जब मैं स्कूल-कॉलेज में थी तब की दुनिया बहुत अच्छी थी. सबसे अहम बात, मन निश्छल था. ना कोई व्यक्ति बुरा लगता था, न किसीकी बात बुरी लगती थी, न किसी तरह का डर, ना किसी बात की चिंता और ना कोई जिम्मेदारी. नकारात्मकता तो छू भी ना गयी थी.

छोटा सा परिवार, कुछ करीबी गिने-चुने रिश्तेदार, पहचान के कुछ चुनिंदा लोग और ढेर सारे दोस्त. उनके साथ ठहाके लगाना, चुहलकरना बस यही दुनिया थी. बहुत प्यारी थी वो दुनिया. आज भी अपने जीवन से कोई शिकायत नही . बस फर्क इतना है कि अब थोड़ी सी दुनियादारी आ गयी है और जो कष्ट हैं इस दुनियादारी की वजह से ही हैं.

शुरुआत दुनियादारी सीखने की

आजकल जब भी किसी विवाह में जाती हूं. नाजुक सी, प्यारी सी बेटी को भारी लहंगे और जेवर  लादे हुए संभल-संभल कर चलतेदेखती हूं, नपी-तुली मुस्कान और संकोच से बात करते देखती हूं तब मन मे यही विचार आता है कि लो आज से ही शुरुआत हो गई दुनियादारी सीखने की. अब रोज़ एक सबक सीखना होगा और धीरे धीरे वो प्यारी सी दुनिया ,वो निश्छल सी बेटी कहीं गुम हो जाएगी.

स्वस्ति मालवीय ग्वालियर में रहती हैं. पढ़ने-लिखने में रुचि है. यह उनकी फेसबुक पोस्ट है.

(यहां प्रकाशित विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)

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कहीं गुम न हो जाए बेटी की निश्छलता दुनियादारी में
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