डीएनए हिंदी: भगवान शिव का श्रृंगार अलौकिक होता है और उनके इस श्रृंगार के पीछे कथा भी है. सावन मास में भगवान शिव और उनके परिवार की पूजा से अमोघ पुण्‍य की प्राप्ति होती है. इस पूरे माह में भगवान शिव की विधिवत मंत्रों के साथ अभिषेक करना चाहिए.

शिवपुराण में भगवान शिव के मंत्र, पूजा व‍िधि और कई कथाओं का वर्णन है. तो चलिए आज आपको बताएं कि शिव जी ने गले में सांप, जटाओं में गंगा, माथे में चंद्रमा, हाथों में त्रिशूल, डमरू क्‍यों धारण किया है. 

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भोलेनाथ के माथे में चंद्रमा 
जब देवताओं और राक्षस के बीच समुद्र मंथन हुआ था, तो अमृत के साथ विष भी निकला था. तब सृष्टि को बचाने के लिए भगवान शिव ने इसे पी लिया था और तब इस विष के प्रभाव से उनका शरीर तपने लगा था. ऐसे में शिवजी से चंद्रमा ने प्रार्थना की वह उनके माथे पर विराजमान हो जाएं. चंद्र शीतलता के लिए जाने जाते हैं. चंद्र के शिवजी के माथे पर विराजमान होने से उन्‍हें शीतलता मिलती थी. 

शिव जी की जटाओं में गंगा का निकलना
शिव पुराण में वर्णित है कि भागीरथ ने मां गंगा को पृथ्वी को लाने के लिए कठोर तपस्या की थी ताकि वह अपने पूर्वजों को मोक्ष दिला सकें। उनकी तपस्या से मां गंगा प्रसन्न तो हो गईं लेकिन गंगा का वेग पृथ्वी नहीं सह पाती इसलिए भागीरथ ने भगवान शिव से प्रार्थना की और तब  शिव ने मां गंगा को अपनी जटा में धारण किया और सिर्फ एक जटा ही खोली जिससे कि पृथ्वी में मां गंगा अवतरित हो सकें.

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शिव जी के गले में नाग
भगवान शिव के गले में सर्प नहीं बल्कि वासुकी सर्प है. समुद्र मंथन के दौरान रस्सी के बजाय मेरु पर्वत के चारों ओर रस्सी के रूप में वासुकी सर्प का इस्तेमाल किया गया था.  एक तरफ देवता थे और दूसरी तरफ राक्षस समुद्र मंथन कर हरे थे जिससे वासुकी का पूरा शरीर लहूलुहान हो गया था यह देख कर भगवान शिव ने उन्‍हें अपने गले में धारण कर लिया था.

शिव जी के हाथों में त्रिशूल
भगवान शिव जब प्रकट हुए थे तब उनके साथ रज, तम और सत गुण भी थे. इन्हीं तीनों गुणों से मिलकर उनका ये त्रिशूल बना था.  माना जाता है कि भोलेनाथ का त्रिशूल तीन काल यानी भूतकाल, वर्तमान और भविष्य काल का प्रतीक है. इसी कारण भगवान शिव को त्रिकालदर्शी भी कहा जाता है.

भगवान शिव का डमरू
भगवान शिव से सृष्टि के संचार के लिए डमरू धारण किया था. कथा के अनुसार जब मां सरस्वती प्राकट्य हुई थी तब पूरा संसार संगीत हीन था.  ऐसे में पहली बार भगवान शंकर ने ही नृत्य किया और 14 बार डमरू बजाया था. डमरू की आवाज से ही धुन और ताल का जन्म हुआ. इसी कारण डमरू को ब्रह्मदेव का स्वरूप माना जाता है.

 

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Shringaar Katha of Lord Shankar Sawan Somwar Vrat Puja and Significance
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भगवान शंकर के सिर पर चंद्र और हाथ में त्रिशूल के पीछे क्‍या है रहस्‍य
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भगवान शंकर के सिर पर चंद्र और हाथ में त्रिशूल के पीछे क्‍या है रहस्‍य
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भगवान शंकर के सिर पर चंद्र और हाथ में त्रिशूल के पीछे क्‍या है रहस्‍य

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Sawan Somwar 2022: भगवान शंकर ने सिर पर चंद्रमा और गले में नाग क्‍यों किया धारण, जानिए शिव श्रृंगार का ये रहस्य