डीएनए हिंदी : अभी जिंदा है मां मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा, मैं घर से जब निकलता हूं दुआ भी साथ चलती है - यह शेर अजीम शायर मुनव्वर राना ने लिखा था, लेकिन इस बार जब वे नासाज तबीयत लेकर अस्पताल के लिए निकले तो साथ में दुआएं तो थीं, पर मां नहीं थी. किसी की न दुआ काम आई और न कोई दवा... और एक ही झपट्टे में अजल (मौत) ने आ दबोचा. इन्सान और इन्सानियत पर भरोसा रखने वाले इस शायर ने लिखा था 'दहलीज पे रख दी हैं किसी शख्स ने आंखें, रोशन कभी इतना तो दीया हो नहीं सकता'.
देश के महबूब शायर मुनव्वर राना नहीं रहे. उन्हें लखनऊ स्थित SPPGI में भर्ती कराया गया था. यहां वह आईसीयू वार्ड में भर्ती थे. रविवार देर रात साढ़े 11 बजे के आसपास उन्हें हार्ट अटैक आया और उन्होंने अंतिम सांस ली.
1952 में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में उनका जन्म हुआ था. विभाजन की उथल-पुथल के दौरान उनके अधिकांश करीबी रिश्तेदार, जिनमें उनकी चाची और दादी शामिल थीं पाकिस्तान में सीमा पार कर गए थे. लेकिन उनके पिता ने भारत के प्रति प्रेम के कारण यहां रहना पसंद किया. बाद में उनका परिवार कोलकाता चला गया, जहां युवा मुनव्वर ने अपनी शिक्षा पूरी की.
चर्चित रही मां पर गजलें
यह सही है कि मुनव्वर राना हिंदी और उर्दू दोनों में लिखा करते थे. उन्होंने हर मिजाज की गजलें लिखीं, लेकिन मां को लेकर लिखी गई उनकी गजलें सबसे ज्यादा चर्चित रहीं. आलम यह भी रहा कि उनकी पहचान घर-परिवार वाले मिजाज के महीन शायर की भी बनती रही. उनका यह शेर युवाओं को बार-बार कोट करते सुना जा सकता है - किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई, मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में मां आई.
मां को लेकर कुछ शेर
मां को लेकर मुनव्वर ने कई गजलें लिखी हैं. इनमें से ज्यादातर युवाओं की जुबान पर छाए रहे हैं. उनके कुछ चर्चित शेर ये भी रहे हैं.
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
मां बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है
मेरी ख्वाहिश है कि मैं फिर से फरिश्ता हो जाऊं
मां से इस तरह लिपट जाऊं कि बच्चा हो जाऊं
विवादों का साथ
हालांकि पिछले वर्षों में मुनव्वर राना का नाता विवादों से ज्यादा जुड़ता रहा था. मार्च 2022 में चुनाव से पहले मुनव्वर राना ने कहा था, “मैं पहले ही कह चुका हूं कि अगर योगी आएगा तो मैं पलायन कर दूंगा। इस बात को स्पष्ट तौर पर नोट कर लिया जाए।” अब बीमारी के बाद जब उन्हें लखनऊ स्थित ‘संजय गाँधी पोस्टग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (SGPGIMS)’ में भर्ती कराया गया था तो यह बात खूब उठी थी कि जिस यूपी को छोड़कर वे जाने की बात कर रहे थे, उसी यूपी के सरकारी अस्पताल में उनका इलाज कराया गया. बता दें कि मुनव्वर राना किडनी की बीमारी से जूझ रहे थे. हर हफ्ते 3 बार उनकी डायलिसिस होती थी. अभी हाल में चेकअप के दौरान उनके फेफड़ों में पानी की बहुलता पाई गई थी और उन्हें निमोनिया भी हो गया था. इस कारण उन्हें सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी.
निधन पर शोक
मुनव्वर को उनकी किताब 'शहदाबा' के लिए 2014 का उर्दू साहित्य अकादेमी पुरस्कार मिला था, लेकिन केंद्र सरकार के खिलाफ अवॉर्ड वापसी मुहीम में उन्होंने अपना यह पुरस्कार लौटा दिया था. मुनव्वर राना के निधन पर लब्धप्रतिष्ठ कई साहित्यकारों ने शोक जताया. उन्होंने कहा कि 71 वर्ष की उम्र कोई ऐसी नहीं होती कि आदमी चला जाए. मुनव्वर अपनी बेबाक कहन और मासूम गजलों के लिए हमेशा याद किए जाएंगे.
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'अभी जिंदा है मां मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा' कहने वाला शायर हो गया मौन