द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान क्या-क्या हुआ? कितने लोग मरे? किसकी क्या भूमिका थी? शांति कैसे स्थापित हुई? हिटलर और नाजियों का क्या हुआ सवाल तमाम हैं लेकिन साल 2025 के पहले ही महीने वर्ल्ड वॉर 2 ने जिस कारण सुर्खियां बटोरी, वो हैरान करने वाला है. दरअसल दूसरे विश्व युद्ध के दौरान नीदरलैंड में नाज़ियों के साथ सहयोग करने के संदेह में लगभग 425,000 लोगों के नाम पहली बार जारी किए गए हैं।
वॉर इन कोर्ट नामक एक डच परियोजना ने एक कानून की समाप्ति के बाद सूची जारी की, जिसने संग्रह तक सार्वजनिक पहुंच को प्रतिबंधित कर दिया था. अपने आप में बेहद खास इस लिस्ट को लेकर एक दिलचस्प तथ्य ये है कि इसमें 32 मिलियन पृष्ठ हैं और इसमें ज़्यादातर उन डच लोगों के नाम हैं, जिन्होंने नाज़ी कब्ज़ेदारों का सहयोग किया था और बाद में फिर इनकी जांच हुई थी.
बताते चलें कि नाज़ियों ने 1940 में आक्रमण किया और 1945 में मित्र देशों की मुक्ति तक ये नीदरलैंड में रहे. नीदरलैंड को इसका नुकसान क्या हुआ इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन पांच वर्षों में, होलोकॉस्ट में 100,000 से ज़्यादा डच यहूदी आबादी मौत के घाट उतारी गई थी.
ध्यान रहे कि रिसर्च ग्रुप ह्यूजेंस इंस्टीट्यूट ने इन नामों को ऑनलाइन उपलब्ध कराया है, जिसके बारे में विशेषज्ञों का मानना है कि यह इतिहासकारों के लिए 'महत्वपूर्ण संसाधन' उपलब्ध कराएगा.
बताया ये भी जाता है कि सूचीबद्ध लोगों में से केवल पांचवा हिस्सा ही अदालत में पेश हुआ और अधिकांश मामले राष्ट्रवादी समाजवादी आंदोलन के सदस्य होने जैसे कम गंभीर अपराधों से संबंधित थे.
गौरतलब है कि यहां जिस लिस्ट की बात चल रही हैं उसमें छपे अधिकांश लोग मर चुके हैं. जिसका अर्थ है कि यूरोपीय संघ का सामान्य डेटा सुरक्षा विनियमन लागू नहीं होता है. कहा जा रहा है कि सूची में शामिल लोगों के पीड़ितों और गवाहों के बारे में अधिक विस्तृत जानकारी देने वाली स्कैन की गई फाइलें, शुरू में उपलब्ध कराई जाने वाली थीं.
हालांकि, डच डेटा सुरक्षा प्राधिकरण की चेतावनी के बाद इसे स्थगित कर दिया गया. कहा ये भी जा रहा है कि इसके प्रकाशन के लिए कोई तिथि निर्धारित नहीं की गई है, लेकिन शोध में रुचि रखने वाले लोग - जिनमें वंशज, पत्रकार और इतिहासकार शामिल हैं - डच राष्ट्रीय अभिलेखागार में उनसे परामर्श करने का अनुरोध कर सकते हैं.
रॉयल होलोवे, यूनिवर्सिटी ऑफ़ लंदन में आधुनिक इतिहास के प्रोफेसर डैन स्टोन ने इस मामले के मद्देनजर एक न्यूज़ चैनल से बात की है. उन्होंने कहा है कि अभिलेखागार ने 'एक असाधारण संसाधन प्रदान किया है, और यह युद्ध और सहयोग के स्तरों के बारे में डच बहस के संदर्भ में बहुत समयोचित है'.
उन्होंने ये भी कहा कि, 'यह तथ्य कि अपेक्षाकृत कम लोगों को कैद किया गया था, संभवतः हमें युद्ध के बाद के डच समाज के बारे में उतना ही बताता है जितना कि युद्धकालीन तथ्यों के बारे में.
बहरहाल इन नामों को एक बड़ी डिस्कवरी इसलिए भी माना जा रहा क्योंकि इसके सामने आने के बाद कई ऐसी बातें सामने आएंगी जो दूसरे विश्व युद्ध के लिहाज से बेहद अहम होने वाली हैं.
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