राजौरी जिले के नौशेरा में जन्मे हवलदार बलदेव सिंह का जीवन साहस, देशभक्ति और बलिदान की मिसाल है. उनका जन्म 27 सितंबर 1931 को नौनिहाल गांव में हुआ था. महज 16 वर्ष की उम्र में उन्होंने ब्रिगेडियर उस्मान के नेतृत्व में बाल सेना का हिस्सा बनकर 1947-48 के झांगर और नौशेरा की लड़ाई में योगदान दिया. बाल सेना के सदस्य के रूप में उन्होंने भारतीय सेना के लिए संदेशवाहक का कार्य किया, जो उस दौर में काफी जोखिम भरा था. उनके इस योगदान को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी सराहा.
सेना में योगदान
14 नवंबर 1950 को बलदेव सिंह भारतीय सेना में शामिल हुए. उन्होंने तीन दशकों तक देश की सेवा की और 1961, 1962 और 1965 के भारत-पाक युद्धों में हिस्सा लिया. रिटायरमेंट के बाद भी देश सेवा का जज्बा खत्म नहीं हुआ. 1971 के युद्ध में उन्हें फिर से बुलाया गया, जहां उन्होंने 11 जाट बटालियन के साथ आठ महीने तक अपनी सेवाएं दीं.
पंडित नेहरू से लेकर पीएम मोदी तक ने किया सलाम
अपने लंबे सैन्य करियर में बलदेव सिंह को अनेक सम्मानों से नवाजा गया. उनके साहस की प्रशंसा जवाहरलाल नेहरू से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक ने की. बीते सोमवार को उनका निधन हो गया.उनके गांव नौनिहाल में पूरे सैन्य सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया. उनके निधन से न केवल नौशेरा बल्कि पूरा देश गहरे शोक में है.
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नौशेरा का गौरव
हवलदार बलदेव सिंह का जीवन एक प्रेरणा है. उनकी बहादुरी और योगदान ने न केवल उनके गांव बल्कि पूरे देश को गौरवान्वित किया. उनकी कहानी आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी.
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