डीएनए हिंदी: हमारे शरीर के साथ-साथ दिमाग का भी स्वस्थ रहना एक अच्छे और खुशहाल जीवन की निशानी है. हम अक्सर अपने शरीर का तो ध्यान रखते है. लेकिन दिमाग से जुड़ी समस्याओं को हल्के में लेते हैं या ये कहें कि ऐसी समस्याओं पर ध्यान ही नहीं देते. दुनिया के कई देश ऐसे हैं जहां Mental health से जुड़ी समस्याओं को गंभीरता से नहीं लिया जाता है . लेकिन क्या आप जानते हैं मस्तिष्क से जुड़ी समस्या की वजह से दुनियाभर में सालाना कई लाख करोड़ का नुकसान होता है.
मानसिक बीमारी के कारण देश को होता है बड़ा आर्थिक नुकसान
विश्व संगठन के मुताबिक, कर्मचारियों के खराब मानसिक स्वास्थ्य की वजह से अनुपस्थिति, नौकरी छोड़ने और अन्य कारणों से भारतीय कंपनियों को सालाना 14 अरब डॉलर का नुकसान होता है. WHO की मानें तो भारत को साल 2012 से 2030 के बीच अनुमानित तौर पर तकरीबन 1.03 लाख करोड़ डॉलर तक का आर्थिक नुकसान हो सकता है.
हर 10,000 में से 2,443 लोगों को मानसिक बीमारी
विश्व स्वास्थ्य संगठन मुताबिक, भारत में जिस तरह से युवा आबादी बढ़ रही है. उसी तरह से मानसिक रोग और उनसे जुड़ी समस्या भी तेज़ी से अपना पैर पसार रही है.आकड़ों के हिसाब से हर 10,000 में से 2,443 लोग मानसिक समस्या से किसी न किसी तरह से ग्रसित हैं.
देश में 4 लाख नागरिकों पर 3 मनोचिकित्सक
कुछ के लिए यह अवधि चंद हफ्तों की है, तो कई लोग महीनों और वर्षों मानसिक समस्याओं के साथ जी रहे हैं. इंडियन जर्नल ऑफ साइकियाट्री का आंकड़ा बताता है कि देश में औसतन 4 लाख नागरिकों पर 3 ही मनोचिकित्सक हैं. जबकि कम से कम हर 4 लाख की आबादी पर 12 मनोचिकित्सक होने चाहिए.आसान शब्दों में कहे तो देश में मनोचिकित्सकों की तादाद औसत से चार गुना कम है.
आत्महत्या की तीसरी सबसे बड़ी वजह है मानसिक समस्या
मानसिक सेहत को स्वास्थ्य का जरूरी हिस्सा समझना चाहिए लेकिन संकोच और कम जानकारी के कारण लोग इलाज नहीं करवाते. एनसीआरबी के अनुसार, 2021 में 13,792 लोगों ने मानसिक बीमारियों से जूझते हुए आत्महत्या की थी. यह देश में आत्महत्या की तीसरी सबसे बड़ी ज्ञात वजह है. इनमें से 6,134 मामले 18 से 45 साल के युवाओं के थे. इसमें वे मामले शामिल नहीं, जिनमें कोई अन्य मानसिक तनाव था.
आकड़ें ये भी कहते है की दुनिया भर में मानसिक समस्याओं से जूझ रहे नागरिकों में से 15 प्रतिशत भारत में हैं. वही, इनमें से 80% लोग किसी भी तरह की मेडिकल सहायता नहीं लेते हैं. हमारे देश में आज भी बड़ी संख्या में लोग मेटल हेल्थ पर बात करना पसंद नहीं करते है.
मानसिक बीमारी को छुपाना गलत
भारत में मानसिक समस्या को लेकर लोगों में जागरूकता तो आई है. फिर भी अक्सर समाज में इसे आसानी से स्वीकारा नहीं जाता है. वजह सामाजिक अपमान से इसे जोड़ा जाता है. कई बार मनोचिकित्सा की बात पर परिवार के ही वरिष्ठ सदस्य गुस्सा हो जाते हैं. बेहतर यही है कि जांच करवाएं, दवाएं और इलाज का सही पालन करें. अपनी हॉबी से जुड़े रहें, हर वो काम करे जिससे खुशी मिलती हो. कभी भी अगर मानसिक परेशानी के लक्षण दिखे तो डॉक्टर या सलहार से संपर्क ज़रूर करे.
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