डीएनए हिंदीः आज यानी 11 अप्रैल को वर्ल्ड पार्किंसन डिजीज पर चलिए इस बीमारी के खतरे और डायबिटीज से संबंध पर डॉक्टर से जानें कि कैसे ये बीमारी हाई ब्लड शुगर वाले लोगों को भी खतरे में डाल रही है.

 डायबिटीज से कई कॉम्प्लीकेशन्स होते हैं जैसे आई प्रॉब्लम्स, हार्ट संबंधी समस्याएं, किडनी का फेल होना और स्किन प्रॉब्लम्स आदि. लेकिन एक गंभीर बीमारी पार्किंसन का खतरा (Risk of Parkinson Disease Onset in Diabetes) इस बीमारी में बहुत होता है. तो चलिए जानें कि 
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पार्किंसन रोग (Parkinson Disease) है 

नेशनल इंस्टिट्यूट ऑन एजिंग (National Institute on Aging) के अनुसार पार्किंसन रोग (Parkinson Disease) एक ब्रेन डिसऑर्डर (Brain disorder) है, जिसके कारण प्रभावित व्यक्ति कंपकंपी, स्टिफनेस और चलने, बैलेंस करने व कोऑर्डिनेशन में समस्या का अनुभव करते हैं. यह समस्या आपने कई बुजुर्गों में देखी होगी लेकिन अब ये समस्या कम उम्र में ही डायबिटीज के कारण होने लगी है. इस बीमारी में लोगों को मेंटल - बिहेवियर चेंज (Mental behavior change), स्लीप प्रॉब्लम (Sleep problem), डिप्रेशन (Depression), मेमोरी डिफीकल्टीज (Memory difficulties) और थकावट (Exhaustion) आदि का सामना करना पड़ता है.

डायबिटोलॉजिस्ट डॉ. आतीश आनंद बताते हैं कि डायबिटीज पेशेंट्स में पार्किंसन का खतरा भी ज्यादा होता है और उम्र के बढ़ने के साथ ही इन दोनों रोगों की संभावना भी बढ़ती जाती है. खासतौर पर टाइप 2 डायबिटीज वालों में इस बीमारी के डेवलप होने का खतरा ज्यादा होता है. क्योंकि यह दोनों रोग कई बायोलॉजिकल सिमिलेरिटीज शेयर करते हैं, जैसे टॉक्सिक प्रोटीन एक्युमुलेशन (Toxic protein accumulation), लाइसोसोमल (Lysosomal), माइटोकॉन्ड्रियल डिसफंक्शन (Mitochondrial dysfunction), और क्रॉनिक सिस्टमिक इंफ्लेमेशन (Chronic systemic inflammation) आदि. कई स्टडीज से इन दोनों के बीच के लिंक को साबित किया है. 

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क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी लंदन (Queen Mary University of London) की स्टडी बताती है कि  डायबिटीज के उपचार के लिए उपलब्ध दवाओं से इस खतरे और इसके प्रोग्रेशन को स्लो किया जा सकता है. इसके साथ ही डायबिटीज के रोगियों को पार्किंसन रोग (Parkinson Disease) को मॉनिटर करने और शुरुआत में ही इसका इलाज कराने व पर्याप्त प्रीकॉशन्स को अपनाने की सलाह दी जाती है

पार्किंसंस के संकेत और लक्षण में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं :-

कंपन (Tremor) :- कंपकंपी, या लयबद्ध कंपकंपी (rhythmic shaking), आमतौर पर एक अंग में शुरू होती है, अक्सर हाथ या उंगलियों में. आप अपने अंगूठे और तर्जनी को आगे-पीछे रगड़ सकते हैं. इसे पिल-रोलिंग कंपकंपी के रूप में जाना जाता है. आराम के समय आपका हाथ कांप सकता है. जब आप कार्य कर रहे हों तो झटकों में कमी आ सकती है. 

धीमी गतिविधि (ब्रैडीकिनेसिया) (Slowed movement (bradykinesia) :- समय के साथ, पार्किंसंस रोग आपकी शारीरिक गतिविधियों को धीमा कर सकता है, जिससे सरल कार्य कठिन और समय लेने वाला हो जाता है. उदाहरण के लिए आप पहले के मुकाबले धीमे चलेंगे और उठने बैठने में भी समस्या होगी. 

कठोर मांसपेशियां (Rigid muscles) :- आपके शरीर के किसी भी हिस्से में मांसपेशियों में अकड़न हो सकती है. कठोर मांसपेशियां दर्दनाक हो सकती हैं और आपकी गति की सीमा को सीमित कर सकती हैं.

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संतुलन और शारीरिक बनावट में बदलाव (Changes in balance and body appearance) :- इस दौरान आप महसूस करेंगे कि आपकी शारीरिक बनावट में बदलाव हो रहा है और आपको संतुलन बनाने में कमी आ रही है. शुरुआत में हो सकता है कि आपको इस बारे में अहसास न हो लेकिन समय के साथ यह बढ़ता है.  

स्वचालित गतिविधियों का नुकसान (Loss of automatic movements) :- पार्किंसंस रोग होने पर न केवल खुद से की जाने वाले गतिविधियों में परेशानी आती है बल्कि स्वचालित गतिविधियों में भी समस्याएँ आती है. जैसे - पलकें झपकाना, अचेतन हरकतें करने में समस्या, मुस्कुराने में कठिनाई और चलते समय हाथ में होने वाली गतिविधि न होना. 

बोलने एक तरीके में बदलाव (Speech changes) :- इस दौरान रोगी के बोलने के तरीके में काफी बदलाव आता है. वह शुरुआत में धीरे-धीरे बात करेंगे और अचानक से तेज बोलना शुरू कर देते हैं और उसी क्षण बोलने में झिझकने लगते हैं, वहीं कई बार गाली-गलौज की स्थिति भी होने लगती है. सरल शब्दों में कहा जाए तो रोगी एक दम नीरस हो जाता है. 

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सोचने में कठिनाइयाँ (Thinking difficulties) :- रोगी को संज्ञानात्मक समस्याओं (मनोभ्रंश – dementia) और सोचने की कठिनाइयों की समस्या हो हैं. ये आमतौर पर पार्किंसंस रोग के बाद के चरणों में होते हैं. ऐसी संज्ञानात्मक समस्याओं को आमतौर पर दवाओं से मदद नहीं मिलती है.

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अवसाद और भावनात्मक परिवर्तन (Depression and emotional changes) :- रोगी अवसाद का अनुभव कर सकते हैं, कभी-कभी बहुत प्रारंभिक अवस्था में. अवसाद के लिए उपचार प्राप्त करने से पार्किंसंस रोग की अन्य चुनौतियों का सामना करना आसान हो सकता है. रोगी अन्य भावनात्मक परिवर्तनों का भी अनुभव कर सकते हैं, जैसे भय, चिंता या प्रेरणा की हानि. डॉक्टर आपको इन लक्षणों के उपचार के लिए दवा दे सकते हैं.

निगलने में समस्या (Swallowing problems) :- जैसे-जैसे स्थिति बढ़ती है, निगलने में कठिनाई हो सकती है. धीमी गति से निगलने के कारण लार मुंह में जमा हो सकती है, जिससे लार टपकने की समस्या हो सकती है.

चबाने और खाने की समस्या (Chewing and eating problems) :- आखिरी चरण में पार्किंसंस रोग मुंह में मांसपेशियों को प्रभावित करता है, जिससे चबाना मुश्किल हो जाता है. जब चबाने से जुड़ी समस्याएँ आती है तो रोगी में पोषण की समस्या होना स्वभाविक है.

नींद की समस्या और नींद संबंधी विकार (Sleep problems and sleep disorders) :- पार्किंसंस रोग से पीड़ित लोगों को अक्सर नींद की समस्या होती है, जिसमें रात भर बार-बार जागना, जल्दी उठना या दिन में सो जाना शामिल है. लोग तेजी से आंखों की गति नींद व्यवहार विकार का भी अनुभव कर सकते हैं, जिसमें आपके सपनों को पूरा करना शामिल है. दवाएं आपकी नींद में सुधार कर सकती हैं.

मूत्राशय की समस्या (Bladder problems) :- पार्किंसंस रोग मूत्राशय की समस्याओं का कारण बन सकता है, जिसमें मूत्र को नियंत्रित करने में असमर्थता या पेशाब करने में कठिनाई शामिल है.

कब्ज (Constipation) :- पार्किंसंस रोग होने पर पाचन क्रिया काफी धीमी हो जाती है जिसकी वजह से कब्ज होने लगती है. 

उपरोक्त समस्याओं के साथ-साथ रोगी को निम्नलिखित कुछ अन्य जटिलताएँ हो सकती है :-

  1. रक्तचाप बदल जाता है (Blood pressure changes) :- रक्तचाप में अचानक गिरावट (ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन – orthostatic hypotension) के कारण खड़े होने पर आपको चक्कर या चक्कर आ सकता है.
  2. गंध विकार (Smell dysfunction) :- रोगी अपनी गंध की भावना के साथ समस्याओं का अनुभव कर सकते हैं. उन्हें कुछ गंधों या गंधों के बीच के अंतर को पहचानने में कठिनाई हो सकती है. 
  3. थकान (Fatigue) :- पार्किंसन रोग से पीड़ित बहुत से लोग ऊर्जा खो देते हैं और थकान का अनुभव करते हैं, खासकर बाद में दिन में. कारण हमेशा ज्ञात नहीं होता है.
  4. दर्द (Pain) :- पार्किंसंस रोग से पीड़ित कुछ लोग अपने शरीर के विशिष्ट क्षेत्रों में या पूरे शरीर में दर्द का अनुभव करते हैं.
  5. यौन रोग (Sexual dysfunction) :- पार्किंसंस रोग वाले कुछ लोग यौन इच्छा या प्रदर्शन में कमी देखते हैं.

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डायबिटीज पेशेंट्स में पार्किंसन का खतरा कैसे कम करें?
कई स्टडीज से यह साबित हो चुका है कि अगर आपको डायबिटीज है तो आपको पार्किंसन रोग (Parkinson Disease) होने की संभावना अधिक होती है क्योंकि हाय ब्लड शुगर (High blood sugar) का प्रभाव दिमाग पर भी पड़ता है. ऐसे में डायबिटीज का जोखिम कम करने के लिए आपको कुछ चीजों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है, जैसे:

  1. अपने ब्लड ग्लूकोज लेवल (Blood glucose level), ब्लड प्रेशर (Blood Pressure) और कोलेस्ट्रॉल लेवल (Cholesterol level) को मॉनिटर करते रहें. इन्हें मैनेज करने के लिए अपने डॉक्टर की सलाह भी लें.
  2. डायबिटीज की स्थिति में केवल हेल्दी फूड ही सेवन करें जैसे फल सब्जियां, साबुत अनाज आदि. इसके बारे में आप डॉक्टर या किसी अच्छे डायटीशियन की सलाह भी ले सकते हैं.
  3. अपने वजन को संतुलित बनाए रखें. अगर आपका वजन अधिक है तो उसे कम करने की कोशिश करें. 
  4. जितना अधिक हो सके स्मोकिंग और एल्कोहॉल के सेवन से बचें.
  5. दिन में कुछ समय व्यायाम के लिए निकालें. रोजाना कम से कम तीस मिनट्स तक एक्सरसाइज करना बेहद आवश्यक है. 
  6. तनाव से बचें क्योंकि तनाव ब्लड शुगर लेवल (Blood sugar level) को बढ़ाने का एक बड़ा रिस्क फैक्टर है. तनाव को मैनेज करने के लिए मेडिटेशन और योग आपके लिए फायदेमंद साबित हो सकते हैं या आप डॉक्टर से भी इस बारे में जान सकते हैं.
  7. नियमित रूप से अपनी जांच कराएं, डॉक्टर द्वारा दी दवाईयों का समय पर सेवन करें और उनकी इंस्ट्रक्शंस का पूरी तरह से पालन करें.

(Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है। अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें।) 

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 ब्लड शुगर से दिमाग और शरीर का बिगड़ रहा संतुलन, डायबिटीज वाले रहें सतर्क
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ब्लड शुगर से दिमाग और शरीर का बिगड़ जाएगा संतुलन,बढ़ रहा है डायबिटीज पेशेंट्स में पार्किंसन रोग का खतरा