डीएनए हिंदी: कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में जब विजय यादव (Vijay Kumar Yadav Win Bronze) ने जूडो में ब्रॉन्ज अपने नाम किया तो देश खुशी से झूम गया था. भारतीय खिलाड़ियों को इन खेलों में अंडरडॉग माना जा रहा था लेकिन इस खेल में भी भारत के हिस्से एक ब्रॉन्ज और एक सिल्वर मेडल है. वाराणसी के पास के एक छोटे से गांव से निकलकर इस युवा खिलाड़ी ने वाकई हर बाधा पर विजय पाकर मेडल जीता है. जानें उनकी संघर्ष भरी कहानी.
Vijay Yadav Profile
विजय यादव के पिता गांव में लोहे को पिघलाकर छोटी-मोटी चीज़ें बनाने (खराद) का काम करते हैं. पिता की आमदनी इतनी भी नहीं थी कि वह बेटे की सही डाइट का इंतजाम कर पाते. दूर-दराज के इलाके में खेल से जुड़ी ट्रेनिंग की भी सुविधा नहीं थी. सही ट्रेनिंग और डाइट के लिए विजय लखनऊ चले गए थे और वहीं उन्होंने खेल की शुरुआती बारीकियां सीखी थीं.
बर्मिंघम में जूडो में पदक जीतकर उन्होंने 3 दशक से इस खेल में पदक के लिए तरस रहे सूखे को खत्म किया है. सोमवार को भारत के 2 खिलाड़ियों ने जूडो में पदक जीता है. जूडो में विजय ने ब्रॉन्ज तो सुशीला देवी ने सिल्वर मेडल पर कब्जा किया है. विजय का यह पहला कॉमनवेल्थ गेम्स था और उन्हें पदक की भी पूरी उम्मीद थी. भोपाल की नेशनल सेंटर आफ एक्सीलेंसी स्कीम का फायदा विजय को मिला और उन्होंने वहीं कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए पूरी तैयारी की थी.
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परिवार ही नहीं पूरे गांव में खुशी का माहौल
विजय की उपलब्धि पर उनका परिवार ही नहीं पूरे गांव में खुशी का माहौल है. कॉमवेल्थ गेम्स में उन्हें परफॉर्म करते देखने के लिए उनके बड़े भाई अजय यादव भी छुट्टी लेकर घर आए थे. अजय सेना में जवान हैं और फिलहाल श्रीनगर में पोस्टेड हैं.
परिवार ने स्थानीय मीडिया से बात करते हुए कहा कि हम तो उसकी परफॉर्मेंस के वक्त टीवी बंद करके प्रार्थना किए जा रहे थे. जब मेडल की खबर मिली तब फिर से टीवी ऑन किया था और उसे मेडल लेते टीवी पर देखा. विजय के पिता ने कहा कि मेरे बेटे ने बहुत मेहनत की है. मैं लोहे के कारखाने में काम करता था और फिर वह काम भी छूट गया था. उसने अपने दम पर यह सफलता पाई है. प्रैक्टिस के लिए वह कई किमी. रोज पैदल साइकिल चलाता था.
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विजय यादव ने जूडो में जीता ब्रॉन्ज, पिता के पास सही डाइट तक के नहीं थे पैसे, जानें संघर्ष की अद्भुत कहानी