जापानी कार दिग्गज होंडा और निसान ने अपने एक फैसले से पूरी ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री को हैरत में डाल दिया है. दोनों ही कंपनियों ने विलय की योजना की घोषणा की है. यदि ऐसा होता है तो वे बिक्री के मामले में टोयोटा मोटर कॉर्प और वोक्सवैगन एजी के बाद तीसरी सबसे बड़ी कार निर्माता बन जाएंगी. दोनों कंपनियों ने कहा कि उन्होंने एक मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें एकीकरण पर बातचीत में निसान एलायंस के छोटे सदस्य मित्सुबिशी मोटर्स को भी शामिल किया जाएगा.
ध्यान रहे कि जापान की कार निर्माता कंपनियां इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) में अपने बड़े प्रतिद्वंद्वियों से मुकाबला करने के लिए संघर्ष कर रही हैं और नौबत कुछ ऐसी आ गई है कि उन्हें अपनी लागत तक में कटौती करनी पड़ रही है.
माना जा रहा है कि यदि कंपनियों द्वारा विलय को अंतिम रूप दिया जाता है, तो ये एक ऐसी कंपनी बनेगी जिसका बाजार पूंजीकरण मूल्य 50 बिलियन डॉलर (£39.77 बिलियन) से अधिक होगा जो अभी इन तीनों कार मेकर्स का है.
इस विलय पर अपना पक्ष रखते हुए होंडा के अध्यक्ष, तोशीहिरो मिबे ने कहा कि होंडा शुरू में नए प्रबंधन का नेतृत्व करेगी, जो प्रत्येक कंपनी के सिद्धांतों और ब्रांडों को बनाए रखेगा. उन्होंने कहा कि इस सौदे को अगस्त 2026 तक पूरा करने का लक्ष्य है, लेकिन उन्होंने कहा कि इस बात की संभावना है कि यह आगे न बढ़े.
गौरतलब है कि संभावित सौदे के बावजूद नई कंपनी उद्योग में एक दिग्गज बन गई है, फिर भी यह अग्रणी जापानी वाहन निर्माता के रूप में टोयोटा से पीछे रहेगी.टोयोटा ने 2023 में 11.5 मिलियन वाहन बनाए, जिसमें होंडा, निसान और मित्सुबिशी मोटर्स ने मिलकर लगभग आठ मिलियन वाहन बनाए.
यह फैसला उस वक़्त आया है जान तीनों कंपनियों द्वारा अगस्त में घोषणा की गई थी कि वे ईवी के लिए बैटरी जैसे घटकों को साझा करेंगी औरऑटोनॉमस ड्राइविंग के लिए संयुक्त रूप से सॉफ्टवेयर पर शोध करेंगी.
गौरतलब है कि निसान एक घोटाले के बोझ तले दबी हुई है, जिसकी शुरुआत 2018 के अंत में इसके पूर्व अध्यक्ष कार्लोस घोसन की धोखाधड़ी और कंपनी की संपत्ति के दुरुपयोग के आरोपों में गिरफ्तारी से हुई थी.
रोचक ये कि कार्लोस घोसन ने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों से इंकार किया था। अंततः उन्हें जमानत पर रिहा किया गया और बाद में वो लेबनान भाग गए. कार्लोस ने विलय की इन तमाम ख़बरों को कंपनियों की हताश बताया है.
इस बीच, यूरोप में, कार कंपनियां नौकरियों में कटौती कर रही हैं और कारखाने बंद कर रही हैं क्योंकि उन्हें चीन से बढ़ते निर्यात के दबाव का सामना करना पड़ रहा है.
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