डीएनए हिंदी: बदलते लाइफस्टाइल की वजह से बेहद कम उम्र के बच्चे अकेलेपन और डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं. छोटे बच्चों में अकेलापन और अवसाद बड़ी समस्या बनती जा रही है. जिंदगी देखकर बच्चे डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं. एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 90 फीसदी बच्चे अकेलापन महसूस करते हैं.
पूजा मक्कड़ की एक रिपोर्ट के मुताबिक 84 फीसदी बच्चों में मोबाइल फोन में गुम रहने की वजह से बातें करने की आदत खत्म हो गई है. पूजा मक्कड़ 88 फीसदी बच्चे भविष्य में माता पिता के साथ ज्यादा वक्त बिताना चाहते हैं. 93 फीसदी बच्चों को लगता है कि उनके माता पिता से रिश्ते और गहरे और बेहतर होने चाहिए.
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बच्चे अकेलेपन से बचने के लिए इस्तेमाल करते हैं मोबाइल
सर्वे में सामने आया कि बच्चे अकेलेपन से बचने के लिए मोबाइल में घुसे रहते हैं. मां बाप के नजरअंदाज करने को महसूस करने से बचने के लिए मोबाइल फोन में बिजी हो जाते हैं. नतीजे देखने के बाद कंपनी के कारपोरेट स्ट्रेटेजी हेड गीतज चानन्ना की अपील है हर साल में एक दिन मोबाइल स्विच ऑफ करने की कैंपेन चलाई जाए. इस साल 20 दिसंबर को एक घंटे के लिए मोबाइल फोन स्विच ऑफ करने की अपील की गई है.
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बच्चों को बचाने के लिए क्या करें?
- ज्यादातर बाल मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि बच्चों को कभी अकेला न छोड़ें. उन्हें डिवाइस की तलब न लगने दें. उनसे बातचीत करें, उन्हें कहानियां और किस्से सुनाएं. उन्हें ज्यादा से ज्यादा इंगेज रखने की कोशिश की जाए.
- बच्चों को खेल-कूद में व्यस्त रखें. उनके साथ खेलें, अच्छी संगत में रखें. उन्हें व्यस्त रखें, उनका अवसाद कम हो जाएगा.
- मोबाइल फोन और टीवी दोनों बच्चों के लिए घातक है. उन्हें किसी भी डिवाइस से दूर रखें, उन्हें कम से कम इन चीजों का इस्तेमाल करने दें.
- बच्चों को सामाजिक बनाएं. पार्क में ले जाएं उन्हें मिलनसार होने दें. इससे उनका व्यक्तित्व निखरेगा.
(Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ से परामर्श करें.)
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मोबाइल बना जी का जंजाल, डिप्रेशन और अकेलेपन की मार से जूझ रहे बच्चे