13 अप्रैल 1919 का वह दिन था जो हर भारतीय को सदियों के लिए एक गहरा जख्म दे गया. आज भी उस नृशंस घटना को याद कर लोग सिहर उठते हैं. यह घटना भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ था. यह घटना अंग्रेजी राज का क्रूर और दमनकारी चेहरा सामने लेकर आई थी. कई इतिहासकारों का मानना है कि इस घटना के साथ ही अंग्रेजों के नैतिक पराजय की शुरुआत हुई थी. जानें जनरल डायर और उसकी क्रूरता की कहानी.
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जलियांवाला बाग हत्याकांड को अंजाम देने वाले जनरल डायर की क्रूरता की कई कहानियां इतिहास में दर्ज हैं. जनरल ओ डायर को साल 1913 में पंजाब के लाला हरकिशन लाल के पीपुल्स बैंक की बर्बादी के लिए भी दोषी माना जाता है. इसके चलते लाहौर के व्यापारियों और ख़ासतौर पर शहरी इलाके में रहने वाले लोगों का सब कुछ बर्बाद हो गया था. जनरल डायर बेहद क्रूर और विद्रोहों को कुचलने वाले अधिकारी थे. आयरलैंड मूल के इस अधिकारी को शिक्षितों, साहूकारों और व्यापारियों से भी सहानुभूति नहीं थी.
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डायर का जन्म भारत में ही हुआ था और उनके पिता शराब बनाने का काम करते थे. डायर को उर्दू और हिंदुस्तानी दोनों ही भाषाएं बहुत अच्छी तरह से आती थीं. डायर को उसके लोग तो बहुत अच्छी तरह जानते थे लेकिन उसके वरिष्ठ अधिकारियों में उसकी कोई बहुत अच्छी साख नहीं थी. डायर की गिनती उन अंग्रेज अधिकारियों में होती थी जिनके अंदर सहानुभूति के लिए कोई जगह नहीं थी. इतिहास में डायर का नाम अमृतसर के कसाई के तौर पर है.
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हंटर कमिशन के सामने डायर ने माना था कि उन्होंने लोगों पर मशीनगन का इस्तेमाल किया था. डायर ने यह भी स्वीकार किया था कि बाग के लिए एक संकरा सा रास्ता था और सैनिकों को आदेश दिया गया कि वो जिस ओर ज्यादा संख्या में लोगों को देखें उधर फायर करें. बाद में सरदार उधमसिंह ने लंदन जाकर डायर की हत्या की थी. यह भी एक अपवाद की तरह ही है कि जनरल डायर के कृत्य की उस दौर में कई अंग्रेज अधिकारियों और बौद्धिकों ने निंदा की थी.
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संयुक्त पंजाब (अब पाकिस्तान में शामिल हिस्से भी तब पंजाब में थे) में अंग्रेजों की सबसे ज्यादा कॉलोनियां थीं. यहां के किसानों, कामगारों, मजदूरों ने बड़े पैमाने पर अंग्रेजी हुकूमत का दमन भी देखा था. अंग्रेज पंजाब में बनाए रेलवे लाइन और सड़कों वगैरह का हवाला अपने विकास कार्यों के तौर पर देते थे. जलियांवाला बाग हत्याकांड ने पूरे देश में अंग्रेजी हुकूमत के लिए बगावत और विद्रोह का माहौल बनाया था. इसके बाद ही देश भर में स्वतंत्रता आंदोलन के लिए होने वाले संघर्ष तेज हुए थे.
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13 अप्रैल 1919 के दिन जलियांवाला बाग में हजारों लोग वैसाखी के दिन इकट्ठा हुए थे. ये लोग 2 राष्ट्रीय नेताओं सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी और उन्हें अमृतसर से निर्वासित किए जाने का विरोध कर रहे थे. इस नरसंहार में 1,000 लोगों से ज्यादा के मारे जाने और 1500 लोगों के घायल होने की बात कही जाती है. मृतकों में महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे.