चीन के कर्ज जाल में फंसकर पड़ोसी मुल्क श्रीलंका बदहाली के कगार पर पहुंच गया है. कोविड महामारी और विदेशी कर्ज ने देश को दिवालिया होने की कगार पर खड़ा कर दिया है. इस बीच, चीन अपनी चालाकियों से बाज नहीं आ रहा है. चीन का कर्ज नहीं चुकाने की हालत में हो सकता है कि श्रीलंका को अपनी कुछ जमीन से हमेशा के लिए हाथ धोना पड़े.
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श्रीलंका की अर्थव्यवस्था के सामने इस वक्त सबसे बड़ी चुनौती उसका विदेशी कर्ज में डूबा होना है. श्रीलंका को चीन को करीब 5 अरब डॉलर का कर्ज चुकाना है. श्रीलंका के कुल विदेशी कर्ज में 68% हिस्सा चीन का है. वित्तीय संकट से निपटने के लिए श्रीलंका ने चीन से अतिरिक्त 1 अरब डॉलर यानी 7 हजार करोड़ का कर्ज पिछले साल लिया था.
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चीन एशियाई इलाकों में लगातार अपना प्रभुत्व बढ़ा रहा. साल 2017 में ही उसने कर्ज नहीं चुका पाने के बाद श्रीलंका के हंबनटोटा पोर्ट पर कब्जा जमा लिया है. एशियाई मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि चीन इस बार भी श्रीलंका के रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण समुद्री ठिकानों पर कब्जा जमाने की कोशिश करेगा.
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श्रीलंका के खराब आर्थिक हालात का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि लोग आटा, दाल, दूध जैसी चीजें भी बहुत कम मात्रा में खरीद रहे हैं. कोविड महामारी की वजह से श्रीलंका का पर्यटन उद्योग बर्बाद होने की कगार पर है. पर्यटन का वहां की जीडीपी में 10% के करीब हिस्सा है.
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देश की खराब आर्थिक हालात को देखते हुए सरकार ने आर्थिक आपातकाल की घोषणा कर दी है. हालात यह हैं कि जरूरी चीजों की सप्लाई की जिम्मेदारी सेना को दी गई है. जमाखोरी रोकने और महंगाई को काबू में लाने के लिए सरकार ने सेना को राशन और जरूरी चीजों की आपूर्ति की जिम्मेदारी दी है. सरकार ने 1.2 अरब डॉलर का राहत पैकेज भी दिया है. भारत ने भी श्रीलंका को राहत पैकेज दिया है.