रूसी लेखक लियो टॉल्स्टॉय को यथार्थवादी कथा साहित्य का विशेषज्ञ और दुनिया के महानतम उपन्यासकारों में से एक माना जाता है. लियो टॉल्स्टॉय के बारे में 19वीं सदी के ब्रिटिश कवि और आलोचक मैथ्यू अर्नोल्ड का कहना है कि टॉल्स्टॉय का लेखन महज कला नहीं, बल्कि वह जीवन का एक टुकड़ा है. जीवन की छोटी-छोटी चीजें चुन-बीन कर टॉल्स्टॉय उसे महागाथा का रूप दे सकने में कामयाब होते हैं.
बता दें कि टॉल्स्टॉय की छोटी कृतियों में 'द डेथ ऑफ इवान इलिच' (1886) को उपन्यास के सर्वोत्तम उदाहरण के तौर पर पेश किया जाता है. अपने अंतिम तीन दशक टॉल्स्टॉय ने नैतिक एवं धार्मिक शिक्षक के रूप में गुजारा. महात्मा गांधी भी टॉल्स्टॉय के विचारों और सिद्धांतों से खूब प्रभावित रहे. DNA Lit में पेश है लियो टॉल्स्टॉय की लघुकथा 'तकरार'.
तकरार
राह से गुजरते दो मुसाफिरों को एक किताब पड़ी दिखाई दी. किताब देखते ही दोनों इस बात पर तकरार करने लगे कि किताब कौन लेगा.
ऐन इसी वक्त एक और राहगीर वहां आ पहुंचा. उसने दोनों को इस हालत में देखकर कहा, ‘भाई, यह बताओ, तुम दोनों में पढ़ना कौन जानता है?’
‘पढ़ना तो किसी को नहीं आता.’ दोनों ने एक साथ जवाब दिया.
‘फिर तुम इस किताब के लिए तकरार क्यों कर रहे हो.... तुम्हारी लड़ाई तो ठीक उन गंजों जैसी है जो कंघी हथियाने के लिए पुरजोर कोशिश में लगे हैं... जबकि कंघी फिराने के लिए उनके सिर पर बाल एक भी नहीं है.’
(अनुवाद : सुकेश साहनी)
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पढ़ना दोनों में से किसी को आता नहीं, पर कर रहे थे 'तकरार', जानें माजरा