अमृतं चैव मृत्युश्च द्वयं देहेप्रतिष्ठितम्। 

मोहादुत्पद्यते मृत्यु: सत्येनोत्पद्यतेऽमृतम्॥

भगवद गीता में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि मृत्यु निश्चित है और जिस किसी प्राणी ने जन्म लिया है उसकी मृत्यु होना स्वभाविक है. जी हां मृत्यु शाश्वत सत्य है. जो आएगा उसका जाना तय है. लेकिन कुछ मौतें आम मौतें नहीं होती. ये हमें झकझोर देती हैं और मन कुछ इस हद तक भारी हो जाता है कि उसकी गवाही हमारी आंखें देती हैं. उद्योगपति रतन टाटा की मौत भी कुछ ऐसी ही है. क्या हुक्मरां और उद्यमी, क्या बॉलीवुड और कला जगत आम से लेकर खास तक हर वो शख्स जिसने भी इस मौत के बारे में सुना स्तब्ध है. मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में 86 साल की उम्र में अपनी अंतिम सांस लेने वाले रतन टाटा की मौत से एक युग का अंत हो गया है.  

रतन टाटा की मौत केवल एक बिज़नेस आइकन का जाना नहीं है. ऐसा लग रहा है कि भारत में विकास की कहानी में से एक अध्याय का अंत हो गया है. रतन टाटा के जाने से न सिर्फ़ हमारे कॉर्पोरेट इकोसिस्टम में बल्कि हमारी राष्ट्रीय चेतना में भी एक शून्यता आ गई है. रतन टाटा की मौत के बाद तमाम तरह की बातें हो रही हैं. ऐसे में हम भी ये जरूर कहेंगे कि रतन टाटा एक ऐसे व्यक्ति थे जो अपने मूल्यों पर अडिग थे, एक ऐसी शख्सियत जिनकी शांत शक्ति बहुत कुछ कहती थी.

टाटा समूह आज जिस स्थान पर है, उसे वो स्थान दिलाना कहीं से भी रतन टाटा के लिए आसान नहीं था. भले ही जे आर डी टाटा की लेगेसी उन्हें विरासत में मिली हो, मगर जब उन्होंने बतौर उद्यमी अपना करियर शुरू किया उन्हें संदेह की नजरों से देखा गया. लोगों ने सवाल किया कि वो लड़का जिसे इंडस्ट्री में आए हुए जुमा जुमा चार दिन हुए हैं क्या ही इस विरासत को आगे ले जाएगा? लेकिन ये काबिलियत के अलावा रतन टाटा की मेहनत और दृढ़ निश्चय ही था कि न केवल उन्होंने समहू और उसकी कार्यप्रणाली में महत्वपूर्ण बदलाव किये. बल्कि उसे उस मुकाम पर भी पहुंचाया, जिसके बाद भारत एक नए बदलाव का गवाह बना. 

बिजनेस कवर करने वाले तमाम पत्रकार इस बात पर एक मत रहते हैं कि रतन टाटा के नेतृत्व में, टाटा ग्रुप को सुव्यवस्थित तो किया ही गया. इसके कई अंगों को एकजुट करने के लिए एक सुसंगत रणनीति तैयार की गई. रतन टाटा के नेतृत्व में टाटा समूह ईमानदारी, इनोवेशन और नैतिक व्यावसायिक प्रथाओं का पर्याय बना.

आधुनिक भारत के औद्योगिक परिदृश्य को आकार देने में रतन टाटा की भूमिका को बढ़ा-चढ़ाकर बताना असंभव है. वे वैश्विक पदचिह्न के महत्व को समझने वाले पहले भारतीय व्यापारिक नेताओं में से एक थे.  यहां ये बता देना भी बहुत जरूरी है कि ये सोच रतन टाटा ने उस वक़्त रखी जब 'ब्रांड इंडिया' को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता नहीं मिली थी.

रतन टाटा का शुमार उन शख्सियतों में है जिसने अक्सर ही लोगों को अपने फैसले से चौंकाया है. चाहे वो टेटली टी हो या फिर कोरस स्टील और जगुआर लैंड रोवर का उनका अधिग्रहण ये उनका वो साहसिक कदम था जिसने कॉर्पोरेट इंडिया में कई लोगों को चौंका दिया.

भले ही एक समय लोगों ने रतन टाटा के इन फैसलों की आलोचना की हो और इसे जल्दबाजी का फैसला कहा हो लेकिन रतन टाटा को अपने साहस और दूरदर्शिता पर भरोसा था. साथ ही उन्हें टाटा ग्रुप की क्षमताएं भी पता थीं.  बाद में ये तमाम वेंचर्स फायदे में आए.

 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट में भी रतन टाटा ने संयम, शांति और शालीनता से काम लिया जिसका नतीजा ये निकला कि वो तमाम वेंचर्स जिनका अधिग्रहण टाटा ग्रुप ने किया उन्होंने समूह को मुश्किल वक़्त में भी मजबूती प्रदान की.

गौरतलब है कि रतन टाटा की वैश्विक महत्वाकांक्षा और देश के विकास के प्रति प्रतिबद्धता के बीच संतुलन बनाने की क्षमता उल्लेखनीय थी. वे एक दूरदर्शी उद्योगपति थे जो समाज की सेवा के महत्व को गहराई से समझते थे. इनोवेशन का उनका संकल्प और सामाजिक जिम्मेदारी के प्रति उनका समर्पण उन्हें सबसे अलग बनाता था.

रतन टाटा के नेतृत्व में, टाटा समूह ने न केवल नए बाजारों और उद्योगों में विस्तार किया, बल्कि नैतिक नेतृत्व के लिए भी वो एक आदर्श बना. चाहे संकट का समय हो या विकास का दौर, उनकी विनम्रता और दृढ़ता हमेशा बनी रही. उनकी सादगी, विनम्रता और दयालुता उनकी उपलब्धियों की विशालता के बिल्कुल विपरीत थी.

यूं तो एक सफल उद्यमी के सभी गुण रतन टाटा में मौजूद थे लेकिन जो बात उन्हें अन्य लोगों से अलग करती थी वह थी भविष्य के प्रति उनकी जिज्ञासा. उन्होंने तमाम ऐसे छोटे छोटे वेंचर्स में पैसा लगाया था जो खुद इस बात की पुष्टि कर देता है कि रतन टाटा अपनी आंखों में विकसित भारत का सपना संजोए थे. 

एक और चीज जो रतन टाटा को औरों से जुदा करती है और वो ये कि वो अन्य उद्यमियों की तरह किसी तरह के व्यवधान से डरते नहीं थे. वो उसे स्वीकार करते थे और उसे सफल बनाने के लिए जी जान एक कर देते थे. अक्सर ही उन्हें नए उद्यमियों और उनके विचारों को वित्तपोषित करते देखा गया. ध्यान रहे कि इनोवेशन के लिए रतन टाटा का विश्वास और स्टार्टअप इकोसिस्टम के लिए उनके समर्थन से न तमाम अन्य उद्यमी प्रेरित हुए, बल्कि टाटा से ही प्रेरणा लेकर उन्होंने भी इस दिशा में काम किया.

ऐसा बिलकुल नहीं है कि रतन टाटा सिर्फ पैसों के पीछे भागे. परोपकार की भावना उनमें कूट कूट के भरी थी जिसे कई मौकों पर देश और देश की जनता ने देखा. अपने इर्द गिर्द लोगों की भारी भीड़ होने के बावजूद ज़िंदगी भर अकेलेपन में रहने वाले रतन टाटा ने बेसहारा जानवरों के लिए भी बहुत कुछ किया. आज जानवरों के लिए देशभर में ऐसे कई शेल्टर होम्स हैं हो रतन टाटा द्वारा फंडेड हैं. 

चाहे वो काम के प्रति ललक हो. या फिर परोपकार की भावना और समाजसेवा. जैसा व्यक्तित्व रतन टाटा का था, ये कहना कहीं से भी गलत नहीं है कि देश की एक बड़ी आबादी के बीच रतन टाटा एक दुर्लभ व्यक्ति थे. जिनके जाने से न केवल देश बल्कि मानवता को भी एक बड़ी क्षति हुई है.देश शायद ही कभी एक शख्सियत के रूप में रतन टाटा के योगदान को भूल पाए. 

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Ratan Tata Death industrialist will be always remembered as a visionary who led with humanism
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Ratan Tata: अभी तमाम दास्तां लिखनी थी, इतनी जल्दी 'टाटा' नहीं कहना था रतन! 
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रतन टाटा का जाना पूरे देश के लिए एक बड़ी क्षति है
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Ratan Tata: अभी तमाम दास्तां लिखनी थी, इतनी जल्दी 'टाटा' नहीं कहना था रतन! 

 

 

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