डीएनए हिंदी: डेवलपमेंट और इंफ्रास्ट्रक्चर के ट्रैप में फंस कर भारी लोन और देनदारी के कारण चरमराई अर्थव्यवस्था की कहानी आज श्रीलंका की बन गई है पर ऐसे कई देश है जिनकी स्थिति आने वाला समय खतरनाक हो सकती है. कई मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो श्रीलंका की आज जो स्थिति है वो चीन सहित अन्य विदेशी बैंको से लिए गए बड़े लोन और उसके बढ़ते इंट्रेस्ट के कारण पैदा हुई है. वहीं श्रीलंका की बात करें तो एक बड़ा हिस्सा गैर-चीनी उधारदाताओं का भी है. इसके बावजूद इसमें कोई संदेह नहीं है कि पिछले एक दशक में श्रीलंका में चीन की आर्थिक भागीदारी बढ़ी है और इसका उपयोग इस क्षेत्र में अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को आगे बढ़ाने के लिए किया जा सकता है. मिसाल के तौर पर 2006 में श्रीलंका के टोंगा को बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण के लिए दिए गए लोन की वैल्यू टोंगा के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 44 प्रतिशत थी.
चीन दुनिया में सबसे ज्यादा कर्ज़ देने वाले देशों में शामिल है
वर्ल्ड बैंक के रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार निम्न और मध्य आय वर्ग के देशों को दिया जाने वाला चीन द्वारा दिया गया कर्ज़ दस सालो में तीन गुना तक पहुंच गया है. 2020 के आखिर तक यह रकम बढ़ कर 170 अरब डॉलर तक पहुँच चुकी थी. इतना ही नहीं चीन ने इससे भी ज्यादा कर्ज़ देने का वादा कर रखा है. अमेरिका की विलियम एंड मेरी यूनिवर्सिटी में मौजूद अंतररष्ट्रीय विकास संगठन ऐडडेटा की रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया में गरीब और मध्य आय वर्ग वाले 40 से अधिक ऐसे देश हैं जिनकी कुल जीडीपी में चीनी कर्ज़ की हिस्सेदारी बढ़ कर दस फीसदी से भी ज्यादा हो गई है. यह 'चीन के छिपे हुए कर्ज़' का नतीजा है. जिबुती, लाओस, जाम्बिया और किर्गिस्तान तो ऐसे देश हैं जिनकी कुल जीडीपी में चीन के कर्ज़ की हिस्सेदारी बढ़ कर कम-से-कम 20 फीसदी के बराबर हो गई है.
ऐडडेटा की रिसर्च के मुताबिक चीन ने विकासशील देशों को जो कर्ज दिया है उसकी आधी रकम के बारे वहां के आधिकारिक आंकड़ों में कोई ज़िक्र नहीं होता है. इस तरह के आंकड़ों को सरकारी बजट में नहीं दिखाया जाता है. यह सीधे सरकारी कंपनियों, बैंकों, सरकार के साझा उद्यमों और निजी संस्थानों के खाते में डाल दिया जाता है. इसका मतलब यह है कि चीन सरकार सीधे किसी सरकार को कर्ज़ ना देकर वहां की कंपनियों को कर्ज देकर अपने जाल में फंसाता है. वॉल स्ट्रीट जरनल की रिपोर्ट के मुताबिक, 2016 में पहली बार चीन के चार बड़े सरकारी बैंकों में से तीन ने देश में कॉरपोरेट लोन देने से ज़्यादा बाहरी मुल्कों को कर्ज़ दिए. चीन अपनी कंपनियों को दुनिया के उन देशों में बिज़नेस करने के लिए आगे कर रहा है जहां से एकतरफ़ा मुनाफ़ा कमाया जा सके. इस रिपोर्ट से यह साबित होता है कि चीन अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए कर्ज़ रणनीति को तेज़ी से आगे बढ़ा रहा है.
क्या है शी जिनपिंग का ड्रीम प्रोजेक्ट?
China’s Belt and Road Initiative (BRI) चीनी सरकार द्वारा एक ट्रिलियन-डॉलर की पहल है एशिया को अफ्रीका और यूरोप के साथ भूमि और समुद्री नेटवर्क के माध्यम से जोड़ने को लेकर लाया गया प्रोजेक्ट है जिसके तहत् बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के निर्माण के इच्छुक देशों को बड़े पैमाने पर ऋण उपलब्ध कराती है. BRI को 2013 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) द्वारा यूरोप, अफ्रीका और एशिया में बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए लॉन्च किया गया था. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो विकासशील देशों को चीनी बुनियादी ढांचे के ऋण की आलोचना की गई है क्योंकि इसे बीजिंग के रणनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए डिज़ाइन किया गया था. शी जिनपिंग की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत चीन का अधिकांश कर्ज सड़कों, रेलवे और बंदरगाहों जैसी बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं और खनन और ऊर्जा उद्योग से संबंधित है.
क्या है चीन के क़र्ज़ जाल?
कई रिसर्च रिपोर्ट्स का दावा यह है कि चीन ज़्यादातर उन देशों को पैसा उधार देता है जो आर्थिक रूप से कमज़ोर हैं और वे अपने क़र्ज़ को तय समय पर नहीं चुका पाते है.अगर कोई देश चीनी बैंक द्वारा दिए गए लोन नहीं चुका पता है तो उसे इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती है. उदाहरण के तौर पर श्रीलंका जिसने सालों पहले चीनी निवेश के साथ हंबनटोटा में एक विशाल बंदरगाह परियोजना शुरू की थी लेकिन चीन से लोन की लेनदारी करने वाली अरबों डॉलर की परियोजना विवादों में घिर गई और हालत ऐसे बने कि श्रीलंका बढ़ते कर्ज से परेशान हो गया. अंत में 2017 में श्रीलंका ने राज्य के स्वामित्व वाले चीन व्यापारियों को बंदरगाह में एक नियंत्रित 70% हिस्सेदारी 99 साल के लीज़ पर चीनी निवेश के बदले में देने पर सहमति व्यक्त कर दी.
चीन को सौंपना पड़ा पोर्ट
चीन ने दक्षिण एशिया के तीन महत्वपूर्ण और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए देशों पाकिस्तान, श्रीलंका और मालदीव को भारी क़र्ज़ दिया है. श्रीलंका को पिछले साल के दौरान चीन ने एक अरब डॉलर से ज़्यादा कर्ज़ दिया जिसके चलते उसे हंबनटोटा पोर्ट सौंपना पड़ गया. यही आलम पाकिस्तान का भी है. चीन के भारी कर्जों के तले दबकर उसे उसके इशारों पर चलना नाचने को मजबूर होना पड़ रहा है. मालदीव में भी चीन विकास के नाम पर परियोजनाओं में बड़ा इन्वेस्टमेंट कर रहा है. मालदीव में जिन प्रोजक्टों पर भारत काम कर रहा था उसे भी चीन को सौंप दिया गया है. जाहिर सी बात है कि चीन दूसरे देशों को कर्ज में डूबाकर अपना हित साध रहा है.
एक ओर चीन का दायरा बढ़ रहा है और इससे इकॉनमी को भी बड़ा सपोर्ट मिल रहा है. एक रिपोर्ट के अनुसार चाइना कंस्ट्रक्शन बैंक की तरफ़ दिए जाने वाले विदेशी कर्ज़ों में 31 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है जबकि इसकी तुलना में देश में यह वृद्धि दर 1.5 फ़ीसदी ही है. 2016 की तुलना में 2017 में बैंक ऑफ चाइना की ओर से बाहरी मुल्कों को कर्ज़ देने की दर 10.6 फ़ीसदी बढ़ी थी.
चीन एशियाई देशों में ही नहीं बल्कि अफ़्रीकी देशों में भी आधारभूत ढांचा विकसित करने के काम में लगा है. उन्हीं देशों में एक देश है जिबुती. जिबुती में अमरीका का सैन्य ठिकाना है. वहीं चीन की एक कंपनी को जिबुती ने एक अहम पोर्ट दिया है जिसके चलते अमरीका नाख़ुश है क्योंकि जिबुती में पोर्ट प्रोजेक्ट के चलते चीन का अमरीकी ज़मीन के नज़दीक पहुंच गया है.
चीन का पाकिस्तान में ग्वादर पोर्ट का करार
एक रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान में ग्वादर और चीन के समझौते को लेकर कहा जाता है कि पाकिस्तान चीन का आर्थिक उपनिवेश बन रहा है. चीन ने पाकिस्तान के साथ ग्वादर में निवेश के लिए साझेदारी की है. ग्वादर को लेकर यह समझौता 40 वर्षों का है. चीन का ग्वादर में निवेश से होने वाले मुनाफे के 91 फ़ीसदी हिस्से पर अधिकार होगा. ग्वादर अथॉरिटी पोर्ट को महज 9 फ़ीसदी हिस्सा मिलेगा. फिलहाल चीन ने पाकिस्तान में वर्तमान परियोजनाओं में 62 अरब डॉलर है. वहीं पाकिस्तान में वर्तमान परियोजना में 62 अरब डॉलर का निवेश किया गया है जिसमें 80 फीसदी निवेश चीन ने किया है. चीन द्वारा भारी ब्याज पर दिए जा रहे कर्ज़ पाकिस्तान के लिए आने वाले समय में खतरे की घंटी बन सकता है.
मालदीव के सभी बड़े प्रोजेक्ट्स में चीन कर रहा है निवेश
मालदीव के सभी बड़े प्रोजेक्टों में चीन का निवेश शामिल है. चीन मालदीव में 830 करोड़ डॉलर की लागत से एक एयरपोर्ट बना रहा है. चीन एयरपोर्ट के पास ही एक पुल बना रहा है जिसकी लागत 400 करोड़ डॉलर है. विश्व बैंक और आईएमएफ़ की मानें तो मालदीव बुरी तरह से चीनी कर्ज़ में फंसता दिख रहा है. मालदीव की घरेलू राजनीति में टकराव के कारण चीन का दखल और प्रभाव भी इस छोटे से देश पर बढ़ता जा रहा है.
मोन्टेनेग्रो भी हो चुका है ड्रैगन का शिकार
विश्व बैंक का अनुमान है कि 2018 में मोन्टेनेग्रो की आबादी पर कुल जीडीपी का 83 फीसदी कर्ज है. मोन्टेनेग्रो में भी 2014 में चीन के एग्ज़िम बैंक ने पोर्ट विकसित करने के लिए और ट्रांसपोर्ट नेटवर्क बढ़ाने के लिए एक समझौता हुआ था.
तजाकिस्तान पर चीन के कर्ज का बोझ सर्वाधिक
तजाकिस्तान की गिनती एशिया के सबसे ग़रीब देशों में होती है. आईएमएफ़ की रिपोर्ट के मुताबिक तजाकिस्तान पर सबसे ज़्यादा कर्ज़ चीन का है. वर्ष 2007-2016 के बीच तजाकिस्तान पर कुल विदेशी कर्ज़ में चीन का हिस्सा 80 फ़ीसदी तक पहुंच गया है.
किर्गिस्तान पर भी है इतना बोझ
किर्गिस्तान भी चीन के वन बेल्ट वन रोड परियोजना के जाल में फंस चुका है. चीन ने विकास परियोजनाओं के लिए 2016 में 1.5 अरब डॉलर निवेश किया था जो अब बढ़कर जीडीपी का 40 फ़ीसदी हिस्सा हो गया है.
मंगोलिया भी भी हाइड्रोपावर और हाइवे प्रोजेक्ट में हिस्सेदारी
यह बताया जा रहा है कि वन बेल्ट वन रोड के तहत चीन अगले पांच सालों में मंगोलिया में 30 अरब डॉलर का निवेश कर सकता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन के एग्ज़िम बैंक 2017 की शुरुआत में एक अरब अमरीकी डॉलर का फंड देने के लिए तैयार हुआ था. इसके साथ ही मंगोलिया में दीलोप्मेन्ट प्रोजेक्ट के तहत चीन ने सशर्त हाइड्रोपावर और हाइवे प्रोजेक्ट में हिस्सेदारी भी रखी थी.
लाओस में वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट पर चल रहा है काम
दक्षिण-पूर्वी एशिया में लाओस ग़रीब मुल्कों में से एक है. लाओस में चीन वन बेल्ट वन रोड के तहत रेलवे परियोजना पर काम कर रहा है. इसकी लागत 6.7 अरब डॉलर है जो तकरीबन इस देश की जीडीपी का 50 प्रतिशत है. आईएमएफ़ ने लाओस को भी चेतावनी दी है कि स्थिति निकट भविष्य में और खतरनाक हो सकती है.
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China दुनिया भर में डेवलपमेंट के नाम पर 'बर्बादी के बम' तो नहीं बिछा रहा!