डीएनए हिंदी: आजकल सुस्त जीवनशैली और खानपान की खराब आदतों के कारण ज्यादातर लोग सेहत से जुड़ी कई समस्याओं से घिर हुए हैं. इन्हीं समस्याओं में से एक है थायराइड कैंसर.(Thyroid Cancer) इसकी शुरुआत गले से होती है और इसके लक्षण जल्द ही दिखने लग जाते हैं. लेकिन ज्यादातर लोग इन पर ध्यान नहीं देते हैं. बता दें कि थायराइड कैंसर के कई रूप होते हैं, जिनमें फॉलिक्युलर कार्सिनोमा, मेडुलरी कार्सिनोमा, एनाप्लास्टिक कार्सिनोमा, लिम्फोमा और अन्य कैंसर शामिल हैं. इनमें से सबसे आम है थायराइड पैपिलरी कार्सिनोमा कैंसर. इससे (Thyroid Cancer Symptoms) बचने के लिए उसका इलाज और पहचान समय पर होना बहुत ही जरूरी है. हेल्थ एक्सपर्ट्स के मुताबिक ये कैंसर बचपन में रेडिएशन के संपर्क में आने के कारण हो सकता है. इसके अलावा थायराइड के कैंसर की पुरानी हिस्ट्री और कुछ जेनेटिक कारणों से ये कैंसर हो सकता है.
क्या हैं थायराइड कैंसर के लक्षण
- गले में गांठ होना जो गर्दन में महसूस होता है
- आवाज का कर्कश होना
- खाना निगलने में मुश्किल
- सांस लेने मे तकलीफ
- लगातार खांसी की समस्या
- गर्दन में सूजन लिम्फ नोड्स
- गर्दन और गले में दर्द होने जैसे लक्षण
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थायराइड कैंसर से बचने के आसान उपाय
थायराइड के लिए वैसे तो कई उपचार उपलब्ध हैं लेकिन डाइट में बदलाव करके आप टी 3 और टी 4 कम और ज्यादा उत्पादन को मैनेज कर सकते हैं और इन समस्याओं से बच सकते हैं. ऐसी स्थिति में एंटीऑक्सिडेंट वाले फल और सब्जियां जैसे ब्लूबेरी, टमाटर, शिमला मिर्च और एंटीऑक्सिडेंट से भरपूर अन्य खाद्य पदार्थ समग्र स्वास्थ्य में सुधार कर सकते हैं और थायरॉयड ग्रंथि को लाभ पहुंचा सकते हैं. इसके अलावा विटामिन बी से भरपूर चीजें जैसे अनाज खाने से भी मदद मिलती है.
क्या है इसका इलाज
हेल्थ एक्सपर्ट्स के मुताबिक थायराइड का इलाज अलग-अलग चीजों पर निर्भर करता है, यह देखा जाता है कि मरीज की उम्र क्या है और गले में मौजूद सूजन का साइज कितना है. अधिकतर मामलों में मरीज की सर्जरी की जाती है. बता दें कि थायराइड ग्लैंड की सर्जरी से हेमी-थायराइडेक्टोमी होती है. हेमी-थायराइडेक्टोमी में इस ग्लैंड का आधा हिस्से को ऑपरेशन के माध्यम से हटा दिया जाता है. इसके अलावा टोटल थायराइडेक्टोमी में पूरे ग्लैंड को ही हटाना पड़ता है. दरअसल भविष्य में कैंसर के पनपने की आशंका को देखते हुए ऐसा किया जाता है.
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बता दें कि थायराइड कैंसर के मरीजों की हर 6 महीने और एक के भीतर फिर जांच की जाती है और इस दौरान बीमारी की निगरानी के लिए क्लिनिकल एग्जामिनेशन होता है. इसके साथ मरीज का अल्ट्रासोनोग्राफी और थायरोग्लोबुलिन भी किया जाता है, जिससे यह पता लगाया जाता है कि बीमारी कहीं फिर से तो नहीं पनप रही है.ट
Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ से परामर्श करें.)
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