देह विकलांग हो तो जरूरी नहीं कि सोच भी हो विकलांग, समझाती हैं कथाकार कंचन सिंह चौहान

Straightforward: कथाकार कंचन सिंह चौहान मानती हैं कि शारीरिक कमी को, विकलांगता को दिव्यांग कहने और लिखने का सुझाव अटपटा है. बल्कि अटपटा ही नहीं, उपहास उड़ाने जैसा है. देह की किसी कमी को सहज रूप से देखे जाने की जरूरत है. न उसे हेय दृष्टि से देखे जाने की जरूरत है और न ही सहानुभूति जताने वाले भाव से.

Disability : डॉ शुभ्रा के लिए आसमां के आगे जहां और भी है.

अपने शहर सिद्धार्थ नगर की जान डॉ शुभ्रा डिसेबल्ड डॉक्टर हैं पर उनकी कहानी केवल इतनी नहीं है. जानिए उनका पूरा सफर कंचन सिंह चौहान के शब्दों में.

It's not disabled friendly! विकलांग होना समाज अधिक मुश्किल बनाता है

विकलांग व्यक्ति अपनी बात कहने से सिर्फ़ इसलिए डरता है क्योंकि वह ख़ुद भी नहीं चाहता कि लोग उसे कमज़ोर समझें, दया का पात्र समझें…

वह जो दुनिया का सबसे मजबूत व्यक्ति है...

विकलांगता पर इससे बेहतर बात नहीं मिली. वाक़ई दुनिया का सबसे कमज़ोर व्यक्ति असल में दुनिया का सबसे मजबूत व्यक्ति होता है.