पिछले कुछ समय से तुर्की लगातार सुर्खियों में है. इसकी वजह कभी खराब होती अर्थव्यवस्था तो कभी देश में कट्टरता को बढ़ावा देने वाले फैसले लेना है. अब राष्ट्रपति एर्दोगान ने नया फैसला लिया है और उन्होंने देश का नाम ही बदल दिया है. किसी देश का नाम बदलने के पीछे की परिस्थितयां और कारणों को समझें.
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अब तुर्की को तुर्किये के नाम से जाना जाएगा. व्यापारिक, अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और राजनयिक कार्यों के लिए Turkey का ही इस्तेमाल होगा. राष्ट्रपति एर्दोगन ने एक बयान जारी कर कहा था कि उन्होंने नाम बदलने के फैसले की जानकारी दी थी. उन्होंने कहा था कि तुर्की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दिया गया नाम है लेकिन इसे अब तुर्किये में बदला जा रहा है. आगे जानें क्यों लिया उन्होंने यह फैसला.
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राष्ट्रपति ने नाम बदलने के पीछे मुख्य कारण दिया है कि ह देश की संस्कृति और मूल्यों को पूरे अर्थों में बताता है. टर्किश भाषा में तुर्की को तुर्किये कहा जाता है. 1923 में पश्चिमी देशों के कब्जे से आजाद होने के बाद तुर्की को तुर्किये नाम से ही जाना गया था. दियों से यूरोपीय लोग इस देश को पहले ऑटोमन स्टेट और फिर तुर्किये नाम से संबोधित करते थे.
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तुर्किये से बाद में लैटिन में तुर्किया नाम भी काफी मशहूर हुआ था और उसके अपभ्रंश के तौर पर तुर्की इस्तेमाल किया जाने लगा था. तुर्की नाम से अमेरिका में एक मशहूर पक्षी होता है. अमेरिका में मनाए जाने वाले थैंक्सगिविंग त्योहार में इस पक्षी के मीट से कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं.
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1935 में ईरान ने अपना नाम फारस से बदल लिया था. फारसी में ईरान का अर्थ पर्शियन है. ईरान के लोगों का स्पष्ट मानना है कि उनके देश को उसी नाम से विश्व में पहचान मिलनी चाहिए जिस नाम से स्थानीय भाषा में बोला जाता है. किसी देश का अपना नाम बदलना ऐसी असामान्य बात नहीं है. नीदरलैंड ने कुछ साल पहले ही अपने नाम से हॉलैंड को अलग किया है. ग्रीस के साथ विवाद की वजह से मैसोडोनिया ने अपना नाम बदलकर उत्तरी मैसोडोनिया रख लिया था.
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एर्दोगान की छवि विश्व में कंजर्वेटिव नेता के तौर पर रही है. अपने प्रशासन में लगातार वह ऐसे बदलाव कर रहे हैं जिसे विश्व में सहजता से नहीं लिया जा रहा है. हागिया सोफिया को नमाज पढ़ने के लिए खोलने का उनका फैसला इसी तरह का था. देश का आधिकारिक नाम बदलने के पीछे की वजह भी यूरोपियन और लैटिन प्रभाव से अलग सांस्कृतिक पहचान से जोड़ने की कोशिश है.