Heat Wave Latest News: देश में गर्मी इस बार नए रिकॉर्ड बना रही है. राजस्थान के कई इलाकों में पारा 50 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच चुका है. दिल्ली में भी तापमान 49 डिग्री से ज्यादा दर्ज किया गया है. इसके बावजूद भीषण गर्मी से अभी राहत मिलने के आसार नहीं हैं. कई इलाकों में भीषण गर्मी के साथ ही आर्द्रता (Humidity) ने इसे और ज्यादा असहनीय बना दिया है. लोगों के लिए घर से बाहर कदम रखना भी भारी हो रहा है. भीषण गर्मी और आर्द्रता के इस गठजोड़ के बीच मौसम विज्ञानी वेट बल्ब तापमान (Wet Bulb Temperature) प्रभाव की बात करने लगे हैं, जिसके चलते गर्मी और ज्यादा भयानक लग रही है. आइए आपको बताते हैं ये वेट बल्ब तापमान क्या होता है?
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पानी के वाष्पीकरण से है वेट बल्ब तापमान का जुड़ाव
वेट बल्ब तापमान ऐसी meteorological term है, जिसका जुड़ाव पानी के वाष्पीकरण से है. यह वो न्यूनतम तापमान होता है, जो स्थिर दबाव पर वायु में जल के वाष्पीकरण से मिलता है. इसे नापने के लिए एक थर्मोमीटर बल्ब को गीले कपड़े से ढककर पानी का वाष्पीकरण होने दिया जाता है. जितना पानी का वाष्पीकरण होता है, उतना ही थर्मोमीटर ठंडा होता जाता है, जो वेट बल्ब तापमान दिखाता है.
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किस काम आता है वेट बल्ब तापमान
वेट बल्ब तापमान वातावरण में आर्द्रता को मापने और यह समझने के काम आता है कि हवा कितना पानी खींच रही है. वेट बल्ब तापमान प्रभाव जितना ज्यादा होगा, उतना ही आपको गर्मी और ज्यादा परेशान करेगी. साथ ही इससे कृषि व मौसम के पैटर्न भी प्रभावित होते हैं. हवा में जितना ज्यादा आर्द्रता होगी, उतना ही आपके शरीर से पानी का वाष्पीकरण कम होगा और डिहाइड्रेशन जैसी समस्या होने की संभावना कम हो जाएगी.
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कितना वेट बल्ब तापमान है सुरक्षित
वातावरण में आर्द्रता के लिहाज से 35 डिग्री सेल्सियस तक का वेट बल्ब तापमान इंसानों के लिए सुरक्षित माना जाता है. साल 2010 की एक स्टडी के मुताबिक, 35 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा वेट बल्ब तापमान होने पर हमारा शरीर खुद को पसीने के जरिये ठंडा नहीं कर पाता है, जो शरीर में एक स्थिर कोर तापमान बनाए रखने के लिए बेहद जरूरी प्रक्रिया है. हालांकि हाल ही में Penn State University के रिसर्चर्स ने एक प्रयोग के जरिये इस वेट बल्ब तापमान को गलत साबित किया है.
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इस प्रयोग में रिसर्चर्स ने 'क्रिटिकल एन्वायरमेंटर लिमिट' की खोज की है, जिस पॉइंट पर किसी इंसान का कोर टेंपरेचर असामान्य तरीके से बढ़ना शुरू हो जाता है. इस लिमिट से नीचे शरीर लंबे समय तक स्थिर कोर टेंपरेचर बनाकर रख सकता है, लेकिन इस लिमिट को पार करते ही कोर टेंपरेचर असामान्य गति से बढ़ता है और हीट से जुड़ी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. इस रिसर्च के हिसाब से वातावरण में 50% आर्द्रता होने पर वेट बल्ब तापमान की सुरक्षित सीमा 35 के बजाय 31 डिग्री सेल्सियस मानी गई है. 60% आर्द्रता पर यह सीमा 38 डिग्री सेल्सियस तय की गई है.
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कैसे काम करता है गर्मी में शरीर का कूलिंग सिस्टम
- जब हमारा शरीर ओवरहीट होता है तो दिल पहले से ज्यादा काम करने लगता है.
- दिल ज्यादा तेजी से धड़कर अधिक से अधिक बल्ड को स्किन तक पहुंचाने की कोशिश करता है.
- बल्ड के स्किन तक पहुंचने से वहां से हीट रिलीज होने लगती है, जिससे कोर टेंपरेचर स्थिर होने लगता है.
- इस दौरान स्किन से पसीना निकलने लगता है, जिससे शरीर में पानी की कमी होने लगती है.
- यदि यह स्थिति ज्यादा देर तक बनी रहे तो दिल के जरूरत से ज्यादा काम करने से हीट स्ट्रोक की स्थिति बन जाती है.
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क्या होता है Wet Bulb Temperature, जिसके कारण Heat Wave और ज्यादा भयानक हो जाती है