इटली सुर्ख़ियों में है. कारण है एक ऐसा जश्न, जिसके पीछे का इतिहास काला है और जिसपर खून के धब्बे हैं. जी हां सही सुना आपने. दरअसल इटली की सरकार को फासीवादी तानाशाह मुसोलिनी के शासन में सेकंड वर्ल्ड वॉर में लड़ी गई एक बड़ी लड़ाई का जश्न मनाने के बाद तीखी आलोचनाओं से दो चार होना पड़ रहा है. इटली के रक्षा मंत्रालय ने अपनी एक सोशल मीडिया में इस बात का जिक्र किया है कि एल अलामीन की लड़ाई में सैनिकों ने 'हमारी स्वतंत्रता के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया है' पोस्ट ने तब उस युद्ध में हिस्सा लेने वाले फौजियों के संघर्ष को 'वीरतापूर्ण लेकिन दुखद बताया है.
प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी की दक्षिणपंथी ब्रदर्स ऑफ इटली पार्टी की पाओला चिएसा ने भी इस मामले पर फेसबुक पोस्ट किया और लिखा कि 'हमारे राष्ट्र का हृदय आज एल अलामीन में है'.
बताते चलें कि इटली के लिहाज से निर्णायक ये दूसरी लड़ाई अक्टूबर 1942 में मिस्र में हुई थी. इस लड़ाई के विषय में रोचक तथ्य ये भी है कि लगभग 190,000 सैनिकों के प्रयासों और मित्र राष्ट्रों की मदद से इस युद्ध को दो सप्ताह से भी कम समय में जीत लिया गया था.
बताया ये भी जाता है कि जर्मन नेतृत्व वाले धुरी राष्ट्रों की हार ने उत्तरी अफ्रीका में उनकी महत्वाकांक्षाओं के अंत की शुरुआत को चिह्नित किया था. साथ ही कहा ये भी जाता है कि इस लड़ाई में हज़ारों इतालवी लोग मारे और पकड़े गए थे.
चाहे वो इटली के रक्षा मंत्रालय की पोस्ट हो या फिर पाओला चिएसा का फेसबुक पोस्ट इन दोनों ही पोस्ट की इतालवी राजनेताओं, शिक्षाविदों और आम लोगों द्वारा व्यापक रूप से आलोचना की गई. कहा यही गया कि एक ऐसा युद्ध जिसमें हजारों की तादाद में लोगों ने अपनी जान से हाथ धोया आखिर उसे कैसे सरकार और उसके लोगों द्वारा सेलिब्रेट किया जा सकता है?
#ElAlamein #23ottobre 1942, un luogo e una data che raccontano di valore e sacrificio, un capitolo tanto eroico quanto tragico della nostra storia. Rendiamo onore ai coraggiosi militari italiani che combatterono tra le sabbie del Nord Africa. Con loro ricordiamo con deferenza… pic.twitter.com/qOC3vHNugn
— Ministero Difesa (@MinisteroDifesa) October 23, 2024
जैसा कि हम बता ही चुके हैं भले ही इन सोशल मीडिया पोस्ट को किये हुए ठीक ठाक वक़्त हो चुका है लेकिन आलोचनाओं का दौर अब भी जारी है. इसी क्रम में सिएना विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र के प्रोफेसर मटिया गुइडी का भी एक बयान खूब वायरल हुआ है.
अपने बयान में गुइडी ने सरकार की बखिया उधेड़ते हुए कहा है कि, आप अल अलामीन को 'हमारी स्वतंत्रता के लिए लड़ने' से कैसे जोड़ सकते हैं, यह मेरी समझ से परे है. मामले पर वामपंथी 5-स्टार मूवमेंट के राजनेताओं का स्पष्ट कहना है कि, हालांकि सैनिकों ने बहादुरी से लड़ाई लड़ी थी, लेकिन यह कहना 'अनुचित' है कि उन्होंने स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी थी.
मामले पर एक बयान और सोशल मीडिया पर तैर रहा है जिसमें कहा गया है कि, 'वे (इटली के) औपनिवेशिक और फासीवादी शासन के शिकार थे. इतिहास पर नजर डालें तो मिलता है कि दूसरे विश्व युद्ध के उस दौर में 'इटली ने युद्ध में नाज़ियों का साथ दिया और वह जापान के साथ धुरी राष्ट्रों का एक प्रमुख सदस्य था.
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मेलोनी की पार्टी की जड़ें इतालवी सामाजिक आंदोलन (MSI) से जुड़ी हैं, जिसका गठन 1946 में मुसोलिनी के कुख्यात ब्लैकशर्ट्स के प्रत्यक्ष उत्तराधिकारी के रूप में हुआ था.
खैर ये कोई पहली बार नहीं है जब मेलोनी अपनी या अपनी पार्टी के लोगों की गतिविधियों के कारण आलोचना का शिकार हुई हैं. पूर्व में भी ऐसे मौके आए हैं जब उन्हें अपनी पार्टी के कुछ सदस्यों द्वारा की गयी बयानबाजी के बचाव में आगे आना पड़ा है.
हालांकि मेलोनी ने मौके-बेमौके अपनी सफाई दी है लेकिन जो आलोचक हैं उनका यही मानना है कि वो हार्ड लाइनर हैं और उनका उद्देश्य यही रहता है कि वो सिर्फ वही बातें कहें जो उनके समर्थकों को पसंद आती हैं. बहरहाल, मामले को लेकर जिस तरह की राजनीति चल रही है कहना गलत नहीं है कि दूसरे विश्व युद्ध के नाम पर मनाया गया जश्न अब मेलोनी के गले की हड्डी बनता नजर आ रहा है.
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