स्पेनिश कथाकार गैब्रियल गार्सिया मार्केज 6 मार्च 1927 को कोलंबिया में जन्मे थे. वामपंथी विचारधारा के मार्केज के उपन्यास 'One Hundred Years of Solitude' को वर्ष 1982 में साहित्य का Nobel Prize मिला था. मार्केज का पहला कहानी संग्रह 1955 में 'Leaf Storm, and Other Stories' के नाम से प्रकाशित हुआ था. हालांकि मार्केज की वामपंथी विचारधारा के कारण अमेरिका और कोलंबिया सरकारों ने देश में उनके प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया था. 17 अप्रैल 2014 को 87 साल की उम्र में मार्केज का निधन मैक्सिको नगर में हो गया.
'गांव में कुछ बहुत बुरा होने वाला है' मार्केज की लाजवाब कहानियों में एक है. इस कहानी में उन्होंने अफवाह फैलने के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक वजहों की अभिव्यक्ति बहुत सहज तरीके से की है. उन्होंने दिखाया है कि एक बुरे सपने की कहानी कैसे बुरा होने की आशंका में तब्दील होती है और पूरा गांव दहशत में जीने लगता है. तो DNA Lit में पढ़ें कहानी 'गांव में कुछ बहुत बुरा होने वाला है' की पहली किस्त.
गांव में कुछ बहुत बुरा होने वाला है (पहली किस्त)
एक बहुत छोटे से गांव की सोचिए जहां एक बूढ़ी औरत रहती है, जिसकी दो संतानें हैं, पहला सत्रह साल का और दूसरी चौदह की. वह उन्हें नाश्ता परोस रही है और उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ हैं. बच्चे उससे पूछते हैं कि उसे क्या हुआ तो वह बोलती है मुझे नहीं पता, लेकिन मैं इस पूर्वाभास के साथ जागी रही हूं कि इस गांव के साथ कुछ बुरा होने वाला है.
दोनों अपनी मां पर हंस देते हैं. कहावत है कि जो कुछ भी होता है, बुजुर्गों को उसका पूर्वाभास हो जाता है. लड़का पूल खेलने चला जाता है और अभी वह एक बेहद आसान गोले को जीतने ही वाला होता है कि दूसरा खिलाड़ी बोल पड़ता है 'मैं एक पैसे की शर्त लगाता हूं कि तुम इसे नहीं जीत पाओगे'.
आसपास का हर कोई हंस देता है. लड़का भी हंसता है. वह गोला खेलता है और जीत नहीं पाता. शर्त का एक पैसा चुकाता है और सब उससे पूछते हैं कि क्या हुआ, कितना तो आसान था उसे जीतना. वह बोलता है- बेशक, पर मुझे एक बात की फिक्र थी, जो आज सुबह मेरी मां ने यह कहते हुए बताया कि इस गांव के साथ कुछ बहुत बुरा होने वाला है.
सब लोग उस पर हंस देते हैं और उसका पैसा जीतने वाला शख्स अपने घर लौट आता है, जहां वह अपनी मां, पोती या फिर किसी रिश्तेदार के साथ होता है. अपने पैसे के साथ खुशी-खुशी कहता है 'मैंने ये पैसे दामासो से बेहद आसानी से जीत लिया, क्योंकि वह मूर्ख है.'
(जारी)
'गांव में कुछ बहुत बुरा होने वाला है' की दूसरी किस्त
'गांव में कुछ बहुत बुरा होने वाला है' की तीसरी किस्त
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