हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी सी जो पी ली है,

डाका तो नहीं मारा चोरी तो नहीं की है. 

ना-तजरबा-कारी से वाइ'ज़ की ये हैं बातें,

इस रंग को क्या जाने पूछो तो कभी पी है. 

गजल की ये लाइनें मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी की हैं. और जैसा दिख रहा है, पंक्तियों के जरिये पीने पिलाने की बात हुई है. मुद्दा जब 'पीना' या 'पिलाना' हो, तो जैसा हिसाब किताब है, लोगों का ध्यान खुद-ब-खुद 'शराब' पर चला जाता है. मगर सिर्फ शराब ही 'पी' जाती तो क्या बात थी. शराब के अलावा भी इंसान बहुत कुछ पीता है. मगर चर्चा नहीं होती. ऐसे में 'जूस' की एक बोतल अगर बवाल की वजह बन जाए तो?  कहा यही जाएगा कि वो दौर ही क्या जो बदले नहीं.

मैटर जूस है तो उससे पहले यह समझ लीजिये कि रमजान का मुक़द्दस महीना है. दुनिया भर में मुसलमान इबादत कर रहे हैं. नमाज पढ़ रहे हैं. रोज़े रख रहे हैं. ऐसे में कोई मुसलमान अगर कुछ खा पी ले तो उसे अपनी ही क़ौम से अतरंगी बातें सुननी पड़ती हैं.  इंसान अगर सेलिब्रिटी हो तो नौबत सोने पर सुहागा वाली होती है.  और फिर इंसान की फजीहत कुछ वैसी ही होती है, जो मौजूदा वक़्त में इंडियन पेसर मोहम्मद शमी की हो रही है. 

दुबई में खेले गए इंडिया बनाम ऑस्ट्रेलिया सेमीफइनल मैच के दौरान मोहम्मद शमी मैदान पर एनर्जी ड्रिंक पीते नजर आए. शमी मुसलमान हैं और महीना रमजान का है.  ऐसे में उनका सरेआम जूस पीना लोगों को अखर गया.  फिर वही हुआ, जिसके लिए अक्सर ही सोशल मीडिया  तमाम आलोचनाओं का शिकार होता है.  

शमी की फोटो को वायरल किया जा रहा है. क्या फेसबुक और एक्स, क्या इंस्टाग्राम. रमजान के पाक महीने में जूस पीने के चलते हर जगह शमी को भर -भरकर गालियां दी जा रही हैं और तमाम भद्दी बातें कहते हुए उन्हें इस्लाम से ख़ारिज किया जा रहा है.

मामला किस हद तक बिगड़ है? और कैसे कट्टरपंथियों ने शमी को आड़े हाथों लिया है? इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बरेली के मौलानाओं ने इसे 'आन, बान, शान' का मुद्दा मान लिया है. ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने बयान जारी करके कहा कि इस्लाम ने रोजे को फर्ज करार दिया है.

मौलाना ने कहा है कि, अगर कोई शख्स जानबूझकर रोजा नही रखता है तो वह निहायती गुनेहगार है. मोहम्मद शमी ने रोजा नहीं रखा जबकि रोजा रखना उनका वाजिब फर्ज है. रोजा ना रखकर शमी ने बहुत बड़ा गुनाह किया है, शरीयत की नजर में वो मुजरिम हैं. 

मौलाना शहाबुद्दीन रजवी के मुताबिक, मोहम्मद शमी को हरगिज ऐसा नहीं करना चाहिए. मैं उनको हिदायत और नसीहत देता हूं कि इस्लाम के जो नियम हैं उनपर वो अमल करें.क्रिकेट, खेलकूद भी करें, सारे काम अंजाम दें, मगर अल्लाह ने जो जिम्मेदारी बंदे को दी है, उनको भी निभाएं. शमी को ये सब समझना चाहिए. शमी अपने गुनाहों के लिए अल्लाह से माफी मांगें.  

वाक़ई ये बड़ा अजीब है कि चाहे वो मौलाना शहाबुद्दीन रजवी हों या फिर वो लोग जो रोज़ा न रखने के चलते शमी को गालियों से नवाज़ रहे हैं, किस हक़ से शमी को गुनहगार बता रहे हैं? उन्हें इस्लाम से ख़ारिज कर रहे हैं?

वो लोग जो शमी को अपने सवालों की जद में जकड़ रहे हैं. हम उनसे इतना जरूर पूछेंगे कि क्या वाक़ई उन्हें दीन की समझ है? क्या उन्हें पता है कि असल इस्लाम क्या है? क्या वो इस बात को जानते हैं कि रोजे के अहकाम(नियम) क्या हैं? क्या उन्हें इल्म भी है कि उनकी शमी के प्रति ये कुंठा दुनिया के सामने इस्लाम, मुसलमानों की क्या तस्वीर बना रही है?

इस बात में कोई शक नहीं है कि हम जिस दौर में रह रहे हैं उसे सोशल मीडिया का 'कमोड काल' कहना कहीं से भी गलत नहीं है. ऐसे में जिस तरह शमी की आलोचना में छाती पीटते ये लोग अपना दीन, अपनी इबादत, अपने आमाल को छोड़ शमी के प्रति फिक्रमंद नजर आ रहे हैं वो ये बताने के लिए काफी है कि ये लोग किस दर्जे के खलिहर हैं.  

विषय बहुत सीधा है. चाहे वो धर्म हो या फिर इबादत ये बहुत ही व्यक्तिगत विषय है और इसे किसी के द्वारा किसी पर थोपा नहीं जा सकता. वो लोग जो शमी की आलोचना में ताने मार मारकर बेहाल हुए जा रहे हैं, उन्हें समझना होगा कि शमी अपने लिए नहीं बल्कि देश के लिए खेल रहे हैं और 'सफर' (यात्रा पर) में हैं.

आलोचक शायद इस बात को भूल गए हों, तो हम उन्हें याद दिला दें कि वतन से मुहब्बत ईमान की निशानी है. ऐसे में जब बात शमी की हो रही है तो वो अपने मुल्क का प्रतिनिधित्व करने के लिए विदेशी धरती पर हैं और एक किस्म की इबादत ही कर रहे हैं. इसलिए आज जो भी आलोचना हो रही है वो व्यर्थ और पूरी तरह से समय की बर्बादी है.   

बाकी अकबर इलाहाबादी तो पहले ही इस बात को कह कर जा चुके हैं कि 

हर ज़र्रा चमकता है अनवार-ए-इलाही से,

हर सांस ये कहती है हम हैं तो ख़ुदा भी है. 

सूरज में लगे धब्बा फ़ितरत के करिश्मे हैं,

बुत हम को कहें काफ़िर अल्लाह की मर्ज़ी है. 

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Indian Pacer Mohammed Shami Drinking Energy Drink during Ind vs Aus champions trophy match in dubai during Ramadan criticised by trolls Bareilly maulana
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'मय' होती तो अलग था मैटर, शमी ने रमजान में 'जूस' पीकर गुनाह नहीं 'इबादत' की है!
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रमजान में ग्राउंड पर जूस पीने के कारण शमी आलोचकों के निशाने पर आ गए हैं
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'मय' होती तो अलग था मैटर, शमी ने रमजान में 'जूस' पीकर गुनाह नहीं 'इबादत' की है!

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