सु्प्रीम कोर्ट की Electoral Bond मामले में नकेल कसते ही न केवल एसबीआई ने यूनीक नंबर के साथ एक एक जानकारी चुनाव आयोग को सौंप दी है. यही नहीं ये जो अबतक गुमनाम वचन पत्र था सार्वजनिक हो गया है और यह अब चुनाव आयोग की वेबसाइट पर अपलोड हो चुका है. इससे अब इलेक्टोरल बांड से जुड़ी एक एक जानकारी आमलोगों के सामने आ गई है. यही नहीं इससे यह भी पता चल चुका है कि कौन सी कंपनी किस पार्टी पर कितना मेहरबान है. 

इलेक्टोरल बांड को लेकर जब से चर्चा शुरू हुई है तबसे राजनीतिक पार्टियां भी इसे लेकर अजब गजब बायन दे रही हैं लेकिन यहां ये जानना जरूरी है कि क्या है ये इलेक्टोरल बांड की ABCDE. E से शुरू होता है इलेक्टोरल बांड यानी गुमनाम वचन पत्र . 

इलेक्टोरल को मैं गुमनाम वचन पत्र क्यों कह रही हूं? इसलिए क्योंकि अभी तक यह गुमनाम ही था हालांकि इसे लांच इसलिए किया गया था कि इससे पार्टियों को मिलने वाले चंदे का खुलासा होता रहेगा और यह एक साफ सुथरा प्रोसेस होगा. 


यह भी पढ़ें: Electoral Bonds के जरिए BJP-कांग्रेस को किन-किन कंपनियों से मिला चंदा, EC ने जारी किया डेटा


इलेक्टोरल बांड यानि गुमनाम वचन पत्र

राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट है. इसे वचन पत्र भी कह सकते हैं क्योंकि इसके माध्यम से कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी स्टेट बैंक की कुछ गिनी चुनी शाखाओं से बांड खरीदकर अपनी पसंद की किसी भी पॉलिटिकल पार्टी को चुपचाप दान मे दे सकता है. 

देश की मोदी सरकार ने कंपनियों द्वारा दिए जाने पैसों में पारदर्शिता लाने के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की घोषणा 2017 में की थी. हालांकि इस योजना को 29 जनवरी 2018 को मान्यता मिली और इसे कानूनी रूप से लागू कर दिया था.

इस योजना के लागू होते ही रिजर्व बैंक ने देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक भारतीय स्टेट बैंक के कुछ चुनिंदा ब्रांच को राजनीतिक दलों को बॉन्ड जारी करने का अधिकार दिया. 
इस बांड को कोई भी वो इंसान खरीद सकता है जिसके पास देश में एक ऐसा बैंक खाता या एकाउंट हो जिसका केवाईसी (नो योर कस्टमर) हो चुका हो. जिससे उनकी एक यूनिक आईडी बन जाती है. क्योंकि इलेक्टोरल बांड में देने वाले का नाम नहीं दिया जाता है.

इस योजना के तहत दान दाता भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा ब्रांच से 1,000 , 10,000, एक लाख, दस लाख और एक करोड़ रुपये में से किसी भी राशि के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद सकता है.

इन बॉन्ड्स का टाइम पीरियड केवल 15 दिन ही होता है, इस दौरान इसका इस्तेमाल सिर्फ जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत रजिस्टर्ड पॉलिटकल पार्टीज को दान देने के लिए किया जाता है. 


यह भी पढ़ें: Megha Engineering ने महाराष्ट्र में प्रोजेक्ट मिलने से ठीक पहले खरीदे 140 करोड़ के इलेक्टोरल बॉन्ड, जमकर दिया दान


ये हैं नियम

इलेक्टोरल बांड सिर्फ उन पॉलिटिकल पार्टियों को ही चंदा के रूप में दिया जा सकता है जिन्होने लोकसभा या फिर विधान सभा के चुनाव में डाले गए वोटों में कम से कम एक प्रतिशत वोट हासिल किया हो.

इसके साथ चुनावी बांड साल में सिर्फ चार महीने ही खरीद के लिए उपलब्ध होते हैं जिसमें जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर का महीना खास है. और इन महीनों में भी महज 10 दिनों के लिए यह खरीद के लिए उपलब्ध होते हैं.

यही नहीं केंद्र सरकार की अधिसूचना के आधार पर जिस साल लोकसभा चुनाव होना है उसमें  30 दिनों की और मोहलत दी जाती है. 


यह भी पढ़ें: इन 10 लोगों ने 152.2 करोड़ का Electoral Bond देकर BJP को किया मालामाल, पढ़ें दानवीरों के नाम


साफ होगी पॉलिटिकल फंडिंग

भारत सरकार ने जब इस योजना की शुरुआत की थी तो यह कहा गया था कि इलेक्टोरल बॉन्ड से देश में राजनीतिक फ़ंडिंग की व्यवस्था साफ़- सुथरी होगी. लेकिन पिछले कुछ सालों में ये सवाल बार-बार उठते रहे कि इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिए चंदा देने वाले की पहचान क्यों गुप्त रखी गई है और यह भी कहा जाता रहा है कि इससे काले धन को बढ़ावा मिल सकता है. जानकारों का यह भी कहना है कि यह योजना बड़े कॉर्पोरेट घरानों को पहचान बताए बिना पैसे दान करने में मदद करने के लिए बनाई गई थी.

इलेक्टोरल बांड को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएं दायर की गई थीं.  एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और ग़ैर-लाभकारी संगठन कॉमन कॉज़ द्वारा संयुक्त रूप से 2017 में पहली याचिका दायर की गई थी और  भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने दूसरी याचिका साल 2018 में दायर की थी.

सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में कहा गया था कि इस योजना की वजह से देशी और विदेशी कंपनियां जमकर पॉलिटिकल पार्टियों को दान और फंडिंग कर रही है जिससे उनके पास असीमित धन इकट्ठे हो गए और इस तरह से करप्शन लीगल हो गया.  

वरिष्ठ वकील नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि इलेक्टोरल बांड पर याचिकर्ताओं ने कंपनी अधिनियम, 2013 में किए गए उन संशोधनों पर भी आपत्तियां जताई हैं जो कंपनियों को अपने वार्षिक फायदे और नुकसान में पोलिटिकल पार्टियों को दिए गए दान के विवरण देने से छूट देते हैं. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इससे राजनीतिक फ़ंडिंग में पारदर्शिता तो कम होगी ही साथ ही राजनीतिक दलों द्वारा ऐसी कंपनियों जिन्होंने जमकर पार्टियों को दान दिया है को अनुचित लाभ पहुंचाने का फायदा भी मिलेगा. 


यह भी पढ़ें: कोलकाता की ट्रेडिंग कंपनी ने AAP पर जमकर लुटाए पैसे, इन पार्टियों के भी खरीदे इलेक्टोरल बॉन्ड


कंपनियां ही नहीं अकेले लोगों ने भी जम कर दिए बांड

पिछले दिनों एसबीआई ने चुनाव आयोग को वो पूरी लिस्ट सौंपी जिसमें बीजेपी सहित किन किन पार्टियों को कितने कितने रुपये का इलेक्टोरल बांड मिला उसका ब्योरा था. इसमें यह भी पता चला कि सिर्फ कंपनियां ही नहीं बल्कि लोगों ने भी अपनी पसंदीदा पार्टियों को जमकर चंदा दिया है. चुनाव आयोग की साइट पर जारी आंकड़ों से पता चला है कि12 अप्रैल, 2019 से 11 जनवरी, 2024 के बीच कुल 180.02 करोड़ रुपए के चुनावी बांड लोगों ने खरीदें हैं, जिनमें अकेले 152.2 करोड़ रुपये बीजेपी को मिले हैं. इसके बाद ममता बनर्जी की टीएमसी को भी जम कर चंदा मिला है उनकी पार्टी को 16.02 करोड़ रुपये मिले हैं.

DNA हिंदी अब APP में आ चुका है. एप को अपने फोन पर लोड करने के लिए यहां क्लिक करें.

देश-दुनिया की Latest News, ख़बरों के पीछे का सच, जानकारी और अलग नज़रिया. अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी.

Url Title
know ABCD of electoral bonds SBI has given BJP Congress TMC data to election commission
Short Title
ये है Electoral Bond की ABCD, नहीं आया है समझ तो अब समझ लीजिए
Article Type
Language
Hindi
Section Hindi
Created by
Page views
1
Embargo
Off
Image
Image
Electoral Bonds
Caption

Electoral Bonds

Date updated
Date published
Home Title

ये है  Electoral Bond की ABCD, नहीं आया है समझ तो अब समझ लीजिए

Word Count
1066
Author Type
Author