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Book Review: भौगोलिक और सामाजिक परिवेश का रोचक वृतांत है 'झारखंड से लद्दाख'

Travelogue: रश्मि शर्मा स्वभावतः कवि हैं. यह कहते हुए ध्यान है कि उनकी कहानियां भी चर्चा में रही हैं, लेकिन जब उनकी कहानियों से आप गुजरेंगे तो उनकी शैली, उनकी वर्णनात्मकता, उनकी भाषा में आपको कवित्त के गुण दिखेंगे. यही बात उनके इस पांचवीं किताब 'झारखंड से लद्दाख' के बारे में भी कही जा सकती है.

Book Review: स्त्री के सपने, संघर्ष और सवालों की परतें खोलता है कविता संग्रह 'पैबंद की हँसी'

Paiband Ki Hansi: 'बाग़ की होली' और 'कचनारी इश्क़' जैसी कविताएं स्त्री-मन की परतों से निकली हैं. 'कचनारी इश्क़' में प्रेम की अभिव्यक्ति बिल्कुल आम फहम शब्दों में है, बोलचाल वाली शैली में है. इस भाषा शैली की वजह से कविता में जो अल्हड़पन और बेलौसपन आया है, वह पाठकों को लुभाता है.

पीड़ा से उबरकर लिखी गई कविता होती है शार्प - बोलीं पल्लवी त्रिवेदी - आ रही मेरी चौथी किताब

Writing Process: साहित्यकार पल्लवी त्रिवेदी बोलीं जब आप पीड़ा में होते हैं और लिखते जाते हैं तो वह सिर्फ भाव भर होता है, उसमें जो कवित्त भाव होना चाहिए वह छुप जाता है. मैं पीड़ा के वक्त लिखी बात पर दोबारा तब काम करती हूं जब उससे उबर जाती हूं. मेरा निजी अनुभव रहा है कि तब वह शार्प कविता बनती है.

दिल्ली में तीन दिवसीय हंस साहित्योत्सव 2023 का आयोजन 27 अक्टूबर से, एंट्री मुफ्त, जानें लोकेशन

Hans Sahityotsav: हंस साहित्योत्सव 2023 का उद्घाटन 27 अक्टूबर को सुबह 10:30 बजे होना है. तीन दिनी यह आयोजन दिल्ली स्थित इंडिया हैबिटैट सेंटर के एमपी थिएटर में होगा. देशभर के प्रमुख लेखक, आलोचक, रंगमंच कलाकार, निर्देशक और सिनेमा से जुड़े लोग शिरकत करेंगे.

देह विकलांग हो तो जरूरी नहीं कि सोच भी हो विकलांग, समझाती हैं कथाकार कंचन सिंह चौहान

Straightforward: कथाकार कंचन सिंह चौहान मानती हैं कि शारीरिक कमी को, विकलांगता को दिव्यांग कहने और लिखने का सुझाव अटपटा है. बल्कि अटपटा ही नहीं, उपहास उड़ाने जैसा है. देह की किसी कमी को सहज रूप से देखे जाने की जरूरत है. न उसे हेय दृष्टि से देखे जाने की जरूरत है और न ही सहानुभूति जताने वाले भाव से.

स्त्री के अंतर्मन को समझने की नई दृष्टि देता है साझा कविता संग्रह 'प्रतिरोध का स्त्री-स्वर'

Book Review: कविताओं के साझा संग्रह प्रतिरोध का स्त्री-स्वर में यूपी से 7, एमपी, बिहार और झारखंड से 3-3, दिल्ली से 2 और राजस्थान व महाराष्ट्र से 1-1 कवियां शामिल की गई हैं. इन कविताओं में स्त्री का दर्द, उसका संघर्ष किसी प्रदेश विशेष से नहीं बंधा है, वह वाकई भारतीय स्त्रियों का प्रतिनिधित्व करता है.

प्रभात रंजन ने अनुवाद को बताया विशिष्ट कर्म, कहा- साहित्य रचकर जीविका नहीं चला सकते

अनुवाद सिर्फ इसलिए नहीं करना चाहिए कि इससे आप एक बड़े पाठक वर्ग तक पहुंच जाएंगे या इससे आपको आर्थिक लाभ होगा, बल्कि इसलिए भी करना चाहिए कि आप जब किसी भी दूसरी भाषा से अपनी भाषा में अनुवाद करते हैं तो लेखक की अपनी भाषा की सीमा का विस्तार होता है.

राज्यसभा सांसद महुआ माजी का तीसरा उपन्यास जल्द आएगा सामने, जानें इस बार किस मुद्दे पर चली है कलम

महुआ माजी कहती हैं कि लेखक के पास दो चुनौतियां होती हैं, एक तो यह कि वह किसी की कॉपी न करे और दूसरा कि वह खुद की भी कॉपी न करे. एक बात यह भी है कि किसी विषय को, किसी कहानी को पकने में वक्त लगता है. इस वजह से भी मेरे तीसरे उपन्यास को आने में वक्त लग रहा है.