डीएनए हिंदी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समान नागरिक संहिता (UCC) का जबसे जिक्र किया है, तब से देशभर में इस पर हंगामा छिड़ गया है. देश के कई आदिवासी संगठन इस आशंका में हैं कि अगर यह कानून लागू हुआ तो उनके रीति-रिवाजों पर भी इसका असर पड़ेगा. छत्तीसगढ़ में UCC पर आदिवासी संगठनों को ऐतराज है.
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल समान नागरिक संहिता के पक्षधर नहीं हैं. उन्होंने बीजेपी पर आरोप लगाते हुए कहा है कि यह पार्टी हमेशा हिंदू और मुसलमान के नजरिए से सोचती है. छत्तीसगढ़ में आदिवासी लोग भी रहते हैं. अगर यूसीसी लागू होता है तो उनकी मान्यताओं और उनके समाज को नियंत्रित करने वाले रूढ़िवादी नियमों का क्या होगा? उनकी परंपराओं का क्या होगा?
बीजेपी ने कांग्रेस की आशंकाओं पर ऐतराज जताते हुए कहा है कि यह पार्टी आदिवासियों को गुमराह कर रही है. पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह ने कांग्रेस पर आदिवासियों को गुमराह करने का आरोप लगाते हुए जवाब दिया.
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डॉ. रमन सिंह ने कहा, 'कांग्रेस इस तरह की टिप्पणियां कर आदिवासियों को गुमराह करने की कोशिश कर रही है. यूसीसी लागू होने से आदिवासी समुदाय की संस्कृति पर कोई असर नहीं पड़ेगा. यह सभी नागरिकों के लिए समानता तय करता है.'
कैसे हैं आदिवासियों के वक्तिगत कानून?
समान नागरिक संहिता को समझने के लिए जनजातीय समुदायों के रीति-रिवाजों को समझना होगा. आदिवासी अपने रीति-रिवाजों में फेरबदल नहीं चाह रहे हैं. उनके यहां तीन तरह से शादियां होती हैं. शादी से पहले लड़के का परिवार, लड़की के परिवार से तीन बार मिलता है, जिससे शादी की डील फाइनल हो सके. इन शादियों में दहेज की कोई व्यवस्था नहीं है.
दूल्हे का परिवार पूरी तरह से शादी का खर्च उठाता है. यह शादी पूरे गांव की निगरानी में होती है. आदिवासी समुदायों एक पैठू प्रथा होती है. इस प्रथा के तहत लड़की को लड़का पसंद आने पर बिना शादी किए लड़के के घर में वह रहने लगती है. बाद में सभी आदिवासी रीति-रिवाजों के साथ शादी को औपचारिक मान्यता दे दी जाती है.
आदिवासियों में विधवा विवाह, आम है. आमतौर पर बेटियों का अपने पिता की संपत्ति पर अधिकार नहीं होता है क्योंकि वे शादी के बाद दूसरे घर में चली जाती हैं. लेकिन अगर किसी पिता की केवल बेटियां हैं तो विरासत बेटियों के बीच समान रूप से विभाजित हो जाती है.
कुछ हद तक आदिवासी समुदाय, आदिवासी प्रथाओं को मानता है. यह हिंदू प्रथाओं से अलग है. आदिवासियों पर यूसीसी का प्रभाव न्यूनतम या नगण्य होगा. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44(1-2) में कहा गया है कि प्रथागत कानून पहले की तरह लागू रहेंगे.सीसी से मुस्लिम समुदाय पर असर पड़ने की संभावना है, लेकिन आदिवासियों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.
क्यों आदिवासी समुदाय जता रहा है ऐतराज?
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक गोंड समुदाय के कुछ लोगों ने इस कानून पर ऐतराज जताया है. यूसीसी को देश भर में लागू करने पर उनके रीति-रिवाजों और संस्कृति में संभावित बदलाव के बारे में गहरी चिंता जाहिर की है. यूसीसी पर चर्चा के लिए हाल ही में एक राज्य स्तरीय बैठक हुई थी और भविष्य में इसे लागू करने पर पूरे छत्तीसगढ़ में विरोध प्रदर्शन करने का निर्णय लिया गया था.
आदिवासियों का कहना है कि उनके कानून संवैधानिक रूप से संहिताबद्ध नहीं हैं और उन्हें डर है कि यूसीसी उनकी प्राचीन पहचान को कमजोर कर देगा. भारत में रहने वाले 750 आदिवासी समुदाय, अपनी सांस्कृतिक विविधता के लिए जाने जाते हैं. सवाल यह है कि एक कानून हर धर्म और संस्कृति के साथ कैसे न्याय कर सकता है.
सर्व आदिवासी समाज के प्रमुख आदिवासी नेता अरविंद नेताम ने मीडिया से कहा है कि आदिवासी समुदाय, भविष्य की रणनीति के लिए बैठक करने की तैयारी कर रहा है. 2011 की जनगणना के अनुसार, छत्तीसगढ़ की 32 प्रतिशत आबादी आदिवासी समुदाय से है, जो कुल 2.55 करोड़ में से 78 लाख लोग हैं. बिना उनका पक्ष लिए, इस कानून पर चर्चा गलत है.
समान नागरिक संहिता पर क्या कह रहे हैं कानून के जानकार?
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड विशाल अरुण मिश्र का कहना है कि समान नागरिक संहिता के लागू होने से पहले ही ऐसी आशंकाएं गलत हैं. वह लॉ कमीशन एक मसौदा तैयार करेगा, जिसमें बदलावों का जिक्र होगा. बिना उसके सामने आए, पढ़े, किसी भी तरह की आशंका रखना गलत है. एक देश, एक संविधान और एक विधान होना चाहिए. यह कानून अस्तित्व में ही नहीं है ऐसे में इससे आहत होकर पहले ही विरोध करना, सैद्धांतिक तौर पर गलत है.
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आदिवासी क्यों कर रहे हैं समान नागरिक संहिता का विरोध, किन बातों पर है ऐतराज?