अब तक आपने महाभारत काल के विचित्र नेवले की अजीब हरकत के बारे में पढ़ा कि वह भंडार से लौटकर बार-बार जमीन पर लोट रहा था. यह देखकर धर्मराज युधिष्ठिर ने उससे इसका कारण पूछा. तब नेवले ने एक भूमिका बनाते हुए कहानी सुनानी शुरू की. इस दूसरे अंक में आधे शरीर वाले नेवले से जानें उसके आधे शरीर के सोना हो जाने का रहस्य.
विचित्र नेवला (दूसरा किस्त)
‘बहुत साल पहले राज्य में भयानक अकाल पड़ा, लोग भूख और प्यास के मारे प्राण त्यागने लगे. चारों ओर त्राहि-त्राहि मची हुई थी. उस समय एक गांव में 4 सदस्यों का एक परिवार रहता था. परिवार का मुखिया, उसकी पत्नी, उसका पुत्र और पुत्रवधु. यह परिवार अत्यंत दीन-हीन था. अकाल के कारण वह परिवार आए दिन भूखा रहता था. एक बार मुखिया और उसके बेटे को कई दिनों तक कोई काम नहीं मिला.
घर में खाने को कुछ नहीं था. पूरा परिवार कई दिनों से भूखा था. परिवार के मुखिया से अपने परिवार को भूख से तड़पता नहीं देखा गया. वह भोजन की तलाश में घर से निकला. काफी प्रयत्न के बाद उसे आटे का थोड़ा-सा चोकर प्राप्त हो सका. वह उसे लेकर अपने घर आया. मुखिया की पत्नी ने उस चोकर की चार रोटियां बनाईं. परिवार के प्रत्येक सदस्य को एक-एक रोटी मिली. वह सब मिलकर रोटी खाने बैठे ही थे कि उन्हें घर के द्वार पर एक व्यक्ति दिखाई दिया. वह भूख के कारण बिलबिला रहा था. मुखिया आदरपूर्वक उसे घर में लाया.
उस व्यक्ति ने बताया कि वह कई दिनों से भूखा है. मुखिया उसकी बात सुन विचार में पड़ गया. उसकी आंखों के आगे अपने और परिवार की कई दिनों की भूख के करुण दृश्य उभर आए. वह स्वयं भूखा था. वह अंतर्द्वंद से घिर गया. लेकिन अंत में उसने स्वयं भूखा रहकर घर आए मेहमान को भोजन कराना अपना धर्म समझा. उसने अपने हिस्से की रोटी उस व्यक्ति को दे दी. वास्तव में वह व्यक्ति बहुत भूखा था. उसने तुरंत वह रोटी खा ली. लेकिन वह फिर गिड़गिड़ाने लगा- ‘आपने बहुत दया करके मुझे रोटी दी लेकिन इसे खाकर मेरी क्षुधा और बढ़ गई है. कृपया मुझे एक रोटी और दें.’
तब मुखिया की पत्नी, पुत्र और पुत्रवधु ने भी अपने हिस्से की रोटियां इस व्यक्ति को दे दीं. मेहमान चारों रोटियां खाकर तृप्त भाव से मुखिया के परिवार को आशीर्वाद देता हुआ चला गया. इधर भूख के कारण परिवार के मुखिया और अन्य सदस्यों की हालत बिगड़ने लगी. अंत में उन चारों ने एक-एक करके भूख से तड़पते हुए अपने प्राण त्याग दिए.
नेवले ने कुछ देर रुककर कहना शुरू किया, ‘उस समय मैं स्वयं भी भूख से अत्यंत व्याकुल हो रहा था और भोजन की तलाश में घूमता हुआ, उस घर में जा पहुंचा. वहां चारों प्राणी मृत पड़े हुए थे. भोजन ढूंढ़ता हुआ मैं उस घर के चूल्हे तक जा पहुंचा. वहां कुछ नहीं मिला, तो थकान के मारे मैं वहीं सो गया. कुछ देर बाद जब मेरी नींद खुली और मैं चलने को हुआ तो मैं यह देखकर आश्चर्य चकित रह गया कि मेरा आधा शरीर सोने का हो गया था. मैं समझ नहीं पा रहा था कि यह सब कैसे हो गया?’
मैं एक पहुंचे हुए ऋषि के पास पहुंचा और उन्हें सारा वृतांत सुनाकर यह जिज्ञासा प्रकट की कि मेरे शरीर का अर्द्ध भाग सोने का कैसे हो गया? ऋषि अपने ज्ञान के बल पर पूरी घटना जान गए थे. वह बोले, ‘जिस जगह चूल्हे के पास तुम लेटे हुए थे, उस स्थान पर चोकर का थोड़ा-सा अंश बिखरा हुआ था. यह वही चोकर था, जिससे मुखिया की स्त्री ने अपने परिवार के लिए चार रोटियां बनाई थीं. वह चमत्कारी चोकर तुम्हारे शरीर के जिस-जिस भाग पर लगा वह स्वर्णिम हो गया है.’ इस पर मैंने ऋषि से प्रश्न किया ‘महात्मन, कृपया मेरे शरीर के शेष भाग को भी सोने का बनाने हेतु कोई उपाय बताइए.’
(जारी)
'विचित्र नेवला' की पहली किस्त
'विचित्र नेवला' की तीसरी किस्त
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नेवले का आधा शरीर इस वजह से हो गया था सोने का, जानें महाभारत काल की यह रोचक कथा