरानी रंजिश है. जापान इन दोनों देशों के साथ लंबे समय तक युद्ध भी लड़ चुका है और इनके बड़े हिस्से को कब्जे में भी रख चुका है. चीन के साथ जापान का दक्षिण चीन सागर इलाके में कई द्वीपों को लेकर गहरा मतभेद भी है, जिसमें चीन लगातार अपने जेट विमानों और लड़ाकू पोतों को भेजकर धमकी वाला अंदाज दिखाता रहता है. इसी तरह उत्तर कोरिया और रूस के साथ भी जापान का सीमा विवाद है. उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन का रवैया हमेशा धमकी भरा रहता है और उनका अगला कदम क्या होगा, इसे लेकर भी कोई आकलन नहीं लगा सकता है. इसी तरह यूक्रेन पर हमले के बाद से जापान को रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन की विस्तारवादी नीति से खतरा दिखाई देता रहा है. ऐसे में वह अपने डिफेंस सिस्टम के लिए अमेरिका पर निर्भर नहीं रहना चाहता है.
क्या ट्रंप के रुख से और ज्यादा बदली है जापान की सोच
अमेरिका में दोबारा राष्ट्रपति बनते ही डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान, यूक्रेन समेत कई देशों की आर्थिक मदद रोक दी है. इसके अलावा ट्रंप ने अमेरिका पर निर्भर अन्य देशों को भी एक तरह से चेतावनी दे दी है. ट्रंप ने स्पष्ट कहा है कि अमेरिकी मदद को Freebies ना माना जाए यानी अब उनकी नीति 'इस हाथ दे और उस हाथ ले' की रहेगी. माना जा रहा है कि जापान ट्रंप के इसी रुख से सशंकित है. इसी कारण वह अपनी सेना को फिर से तैयार करना चाहता है. अमेरिकी मदद के सहारे चीन को आंखे दिखा रहे ताइवान ने भी पिछले दिनों यह खतरा जाहिर किया था और चिंता जताई थी. इसके चलते भी जापान अमेरिका पर निर्भरता खत्म करना चाहता है.
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द्वितीय विश्वयुद्ध से 'खामोश' जापान को क्यों याद आया डिफेंस बजट, क्या ट्रंप की हरकतों से हुई घबराहट?