विद्रोही नेता अबू मोहम्मद अल जोलानी, जिसके समूह द्वारा सीरिया में दशकों पुरानी तानाशाही को उखाड़ फेंका गया है, ने अपनी रणनीति और उसके क्रियान्वयन से पूरी दुनिया को आश्चर्य में डाल दिया है. सीरिया में बशर अल असद के तख्तापलट के बाद चाहे वो वेस्ट का मीडिया हो. या फिर माइक्रो ब्लॉगिंग वेबसाइट एक्स. वर्तमान में हर जगह जोलानी के नाम का डंका बज रहा है. यूं तो जोलानी के विषय में कहने बताने को तमाम बातें हैं. लेकिन जो चीज सीरिया में हुए ताजे घटनाक्रम के बाद सबसे ज्यादा सुर्खियों में रही. वो है उसकी और उसके संगठन की वो दूरी जो उन्होंने कुख्यात आतंकी संगठन अल कायदा से बनाई.
ध्यान रहे जोलानी एक ज़माने में अल कायदा का सदस्य टघा जो बाद में इस संगठन से अलग हुआ और आज अपने को उदारवादी कहता है. अमेरिका द्वारा आतंकवादी करार दिए जाने के बाद, जिस पर अभी भी 10 मिलियन डॉलर का इनाम है, हयात तहरीर अल शाम (HTS) के नेता जोलानी का कहना है कि उन्होंने एक कट्टरपंथी जिहादी चरमपंथी के रूप में अपने अतीत को त्याग दिया है और अब बहुलवाद और सहिष्णुता को अपना रहा है.
माना जा रहा है कि अब सीरिया ( एक विविध देश जिसमें विभिन्न धार्मिक अल्पसंख्यक हैं) के भविष्य के शासन में एक प्रमुख भूमिका निभाने के लिए तैयार अल जोलानी के स्पष्ट परिवर्तन की परीक्षा होगी.
शुरुआती ज़िन्दगी फिर जिहाद की तरफ झुकाव
बताते चलें कि अल जोलानी का असली नाम अहमद अल शारा है. जिहाद अपनाने से पहले वह इसी नाम से जाना जाता था और अब वह खुद को इसी नाम से पुकार रहा है बीते दिन दमिश्क में बोलते हुए उसने इसी नाम का इस्तेमाल किया.
अब ज़िंदगी के 42वें बसंत का आनंद ले रहे अल जोलानी का जन्म 1982 में सीरिया में इजरायल के कब्जे वाले गोलान हाइट्स से विस्थापित एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था. कथित तौर पर उनके राजनीतिक विचार 2000 के फिलिस्तीनी इंतिफादा और 2001 के 11 सितंबर के हमलों से प्रभावित हुए थे.
जब अमेरिका ने 2003 में इराक पर हमला किया, तो अल जोलानी उन कई सीरियाई लोगों में से एक था, जो अमेरिकी सेना से लड़ने के लिए इराक में घुस गए थे और वहां उन्होंने अल कायदा के साथ संबंध स्थापित किए थे.
जोलानी को इराक में अमेरिकी सेना द्वारा हिरासत में लिया गया. जहां उसे कुख्यात अबू ग़रीब जेल में रखा गया. ध्यान रहे कि 2000 के दशक की शुरुआत में, अबू बकर अल बगदादी के नेतृत्व में चरमपंथी इस्लामिक स्टेट ऑफ़ इराक- अल कायदा के अवशेषों से उभरा और इसने जोलानी का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया.
सीरिया में विद्रोह
2011 में, सीरिया में एक लोकप्रिय विद्रोह ने शासन बलों द्वारा क्रूर दमन को जन्म दिया - यह एक ऐसा संघर्ष था जो एक दशक से अधिक समय में गृह युद्ध में परिवर्तत हो गया.
अल जोलानी को अल बगदादी द्वारा अल कायदा की एक शाखा नुसरा फ्रंट स्थापित करने के लिए निर्देशित किया गया था. नए समूह को अमेरिका द्वारा एक आतंकवादी संगठन का लेबल दिया गया था. बाद में इलाके में जोलानी का उसका प्रभाव बढ़ता गया और उसने अल बगदादी के आदेशों की अवहेलना करते हुए अपने समूह को भंग कर दिया और इसका इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया में विलय कर दिया.
2014 में अपने पहले साक्षात्कार में, उसने अपना चेहरा ढका हुआ रखा और एक रिपोर्टर से कहा कि उसका लक्ष्य सीरिया को इस्लामी कानून के तहत शासित देखना था. इंटरव्यू में जोलानी ने इस बात को भी और स्पष्ट किया कि सीरिया में शिया, ड्रूज़ और ईसाई अल्पसंख्यकों के लिए कोई जगह नहीं है.
2016 में जोलानी ने पहली बार अपना चेहरा जनता के सामने प्रकट किया और दो बातें घोषित कीं. उसने बताया कि वह अपने समूह का नाम बदलकर जबात फ़तेह अल-शाम कर रहा है. साथ ही उसने लोगों को यह भी बताया कि वह अल कायदा से अपने संबंध तोड़ रहा है.
माना जाता है कि जोलानी खंडित आतंकवादी समूहों पर नियंत्रण स्थापित करने और इदलिब में सत्ता को मजबूत करने में सक्षम था. बाद में उसने फिर अपने संगठन का नाम बदला और हयात तहरीर अल-शाम (HTS) रखा जो आज तक बरक़रार है.
परिवर्तन वास्तविक है या फिर अपनी छवि बदलना चाहता है जोलानी
पहले के मुकाबले अगर अल जोलानी की आज की तस्वीर देखें तो वो काफी जुदा है, जो स्वतः इस बात की पुष्टि कर देती है कि जोलानी अपना इमेज मेकओवर कर रहा है. दिलचस्प ये कि इसी के तहत शायद उसने अपनी सैन्य पोशाक को शर्ट और पतलून में बदल दिया है. इसके अलावा, उसने कट्टरपंथी इस्लामी कानून के कुछ सिद्धांतों को त्याग दिया और धार्मिक सहिष्णुता और बहुलवाद का आह्वान करना शुरू कर दिया.
गौरतलब है कि जोलानी ने 2021 में एक अमेरिकी पत्रकार को अपना पहला साक्षात्कार दिया, जिसमें उन्होंने ब्लेज़र पहना था और अपने छोटे बालों को पीछे की ओर जेल किया था. उसने तर्क दिया था कि उनके समूह ने पश्चिम को कोई खतरा नहीं दिया और कहा कि इसके खिलाफ प्रतिबंध अन्यायपूर्ण थे.
सीरिया में अब आगे क्या होगा?
सीरिया पर दशकों तक शासन करने के बाद, असद शासन का पतन हो गया है, जिसका मुख्य कारण अल जोलानी के लड़ाके हैं. बीते दिनों विजयी विद्रोही स्तंभ के हिस्से के रूप में दमिश्क में प्रवेश करने के बाद, उन्होंने शहर की ऐतिहासिक उमय्यद मस्जिद में भाषण दिया और शासन की हार को 'इस्लामिक राष्ट्र की जीत' घोषित किया.
माना जा रहा है कि अल जोलानी की स्पष्ट रूप से सीरिया में एक प्रमुख अभिनेता बनने की योजना है, और वह जिस उदारवादी, लोकतंत्र समर्थक पटकथा पर काम कर रहा है, वह यह प्रदर्शित करने की उसकी प्रतिबद्धता का प्रमाण है कि वह अपनी विचारधारा बदल सकता है.
यानी असली परीक्षा यह होगी कि वह लोकतांत्रिक पद्धति के माध्यम से शासन करने के लिए कितना प्रतिबद्ध है, न कि केवल शब्दावली उधार लेने के लिए.
बहरहाल दुनिया भर की राजधानियों में नेता सीरिया में होने वाली घटनाओं पर बारीकी से नज़र रख रहे हैं, इस बात के संकेत तलाश रहे हैं कि किस तरह की सरकार उभरेगी और घरेलू और अस्थिर क्षेत्र में उसकी प्राथमिकताएं क्या होंगी.
अल जोलानी द्वारा बहुलवाद और सहिष्णुता की स्पष्ट नीति के पक्ष में अपने जिहादी अतीत को अस्वीकार करने का दावा वास्तविक है या नहीं, इसका भी फैसला वक़्त करेगा जिसपर सबकी नजर है.
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