Delhi Election 2025: दिल्ली में विधानसभा चुनाव की सियासी गर्मी चरम पर पहुंच चुकी है. मतदान के लिए अब बस 6 दिन ही बचे हुए हैं. भाजपा, आम आदमी पार्टी हो या कांग्रेस, सभी की कोशिश किसी भी तरह दिल्ली की महिला वोटर्स को लुभाकर अपने खेमे में लाने पर टिकी हुई है. चुनाव की घोषणा से पहले ही महिला वोटर्स को लुभाने के लिए वादों की बौछार शुरू हो गई थी, जिसमें तीनों ही दलों ने एक-दूसरे को पीछे छोड़ने की कोशिश की है. लेकिन महिलाओं को जन प्रतिनिधि के तौर पर उतारने के मामले में तीनों ही पार्टी फिसड्डी साबित हुई हैं. इस बार चुनाव में महिला उम्मीदवारों की रिकॉर्ड संख्या उतरने के बावजूद यह आंकड़ा उस 33% से कोसों दूर रह गया है, जिसे महिलाओं के लिए आरक्षित करने की कवायद सारे राजनीतिक दल देश की सदन में करते रहे हैं. यह स्थिति तब है, जबकि दिल्ली के राज्य बनने के बाद अब तक सत्ता चलाने वाले 8 मुख्यमंत्रियों में से 3 महिलाएं रही हैं. इनमें भी शीला दीक्षित ने 1993 से 2025 के बीच 32 में से 15 साल राज किया है. उनके अलावा 1998 में कुछ दिन के लिए BJP की सुषमा स्वराज और अब AAP की आतिशी सत्ता कर रही हैं.
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96 महिला उम्मीदवारों में प्रमुख दलों ने दिए महज 26 टिकट
दिल्ली विधानसभा चुनावों में इस बार कुल 699 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं. इनमें 96 महिलाओं ने पर्चा भरा है. यह कुल उम्मीदवारों को महज 14% है यानी लोकतंत्र में महिलाओं के लिए 33% की हिस्सेदारी आरक्षित करने की कवायद यहीं फेल हो गई है. इन 96 महिला उम्मीदवारों को भी देखा जाए तो और ज्यादा निराशाजनक स्थिति सामने आती है. इन 96 महिलाओं मे से महज 26 को ही प्रमुख दलों से टिकट मिला है. BJP और AAP ने जहां 9-9 महिलाओं को टिकट दिया है, वहीं Congress ने 8 ही महिलाओं को उम्मीदवार बनाया है. बता दें कि दिल्ली विधानसभा में 70 सीट हैं. यदि इस आंकड़े के हिसाब से देखें तो प्रमुख दलों ने 10% टिकट भी महिलाओं को नहीं दिए हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो केवल सियासी परिवारों से जुड़ी हुईं या पार्षद रह चुकीं महिलाओं को ही टिकट मिल पाया है. आम महिला कार्यकर्ता को किसी दल ने तरजीह नहीं दी है.
साल 2020 के मुकाबले कैसी है स्थिति?
यदि महिला उम्मीदवारों की संख्या की तुलना साल 2020 के विधानसभा चुनाव से की जाए तो इस बार ज्यादा उम्मीदवार उतरी हैं. साल 2020 में कांग्रेस ने 10, आप ने 9 और भाजपा ने महज 3 महिला उम्मीदवार उतारी थीं. इनके साथ निर्दलीय उम्मीदवार मिलाकर कुल 76 महिला उम्मीदवार उन चुनाव में खड़ी हुई थीं. इनमें से 8 ने चुनाव जीतने में सफलता पाई है.
कितनी है दिल्ली में महिला वोटर्स की हिस्सेदारी
यदि दिल्ली में वोट गणित के लिहाज से महिला वोटर्स की हिस्सेदारी को आंका जाए तो चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आता है. भले ही राजनीतिक दलों ने महिलाओं को चुनाव में उम्मीदवारी के लायक नहीं समझा हो, लेकिन उनका वोट किसी का भी खेल पलट सकता है. चुनाव आयोग के आंकड़ों के हिसाब से इस बार दिल्ली में कुल 1.55 करोड़ वोटर्स हैं, जिनमें 83.49 लाख पुरुष वोटर हैं तो 71.74 लाख महिला वोटर भी मौजूद हैं. महिलाओं की संख्या वोटर्स में करीब 46% है. इस आंकड़े से आप खुद समझ गए होंगे कि चुनाव में हर महिला का वोट कितना अहम है.
घोषणापत्रों में लुभाने की हर दल ने की है खूब कोशिश
दिल्ली में महिला वोटर्स की पुरुषों के बराबर आबादी देखकर ही हर दल उन्हें लुभाने में जुटा हुआ है. महिलाओं को लुभाने के लिए ही सभी दलों ने अपने घोषणापत्रों में उन पर फोकस रखा है. हर दल के घोषणा पत्र में महिलाओं से जुड़े वादों पर डालिए एक नजर-
- भाजपा ने हर महिला को 2500 रुपये प्रति माह देने, हर गर्भवती महिला को 21000 हजार रुपये व 6 पोषण किट देने, विधवाओं-बेसहारा महिलाओं की पेंशन बढ़ाकर 3,000 रुपये करने, गैस सिलेंडर पर 500 रुपये की सब्सिडी व होली-दीवाली पर फ्री सिलेंडर देने का वादा किया है.
- आप ने भी महिलाओं को हर महीने 2100 रुपये देने, पहले से चल रही बसों में मुफ्त यात्रा की सुविधा को दिल्ली मेट्रो में भी लागू करने का वादा किया है.
- कांग्रेस ने महिलाओँ को हर महीने 2500 रुपये देने, महंगाई मुक्ति योजना के तहत 500 रुपये में गैस सिलेंडर देने, 5 किलो चावल, 2 किलो चीनी, 1 लीटर तेल, 6 किलो दाल व 250 ग्राम चायपत्ती वाली फ्री राशन किट देने का वादा किया है.
क्यों है घोषणापत्रों में महिलाओं पर ही फोकस?
भले ही राजनीतिक दल महिलाओं को उम्मीदवार नहीं बनाना चाहते हैं, लेकिन उन्हें महिला वोटर्स की ताकत का बखूबी पता है. दिल्ली में पिछले चुनाव में 62% महिला वोटर्स ने अपने वोट का इस्तेमाल किया था, जबकि पुरुष वोटर्स के मामले में यह आंकड़ा बेहद कम रहा था. देश में हाल ही में दूसरे राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में महिला वोटर्स ने सत्ता का दरवाजा खोलने का काम विजेता दल के लिए किया है. इनमें मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और ओडिशा में भाजपा की जीत का कारण महिलाओं को आर्थिक मदद देने वाली योजनाओं का वादा करने को माना गया है. मध्य प्रदेश में 'लाडली बहन योजना' में 1250 रुपये, महाराष्ट्र में 'मुख्यमंत्री लड़की बहन योजना' में 2100 रुपये और ओडिशा में 'सुभद्रा योजना' में हर साल 10,000 रुपये महिलाओं को देने का वादा किया गया था, जिसने BJP गठबंधन के लिए जीत की राह खोली. इससे पहले कर्नाटक में कांग्रेस को भी महिलाओं से जुड़े वादों ने जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी. इसके चलते दिल्ली में सभी दल महिला वोटर्स को ही फोकस कर रहे हैं.
पहले से ही कम रही है दिल्ली विधानसभा में महिलाओं की हिस्सेदारी
- दिल्ली को 1993 में राज्य का दर्जा मिलने के बाद 7 विधानसभा चुनाव हुए हैं.
- 39 महिला विधायक इन 7 विधानसभा चुनाव में जीतने में सफल रही हैं.
- 1998 में सबसे ज्यादा 9 महिला विधायकों ने चुनाव जीतने में सफलता पाई थी.
- कांग्रेस की 30, आप की 17 और भाजपा की 2 महिला विधायक ही आज तक जीती हैं.
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