डीएनए हिंदी: ग्लोब्लाइजेशन के कारण दुनिया भर में लोगो में अधिक से अधिक ब्रांडेड कपड़े पहनने और फैशन ट्रेंड्स ( Fashion Trends ) फॉलो करने की होड़ लगी हुई है. आप तुलना करके देखिए आज के समय में आपके पास अपने दादा-दादी से 5 गुना ज्यादा कपड़े हैं. लोगों की जिंदगी में ये बदलाव बाजार में बड़ी संख्या में नए ट्रैंड्स और तुलनात्मक रूप से सस्ते होते कपड़ों की वजह से आया है. आईए जानते हैं कि कैसे हम इन फैशन ट्रेंड को फॉलो करते-करते अपनी जिंदगी में ही जहर घोल रहे हैं.

कूड़ा बनता जा रहा है कपड़ा

दुनिया भर में फैशन इंडस्ट्री सालाना तकरीबन 80 बिलियन नए कपड़ों का प्रोडक्शन करती है. पिछले 20 साल में ये 400% तक बढ़ चुका है.  

आकड़ों के मुताबिक एक साल में 5.30 करोड़ टन धागे से कपड़े बनते हैं जिसका 70% सीधे कूड़े के ढेर में चला जाता है. वहीं औसतन पश्चिमी देशों में कपड़े को बेकार मानने से पहले सिर्फ 7 बार पहना जाता है. जिसके बाद वो इस्तेमाल के बाहर हो जाता है. एक रिसर्च के मुताबिक, कचरों के ढेर का 57% हिस्सा सिर्फ कपड़ों से भरा होता है. वहीं यहां एक परिवार हर साल औसतन 30 किलो कपड़े फेंक देता है. यूनिवर्सिटी ऑफ़ कोलोराडो की एक रिसर्च के मुताबिक केवल 15% कपड़ों को रिसाइकल या दान किया जाता है, और बाकी सारा सीधे लैंडफिल साईट में पहुंच जाता है या फिर उसे जला दिया जाता है. 

कितना जहर घोल रहे हैं Fashion Trends

क्या आप जानते हैं? अधिकांश देशों में जहां कपड़ो का उत्पादन किया जाता है वहां के कारखानों से निकलते जहरीले पानी को सीधे नदियों में फेंक दिया जाता है. जिससे नदी का पानी प्रदूषित हो जाता है. पानी में जहरीले पदार्थ जैसे सीसा, पारा और आर्सेनिक आदि होते हैं. ये जहरीला पानी नदियों के रास्ते आसानी से समुद्र में फ़ैल जाता है. जिसके बाद ये तेज़ी से जल जीवन और किनारे रहने वाले लाखों लोगों की ज़िन्दगी में जहर घोल देता है.

इसके अलावा हमारे 72% कपड़ों में सिंथेटिक फाइबर का उपयोग किया जाता है. पॉलिएस्टर जैसे सिंथेटिक फाइबर दरअसल प्लास्टिक फाइबर होते हैं. ये नॉन-बायोडिग्रेडेबल होते हैं. इन्हें विघटित होकर नष्ट होने में 200 साल तक का समय लग सकता है. पूरी दुनिया में शिपिंग और इंटरनेशनल एयर ट्रेवल से जितनी हवा प्रदूषित होती है उससे कहीं ज्यादा वायु प्रदूषण केवल टेक्सटाइल इंडस्ट्री से निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैस से होता है.

ग्रीन हाउस गैस ( Green House Gas ) उगल रहा है फैशन

सिर्फ यही नहीं हमारे अधिकांश कपड़ों में उपयोग किए जाने वाले सिंथेटिक फाइबर (पॉलिएस्टर, ऐक्रेलिक, नायलॉन, आदि), फ़ॉसिल फ्यूल से बने होते है,जिससे उत्पादन में प्राकृतिक फाइबर की तुलना में अधिक एनर्जी का इस्तेमाल होता है. वहीं इसके निर्माण और ट्रांसपोर्टेशन के दौरान उपयोग की जाने वाली बिजली की वजह से भी बहुत अधिक ग्रीनहाउस गैसों का उत्पादन होता है. साथ ही "सस्ते सिंथेटिक फाइबर भी N2O जैसी गैसों को बनाते हैं, जो CO2 की तुलना में 300 गुना ज़्यादा खतरनाक होती है.

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फैशन उद्योग आपका पानी सोख रहा है

हमारे सभी कपड़ों की रंगाई और अन्य प्रक्रिया के लिए भारी मात्रा में ताजे पानी का उपयोग किया जाता है. एक अनुमान के मुताबिक प्रति टन कपड़ा रंगने में करीब 200 टन ताजे पानी का इस्तेमाल होता है. यही नहीं कपास की खेती आमतौर पर गर्म और शुष्क इलाकों में की जाती है इस वजह से इसके उत्पादन के लिए भी खूब पानी की आवश्यकता होती है. सिर्फ 1 किलो कपास के उत्पादन के लिए लगभग 20,000 लीटर पानी की आवश्यकता होती है.  

एक Jeans पी जाती है आपका 3 साल का पानी

UN एनवायरनमेंट प्रोग्राम के मुताबिक, एक इंसान 3 साल में 3781 लीटर पानी पीता है. वहीं इतना ही पानी सिर्फ एक जींस बनाने में खर्च हो जाता है. पॉलिएस्टर और ऐक्रेलिक जैसे सिन्थेटिक फाइबर्स प्लास्टिक पॉलीमर्स से बनते हैं. सिन्थेटिक कपड़ों में सिर्फ ऐक्रेलिक को रीसाइकल किया जा सकता है. लेकिन ये प्रकिया जटिल होने के कारण ज्यादा प्रचलित नहीं है. कपड़ों को रंगाई के लिए भी एक साल में करीब 20,000 टन पानी का इस्तेमाल होता है. जिसके बाद ये कैमिकल रंगों वाला प्रदूषित पानी सीधे नदी-नालों में जाकर प्रदूषण फैलाता है.

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स्लो एंड सस्टेनेबल है नया Fashion Trend

कोविड 19 महामारी की वजह से पिछले कुछ समय दुनिया भर में लोगो का फैशन को ले कर नजरिया बदला है. अब दुनिया भर की फैशन इंडस्ट्री Slow and Sustainable Fashion Trend की तरफ रुख कर रही है. मार्केट में दर्जनों ऐसे Sustainable ब्रांड्स आ चुके हैं जो कपड़ों को बनाने के लिए जैविक यानि organic मटीरियल का इस्तेमाल कर रहे हैं लेकिन ये अभी काफी मंहगे हैं.

कपड़ों को रंगने के लिए भी अब आर्गेनिक डाई का इस्तेमाल हो रहा है. सिर्फ कपड़े ही नहीं बल्कि बैग्स, शूज, मेकअप और ज्वेलरी भी आर्गेनिक होती जा रही है. वहीं सेलेब्रिटीज़ स्लो फैशन ट्रेंड्स को वैश्विक स्तर पर प्रमोट भी कर रहे हैं. ताकि लोगो में RECYCLE का क्रेज बढ़े और एक कपड़े का कई बार इस्तेमाल हो सके.   

हाल ही में रिक्की केज (इंडियन म्यूजिक कंपोजर) ने अप्रैल 2022 में ग्रैमी अवार्ड्स में जो कपड़े पहने थे वही कपड़े उन्होंने मई 2022 में कांस फिल्म फेस्टिवल में भी पहने। इन्होंने एक हैश टैग #ReWear4Earth का इस्तेमाल करते हुए पोस्ट शेयर कर लिखा कि 'एक बार पहने जा चुके कपड़ों को दोबारा किसी इवेंट में पहनने में कोई शर्म की बात नहीं है.'

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Fashion industry causing all kinds of pollution know how clothes are increasing garbage load
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हर दिन बदलते Fashion Trends किस तरह बनते हैं प्रदूषण का कारण?
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Fashion & Pollution: हर दिन बदलते Fashion Trends किस तरह बनते हैं प्रदूषण का कारण?