पाकिस्तान के प्रधानमंत्री दुनिया भर के देशों से तालिबान के साथ वार्ता और सहयोग की अपील करते रहे हैं. तालिबान के लिए इसी नर्म रवैये की वजह से Imran Khan के विरोधी उन्हें तालिबान खान और तालिबान समर्थक तक कहते हैं. पाक पीएम के तालिबान से कनेक्शन नया नहीं बल्कि उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत से ही है. तालिबान के लिए इमरान के सॉफ्ट कॉर्नर की वजह राजनीतिक भी है, समझें यहां.
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पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान का तालिबान प्रेम किसी से छुपा नहीं है. इमरान खान पूरी दुनिया में तालिबान की वकालत करते फिरते हैं. इसकी वजह है कि इमरान ने खुद अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत जिस इलाके से की, वहां तालिबान दशकों से सक्रिय है. खैबर पख्तूनख्वा पाकिस्तान का वह इलाका है जहां से इमरान की राजनीति ने करवट ली. इस इलाके में दशकों से तालिबान का आतंक रहा है.
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25 सितंबर 2013 को ही इमरान खान ने सलाह दी थी कि तालिबान को पाकिस्तान में कहीं भी अपना ऑफिस बनाने की अनुमति मिलनी चाहिए. उस वक्त उनके इस बयान की काफी आलोचना हुई थी और इसे कट्टरपंथ को बढ़ावा देने वाला और संविधान के खिलाफ माना गया था.
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पाकिस्तान की सियासत में उतरने से पहले इमरान खान की छवि प्लेबॉय कप्तान की थी. उनकी जीवन शैली और चर्चित अफेयर राजनीति के अनुकूल नहीं थे. पाकिस्तानी राजनीति के जानकारों का कहना है कि रूढ़िवादी पाकिस्तानी समाज और इस्लामिक देशों के बीच अपनी छवि गढ़ने के लिए इमरान खान गाहे-बगाहे तालिबान राग अलापते हैं. इसी क्रम में वह अक्सर खुद को कट्टर, सच्चा मुसलमान जैसे विशेषण भी देते हैं.
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पाक पीएम के विरोधी उन्हें यूं ही तालिबान खान नहीं कहते हैं. 2018 में पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनने से पहले भी उन्होंने टीटीपी (TTP) का कई बार सर्थन किया था. टीटीपी कमांडर वली उर रहमान की मौत पर उन्होंने शांति दूत की मौत कहकर ट्वीट किया था. हाल ही में इस्लामिक देशों की कॉन्फ्रेंस में उन्होंने तालिबान के सांस्कृतिक परिवेश और इतिहास समझने की बात कही.
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पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने जबसे देश की कमान संभाली है, वहां की अर्थव्यवस्था बदहाल है. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से कर्ज पर निर्भर है. इस वक्त यह कर्ज अमेरिका के बजाय चीन और सउदी अरब से मिल रहा है. जानकारों का कहना है कि तालिबान के लिए सहानुभूति भरे बयान देकर पाक पीएम अपनी इमेज बचाने में जुटे हैं. पाक पीएम की पूरी उम्मीदें इस्लामिक देशों जैसे कि तुर्की और सउदी अरब ही हैं. ऐसे में पाक पीएम खास तौर पर अपनी रणनीति इस्लामिक देशों को केंद्र में रखकर ही बना रहे हैं.