देश आज नेताजी सुभाष चन्द्र बोस (Subhas Chandra Bose) की आज 125वीं जयंती मना रहा है. ताइवान (Taiwan) ही वह आखिरी देश था जहां आखिरी बार नेता जी नजर आए थे. ताइवान ने देश के महान क्रांतिक्रारी से जुड़ी विरासत को खोजने के लिए अपने राष्ट्रीय अभिलेखागार (National Archives) के दरवाजे भारत के लिए खोल दिया है. ताइवान ने कहा है कि भारत नेता जी से जुड़ी जानकारियों को यहां तलाश सकता है. ताइवान का प्रस्ताव है कि भारत नेशनल आर्काइव और डेटाबेस को देख सकता है. आखिर ताइवान ने ऐसा क्यों कहा है?
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ताइवान साल 1940 तक जापान (Japan) के कब्जे रहा है. यह आखिरी देश था जहां देश के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी को जीवित देखा गया था. आम सहमति यह है कि 1945 में एक विमान दुर्घटना में नेता जी का निधन हो गया था.
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ताइपे इकोनॉमिक एंड कल्चरल सेंटर के उप प्रतिनिधि मुमिन चेन (Mumin Chen) 22 जनवरी को एक कार्याक्रम के दौरान कहा कि हमारे पास राष्ट्रीय अभिलेखागार और कई डेटाबेस हैं. हम भारतीय मित्रों की यह पता लगाने में मदद कर सकते हैं कि नेताजी और उनकी विरासत के बारे में ज्यादा जानकारी हासिल हो सके. नेता जी का 1930 और 1940 के दशक में ताइवान पर बड़ा प्रभाव रहा है.
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अलग-अलग रिपोर्ट्स में दावा किया जा चुका है कि अगस्त 1945 में विमान दुर्घटना के बाद, नेताजी को ताइपे में सेना अस्पताल में भर्ती कराया गया था. यहीं उन्होंने अंतिम सांस ली थी. यह अस्पताल अब हेपिंग फुयू ब्रांच के तौर पर जाना जा रहा है.
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ताइवान के प्रतिनिधि ने कहा है कि बहुत से युवा इतिहासकार दक्षिण पूर्व एशिया के साथ यहां तक कि भारत के साथ भी शोध कर रहे हैं. बहुत सारे ऐतिहासिक दस्तावेज, नेताजी पर साक्ष्य, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और दस्तावेज ताइवान के अलग-अलग आर्काइव में हैं. बहुत कम भारतीय विद्वानों को इस बात की जानकारी है.
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मुमिन चेन ने कहा है कि ताइवान और भारत को हिंद-प्रशांत के सामान्य इतिहास की फिर से जांच और खोज करनी चाहिए क्योंकि हमारे ऐतिहासिक संबंध हैं. हादसे के बाद अब तक नेताजी जी से जुड़े दस्तावेज जापान से संबंधित रहे हैं. जापान सरकार ने नेताजी से संबंधित दो फाइलों को सार्वजनिक किया है. जापान दावा करता है कि उनकी अस्थियों को टोक्यो के रेंको-जी मंदिर में रखा गया है.
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भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी रविवार शाम को इंडिया गेट पर नेताजी की होलोग्राम प्रतिमा का अनावरण करने वाले हैं. ताइवान की टिप्पणी ऐसे वक्त में सामने आई है जब देश सुभाष चंद्र बोस की 125 वीं जयंती मना रहा है. भारत सरकार ने 23 जनवरी को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की है.